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33. कंस का श्रीकृष्ण को बुलाने के लिये अक्रूर को भेजना

कंस

कंस का दुष्ट योजना बनाना

वृषभरूपधारी अरिष्टासुर, धेनुक और प्रलम्ब आदिका वध, गोवर्धनपर्वतका धारण करना, कालियनागका दमन, दो विशाल वृक्षोंका उखाड़ना, पूतनावध तथा शकटका उलट देना आदि अनेक लीलाएँ हो जानेपर एक दिन नारदजीने कंस को यशोदा और देवकी के गर्भ- परिवर्तनसे लेकर जैसा जैसा हुआ था, सब वृत्तान्त क्रमशः सुना दिया ॥  वह देवदर्शन नारदजीसे ये सब बातें सुनकर दुर्बुद्धि कंसने वसुदेवजी के प्रति अत्यन्त क्रोध प्रकट किया ॥ उसने अत्यन्त कोपसे वसुदेवजीको सम्पूर्ण यादवोंकी सभामें डाँटा तथा समस्त यादवोंकी भी निन्दा की और यह कार्य विचारने लगा – ‘ये अत्यन्त बालक राम और कृष्ण जबतक पूर्ण बल प्राप्त नहीं करते हैं तभीतक मुझे इन्हें मार देना चाहिये; क्योंकि युवावस्था प्राप्त होनेपर तो ये अजेय हो जायँगे ॥

मेरे यहाँ महावीर्यशाली चाणूर और महाबली मुष्टिक- जैसे मल्ल हैं। मैं इनके साथ मल्लयुद्ध कराकर उन दोनों दुर्बुद्धियोंको मरवा डालूँगा ॥ उन्हें महान् धनुर्यज्ञ के मिससे व्रजसे बुलाकर ऐसे-ऐसे उपाय करूँगा, जिससे वे नष्ट हो जायँ ॥  उन्हें लानेके लिये मैं श्वफल्कके पुत्र यादवश्रेष्ठ शूरवीर अक्रूरको गोकुल भेजूँगा ॥  साथ ही वृन्दावन में विचरने वाले घोर असुर केशि को भी आज्ञा दूँगा, जिससे वह महाबली दैत्य उन्हें वहीं नष्ट कर देगा ॥  अथवा [ यदि किसी प्रकार बचकर] वे दोनों वसुदेवपुत्र गोप मेरे पास आ भी गये तो उन्हें मेरा कुवलयापीड हाथी मार ‘डालेगा ‘ ॥ 

अक्रूरजी को गोकुल भेजना

 ऐसा सोचकर उस दुष्टात्मा कंसने वीरवर राम और कृष्ण को मारने का निश्चय कर अक्रूरजी से कहा ॥ 

कंस बोला – हे दानपते ! मेरी प्रसन्नताके लिये आप मेरी एक बात स्वीकार कर लीजिये। यहाँसे रथपर चढ़कर आप नन्दके गोकुल को जाइये ॥  वहाँ वसुदेवके विष्णुअंशसे उत्पन्न दो पुत्र हैं। मेरे नाशके लिये उत्पन्न हुए वे दुष्ट बालक वहाँ पोषित हो रहे हैं॥  मेरे यहाँ चतुर्दशीको धनुषयज्ञ होनेवाला है; अतः आप वहाँ जाकर उन्हें मल्लयुद्धके लिये ले आइये ॥ मेरे चाणूर और मुष्टिक नामक मल्ल युग्म-युद्धमें अति कुशल हैं, [उस धनुर्यज्ञके दिन] उन दोनोंके साथ मेरे इन पहलवानोंका द्वन्द्वयुद्ध यहाँ सब लोग देखें ॥ अथवा महावतसे प्रेरित हुआ कुवलयापीड नामक गजराज उन दोनों दुष्ट वसुदेव- पुत्र बालकोंको नष्ट कर देगा ॥ 

इस प्रकार उन्हें मारकर मैं दुर्मति वसुदेव, नन्दगोप और इस अपने मन्दमति पिता उग्रसेनको भी मार डालूँगा ॥  तदनन्तर, मेरे वधकी इच्छावाले इन समस्त दुष्ट गोपोंके सम्पूर्ण गोधन तथा धनको मैं छीन लूँगा ॥  हे दानपते! आपके अतिरिक्त ये सभी यादवगण मुझसे द्वेष करते हैं, अतः मैं क्रमशः इन सभीको नष्ट करनेका प्रयत्न करूँगा ॥ फिर मैं आपके साथ मिलकर इस यादवहीन राज्यको निर्विघ्नतापूर्वक भोगूँगा, अतः हे वीर! मेरी प्रसन्नता के लिये आप शीघ्र ही जाइये ॥  आप गोकुलमें पहुँचकर गोपगणों से इस प्रकार कहें जिससे वे माहिष्य (भैंसके) घृत और दधि आदि उपहारोंके सहित शीघ्र ही यहाँ आ जायँ ॥ 

अक्रूरजी की प्रसन्नता और यात्रा

 कंससे ऐसी आज्ञा पा महाभागवत अक्रूरजी ‘कल मैं शीघ्र ही श्रीकृष्णचन्द्रको देखूँगा’–यह सोचकर अति प्रसन्न हुए ॥  माधव- प्रिय अक्रूरजी राजा कंससे ‘जो आज्ञा’ कह एक अति सुन्दर रथपर चढ़े और मथुरापुरीसे बाहर निकल आये ॥ 

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