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अठारह विद्याओं का वर्णन

अठारह विद्याओं का वर्णन

अठारह विद्याओं का वर्णन

सर्वानुग्राहका मन्त्राश्चतुर्वर्गप्रसाधकाः ।

ऋगथर्व तथा साम यजुः संख्या तु लक्षकम् ||1||

मन्वत्रिविष्णुहारीतयाज्ञवल्क्योशनोंऽगिराः ।

यमापस्तम्बसंवर्ताः कात्यायनबृहस्पती ||2||

पराशरव्यासशंखालिखिता दक्षगोतमौ ।

शातातपो वशिष्ठश्च धर्मशास्त्रप्रयोजकाः ||3||

पूर्व तृतीय अध्याय में कलि का कथन करा अब चतुर्थेऽध्याय में अष्टादश विद्या का कथन करते हैं।

अग्निपुराण में कहा है कि सर्व प्राणियों पर अनुग्रह करने वाले और धर्म अर्थ काम मोक्ष इन चार वर्ग रूप पुरुषार्थों के साधक ऋग्वेद अथर्ववेद सामवेद तथा यजुर्वेद इन चार वेदों के मन्त्रों की मिलाकर संख्या एक लक्ष है ।।1।।

स्कन्दपुराण में कहा है कि मनु 1 अत्रि 2 विष्णु 3 हारीत 4 याज्ञवल्क्य 5 शुक्राचार्य 6 अंगिरस 7 यम, आपस्तम्ब 8-9 संवर्त 10 कात्यायन 11 बृहस्पति 12 पराशर 13 व्यास 14 शंख 15 लिखित 16 दक्ष 17 गौतम 18. शातातप 19 वसिष्ठ 20 इतने महाऋषि त्रिकालज्ञ सदाचारी सनातन धर्मशास्त्र के प्रवर्तक हैं। और इनसे अतिरिक्त नारद राम कृष्ण महादेव ब्रह्मा अष्टावक कपिल आदि भी जान लेने ||2-3||

अंगानि वेदाश्चत्वारो मीमांसा न्यायविस्तरः ।

धर्मशास्त्रं पुराणं च विद्याश्चेमाश्चतुर्दशः ||4||

आयुर्वेदो धनुर्वेदो गन्धर्वश्चेति ते त्रयः ।

अर्थशास्त्रं चतुर्थं तु विद्या ह्यष्टादशैव हि ।।5।।

ब्रह्माण्ड पुराण में कहा है कि ऋग्वेद 1 यजुर्वेद 2 सामवेद 3 अथर्ववेद 4 और वेदों के षट् अंग,मुण्डकोपनिषद् के प्रथम मुण्डक प्रथमखण्ड के पांचवे मंत्र में कहे हैं याज्ञवल्क्य आदिकृत शिक्षाशास्त्र 1 कात्यायन आदिकृत कल्पसूत्र 2 पाणिनि आदि निर्मित व्याकरण शास्त्र 3 यास्कादि मुनि निर्मित निरुक्तशास्त्र 4 पिंगलाचार्य कृत छन्दशास्त्र 5 अष्टादश ज्योति शास्त्र के आचार्यों में मुख्य सूर्य निर्मित सूर्य-सिद्धान्त नामक ज्योति शास्त्र 6 और जैमनि कृत पूर्वमीमांसा, वेदव्यासकृत ब्रह्मसूत्र रूप उत्तरमीमांसा, गौतमकृत न्यायदर्शन, कणादकृत वैशेषिकदर्शन और पतञ्जलिकृत योगदर्शन पञ्चशिखाकृत सांख्य दर्शन 2 इन षट् दर्शनों की दो विद्या रूप से गणना है और मनु आदि सत्ताइस स्मृतियों को धर्मशास्त्र कहा जाता है, इनकी एक विद्यारूप से गणना है ।

महाभारत में कहा है कि गीता में छै सौ बीस 620 श्लोकों को श्रीकृष्णचन्द्रजी ने कथन करा है, 57 सतावन श्लोकों को अर्जुन ने कथन करा है, 66 छांसठ श्लोकों को संजय ने कथन करा है और 1 एक श्लोक धृतराष्ट्र ने कथन करा है सर्व मिलाकर 744 सातसो चवालीस होते हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अन्त में और श्रीमद्भागवत पुराण के अन्त में अष्टादश पुराणों के श्लोकों की संख्या इस प्रकार से कही है :-

(1) 10000 दस हजार ब्रह्मपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(2) 55000 पचपन हजार पद्मपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(3) 23000 तेइस हजार विष्णुपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(4) 24000 चौबीस हजार शिवपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(5) 18000 अठारा हजार श्री मद्भागवत के श्लोकों की संख्या है।

(6) 25000 पचीस हजार नारदीयपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(7) 9000 नो हजार मार्कण्डेयपुराण श्लोकों की संख्या है।

(8) 15400 पन्द्रह हजार चार सौ अग्निपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(9) 14500 चौदह हजार पांच सौ भविष्यत्पुराण के श्लोकों की संख्या है।

(10) 18000 अठारह हजार ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्लोकों की संख्या है।

(11) 11000 ग्यारह हजार लिङ्गपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(12) 24000 चौबीस हजार वराहपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(13) 81100 ईकासी हजार एकसौ स्कन्दपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(14) 10000 दस हजार वामनपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(15) 17000 सतरा हजार कूर्मपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(16) 14000 चौदह हजार मत्स्यपुराण के श्लोकों की संख्या है।

(17) 19000 गुन्नीस हजार गरुड़पुराण के श्लोकों की संख्या है।

(18) 12000 बारह हजार ब्रह्माण्डपुराण के श्लोकों की संख्या है।

400000

इन अष्टादश पुराणों के श्लोकों की सर्व मिलाकर संख्या चार लक्ष्य होती है। किन्तु आजकल वर्तमान समय में पुराणों के श्लोकों की संख्या किसी भी पुराण की पूरी नहीं मिलती है और जितनी संख्या मिलती है उसको भी मानने वाले आस्तिक लोग बहुत ही थोड़े रह गये हैं यह अष्टादशपुराण एक विद्या रूप से माने गये हैं यह चौदह विद्या कही हैं। ।।4।। और चरक शुश्रुत आदि चिकित्सा रूप आयुर्वेद 1 धनुष विद्या का बोधक धनुर्वेद 2. गायन विद्या का बोधक गन्धर्व शास्त्र 3 द्रव्य संपादन के मार्ग का बोधक अर्थ शास्र 4 ये सर्व मिलाकर संसार में अष्टादश विद्या कही जाती हैं ||5||

अष्टादश विद्या की अनुक्रमणिका :-

शिक्षा शास्त्र 1 कल्प शास्त्र 2 व्याकरण शास्त्र 3 निरुक्त शास्त्र 4 छन्द शास्त्र 5 ज्योतिः शास्त्र 6 ऋग्वेद 7 यजुर्वेद 8 सामवेद 9 अथर्ववेद 10 पूर्व मीमांसा उत्तर मीमांसा 11 न्याय शास्त्र । वैशेषिक शास्त्र । योग शास्त्र । सांख्य शास्त्र 12 धर्म शास्त्र 13 पुराण 14 आयुर्वेद 15 धनुर्वेद 16 गन्धर्व शास्त्र 17 अर्थ शास्त्र 18 ।।

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