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9. कलिधर्म निरूपण

कलि

 सतयुग से कलि युग तक का वर्णन

कल्पान्तके समय प्राकृत प्रलयमें जिस प्रकार जीवोंका उपसंहार होता है, वह सुनो ॥ मनुष्योंका एक मास पितृगणका, एक वर्ष देवगणका और दो सहस्र चतुर्युग ब्रह्माका एक दिन-रात होता है ॥  सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलि-ये चार युग हैं, इन सबका काल मिलाकर बारह हजार दिव्य वर्ष कहा जाता है ॥ [प्रत्येक मन्वन्तरके] आदि कृतयुग और अन्तिम कलियुगको छोड़कर शेष सब चतुर्युग स्वरूपसे एक समान हैं ॥ जिस प्रकार आद्य (प्रथम) सत्ययुगमें ब्रह्माजी जगत्की रचना करते हैं उसी प्रकार अन्तिम कलियुगमें वे उसका उपसंहार करते हैं ॥

कलियुग के स्वरूप का वर्णन

कलियुग का स्वरूप सुनना चाहते हैं सो उस समय जो कुछ होता है वह संक्षेपसे सुनिये ॥ कलियुगमें मनुष्योंकी प्रवृत्ति वर्णाश्रम धर्मानुकूल नहीं रहती और न वह ऋक् साम-यजुरूप त्रयी-धर्मका सम्पादन करनेवाली ही होती है ॥  उस समय धर्मविवाह, गुरु-शिष्य-सम्बन्धकी स्थिति, दाम्पत्यक्रम और अग्निमें  देवयज्ञक्रियाका क्रम (अनुष्ठान) भी नहीं रहता ॥ 

कलियुग में जो बलवान् होगा वही सबका स्वामी होगा चाहे किसी भी कुलमें क्यों न उत्पन्न हुआ हो, वह सभी वर्णोंसे कन्या ग्रहण करनेमें समर्थ होगा ॥उस समय द्विजातिगण जिस-किसी उपायसे [अर्थात् | निषिद्ध द्रव्य आदिसे] भी ‘दीक्षित’ हो जायँगे और जैसी-तैसी क्रियाएँ ही प्रायश्चित्त मान ली जायँगी ॥ कलियुगमें जिसके मुखसे जो कुछ निकल जायगा वही शास्त्र समझा जायगा; उस समय सभी (भूत-प्रेत-मशान आदि) देवता होंगे और सभीके सब आश्रम होंगे॥ उपवास, तीर्थाटनादि कायक्लेश, धन-दान तथा तप आदि अपनी रुचिके अनुसार अनुष्ठान किये हुए ही धर्म समझे जायँगे ॥

कलियुग में अल्प धनसे ही लोगोंको धनाढ्यताका गर्व हो जायगा और केशोंसे ही स्त्रियोंको सुन्दरताका अभिमान होगा ॥  उस समय सुवर्ण, मणि, रत्न और वस्त्रोंके क्षीण हो जानेसे स्त्रियाँ केश-कलापोंसे ही अपनेको विभूषित करेंगी ॥  जो पति धनहीन होगा उसे स्त्रियाँ छोड़ देंगी। कलियुगमें धनवान् पुरुष ही स्त्रियोंका पति होगा ॥ जो मनुष्य [चाहे वह कितनाहू निन्द्य हो] अधिक धन देगा वही लोगोंका स्वामी होगा; यह धन-दानका सम्बन्ध ही स्वामित्वका कारण होगा, कुलीनता नहीं ॥ 

कलि में सारा द्रव्य-संग्रह घर बनानेमें ही समाप्त हो जायगा [दान-पुण्यादिमें नहीं], बुद्धि धन-संचयमें ही लगी रहेगी [आत्मज्ञानमें नहीं], सारी सम्पत्ति अपने उपभोगमें ही नष्ट हो जायगी [उससे अतिथि- सत्कारादि न होगा ] ॥ 

कलियुग की स्त्रियों का वर्णन

कलिकालमें स्त्रियाँ सुन्दर पुरुषकी कामनासे स्वेच्छाचारिणी होंगी तथा पुरुष अन्यायोपार्जित धनके इच्छुक होंगे॥ कलियुगमें अपने सुहृदोंके प्रार्थना करनेपर भी लोग एक-एक दमड़ीके लिये भी स्वार्थहानि नहीं करेंगे ॥  कलिमें ब्राह्मणोंके साथ शूद्र आदि समानताका दावा करेंगे और दूध देनेके कारण ही गौओंका सम्मान होगा ॥

