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ईश्वर का महत्व

ईश्वर

आम सोच है कि मेहनत से ही सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। कुछ यह भी कहते हैं कि ईश्वर की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है। अब प्रश्न उठता है कि तब हम क्या करते हैं? यदि सारी बातें पूर्व नियोजित हैं तो हम क्या हैं? और अगर सबकुछ पूर्व नियोजित नहीं है तो फिर ईश्वर का महत्व क्या है? इस स्थिति में कर्म के लिए किया गया प्रयास और पूर्व निर्धारित ईश्वरीय योजना में क्या कोई संबंध है? हम जो प्रयास करते हैं, जो काम करते हैं, उसको अमल में लाने की शक्ति और विवेक कहां से पाते हैं? हमारा जो विवेक, ज्ञान है, उसके भी असली मालिक हम नहीं हैं। फिर क्या है?

पूर्व निर्धारित योजना और व्यक्तिगत प्रयास

यदि हम मानते हैं कि सब कुछ पूर्व नियोजित है, तो ऐसा लगता है कि हमारे प्रयास निष्फल हैं। लेकिन यह धारणा सतही हो सकती है। वास्तव में, कर्म और ईश्वरीय योजना के बीच एक गहरा संबंध है। हमारे प्रयास और कर्म, ईश्वर द्वारा निर्धारित योजना का हिस्सा हो सकते हैं। हम जो भी प्रयास करते हैं, वह हमारे विवेक और ज्ञान का उपयोग करके होता है, और यह विवेक और ज्ञान भी ईश्वर की ही देन है।

ईश्वर की शक्ति और हमारा अस्तित्व

सच में ईश्वर की शक्ति का एक बूंद हम हैं। वह देखना चाहते हैं कि उनके बच्चे यानी इस संसार के जीव-जंतु, पादप खासकर मनुष्य कैसे काम करते हैं। वह चाहते हैं कि उनके बच्चे आपस में खेलकूद करें, तर्क करें, प्रेम करें, लड़ाई भी करें तो भी मिलकर रहें और अंत में मेरे पास आ जाएं। तो परमपुरुष के बच्चे जो कुछ भी करते हैं उनकी शक्ति से और परमपुरुष जो कुछ भी करते हैं वह अपनी शक्ति से करते हैं।

हमारे पास जो शक्ति है वह सीमित और उनके पास जो शक्ति है वह अनंत है। इसलिए ईश्वर जो चाहेंगे वही होगा। हम जो चाहेंगे वह नहीं होगा। हमारी चाह और उनकी चाह एक हो गई तो यह संतोष मिलता है कि मेरी चाह के अनुसार काम हुआ। साधक की चाह और परमपुरुष की चाह एक बन जाती है तो साधक का उत्साह बढ़ जाता है।

ईश्वर की इच्छा को जानने का उपाय

अब परमपुरुष की चाह क्या है? वह साधारण मनुष्य को मालूम नहीं है। जिनको मालूम है वे पहले से मन को उसी तरह तैयार कर लेंगे और उनकी इच्छा स्रोत में स्वयं को बहा देंगे और जीवन के हर पल में आनंद में रहेंगे। बुद्धिमान मनुष्य ‘का यही काम है। परमपुरुष की इच्छा को जानने का उपाय है उनसे प्रेम करना, उनकी उपासना यानी नियमित रूप से साधना करना।

उपासना और प्रेम

ईश्वर की इच्छा को जानने का सबसे अच्छा उपाय है उनसे प्रेम करना और उनकी उपासना करना। नियमित साधना और उपासना के माध्यम से हम ईश्वर की इच्छा को समझ सकते हैं और अपने जीवन में उसे लागू कर सकते हैं। इससे हमारे जीवन में संतोष, शांति और आनंद का संचार होता है।

निष्कर्ष

इस प्रकार, कर्म और ईश्वर की इच्छा के बीच एक अद्वितीय समन्वय है। हमारी मेहनत और प्रयास, ईश्वरीय योजना का हिस्सा होते हैं। हमें अपनी शक्ति और विवेक का उपयोग करके अपने कर्मों को अंजाम देना चाहिए और साथ ही ईश्वर की इच्छा को समझने का प्रयास करना चाहिए। इससे हमारे जीवन में संतुलन, शांति और आनंद बना रहेगा।

FAQs:

कर्म और ईश्वर की इच्छा में क्या संबंध है?

कर्म और ईश्वर की इच्छा के बीच एक गहरा संबंध है। हमारे प्रयास और कर्म, ईश्वर द्वारा निर्धारित योजना का हिस्सा होते हैं। हम जो भी काम करते हैं, उसे अमल में लाने की शक्ति और विवेक ईश्वर की ही देन है।

क्या सबकुछ पूर्व नियोजित है?

यदि हम मानते हैं कि सबकुछ पूर्व नियोजित है, तो ऐसा लगता है कि हमारे प्रयास निष्फल हैं। लेकिन वास्तव में, हमारे कर्म और ईश्वरीय योजना के बीच तालमेल होता है। हमारे कर्म उसी योजना का हिस्सा हो सकते हैं जिसे ईश्वर ने निर्धारित किया है।

क्या हम अपनी मेहनत से कुछ बदल सकते हैं?

हां, हमारी मेहनत का महत्व है। हमारी चाह और ईश्वर की चाह एक हो जाए, तो कर्म सफल होते हैं। जब साधक की इच्छा ईश्वर की इच्छा के साथ एकरूप हो जाती है, तो उसे अपने कर्मों में संतोष और सफलता प्राप्त होती है।

ईश्वर की इच्छा को कैसे जानें?

ईश्वर की इच्छा को जानने का सबसे अच्छा उपाय है उनसे प्रेम करना और उनकी उपासना करना। नियमित साधना और उपासना के माध्यम से हम ईश्वर की इच्छा को समझ सकते हैं और अपने जीवन में उसे लागू कर सकते हैं।

क्या हम अपने विवेक के असली मालिक हैं?

हमारे विवेक और ज्ञान का असली स्रोत ईश्वर हैं। हम जो भी निर्णय लेते हैं, उसमें हमारे विवेक का उपयोग होता है, और यह विवेक भी ईश्वर की ही देन है।

कर्म करने में ईश्वर की शक्ति का क्या योगदान है?

हमारी शक्ति सीमित होती है, जबकि ईश्वर की शक्ति अनंत है। हमारे सभी कर्मों में ईश्वर की शक्ति का योगदान होता है। वह हमारे हर कर्म में शामिल होते हैं, और उनकी इच्छा के बिना कुछ भी संभव नहीं है।

उपासना का महत्व क्या है?

उपासना और साधना के माध्यम से हम ईश्वर की इच्छा को समझ सकते हैं। यह हमें जीवन में संतोष, शांति, और आनंद का अनुभव कराती है। नियमित उपासना से हम ईश्वर के और करीब आ सकते हैं।

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