उस समय सम्पूर्ण प्रजा क्षुधाकी व्यथासे व्याकुल हो प्रायः अनावृष्टिके भयसे सदा आकाशकी ओर दृष्टि लगाये रहेगी ॥ मनुष्य [ अन्नका अभाव होनेसे] तपस्वियोंके समान केवल कन्द, मूल और फल आदिके सहारे ही रहेंगे तथा अनावृष्टिके कारण दुःखी होकर आत्मघात करेंगे ॥

कलियुगमें असमर्थ लोग सुख और आनन्दके नष्ट हो जानेसे प्रायः सर्वदा दुर्भिक्ष तथा क्लेश ही भोगेंगे ॥कलिके आनेपर लोग बिना स्नान किये ही भोजन करेंगे, अग्नि, देवता और अतिथिका पूजन न करेंगे और न  पिण्डोदक क्रिया ही करेंगे ॥ 

उस समयकी स्त्रियाँ विषयलोलुप, छोटे शरीरवाली, अति भोजन करनेवाली, अधिक सन्तान पैदा करनेवाली और मन्दभाग्या होंगी ॥  वे दोनों हाथोंसे सिर खुजलाती हुई अपने गुरुजनों और पतियोंके आदेशका अनादरपूर्वक खण्डन करेंगी ॥  कलियुगकी स्त्रियाँ अपना ही पेट पालनेमें तत्पर, क्षुद्र चित्तवाली, शारीरिक शौचसे हीन तथा कटु और मिथ्या भाषण करनेवाली होंगी ॥  उस समयकी कुलांगनाएँ निरन्तर दुश्चरित्र पुरुषोंकी इच्छा रखनेवाली एवं दुराचारिणी होंगी तथा पुरुषोंके साथ असद्व्यवहार करेंगी ॥ 

ब्रह्मचारिगण वैदिक व्रत आदिसे हीन रहकर ही वेदाध्ययन करेंगे तथा गृहस्थगण न तो हवन करेंगे और न सत्पात्रको उचित दान ही देंगे ॥  वानप्रस्थ [वनके कन्द-मूलादिको छोड़कर ] ग्राम्य भोजनको स्वीकार करेंगे और संन्यासी अपने मित्रादिके स्नेह- बन्धनमें ही बँधे रहेंगे ॥ 

कलियुग में मनुष्य कैसे होंगे ?

कलियुगके आनेपर राजालोग प्रजाकी रक्षा नहीं करेंगे, बल्कि कर लेनेके बहाने प्रजाका ही धन छीनेंगे ॥ उस समय जिस-जिसके पास बहुत-से हाथी, घोड़े और रथ होंगे वह वह ही राजा होगा तथा जो-जो शक्तिहीन होगा वह वह ही सेवक होगा ॥ वैश्यगण कृषि-वाणिज्यादि अपने कर्मोंको छोड़कर शिल्पकारी आदिसे जीवन-निर्वाह करते हुए शूद्रवृत्तियों में ही लग जायँगे ॥  आश्रमादिके चिह्नसे रहित अधम शूद्रगण संन्यास लेकर भिक्षावृत्तिमें तत्पर रहेंगे और लोगोंसे सम्मानित होकर पाषण्ड-वृत्तिका आश्रय लेंगे ॥  प्रजाजन दुर्भिक्ष और करकी पीड़ासे अत्यन्त उपद्रवयुक्त और दुःखित होकर ऐसे देशोंमें चले जायँगे जहाँ गेहूँ और जौकी अधिकता होगी ॥ 

उस समय वेदमार्गका लोप, मनुष्यों में पाषण्डकी प्रचुरता और अधर्मकी वृद्धि हो जानेसे प्रजाकी आयु अल्प हो जायगी ॥ लोगोंके शास्त्रविरुद्ध घोर तपस्या करनेसे तथा राजाके दोषसे प्रजाओंकी बाल्यावस्थामें मृत्यु होने लगेगी ॥

कलिमें पाँच-छः अथवा सात वर्षकी स्त्री और आठ-नौ या दस वर्षके पुरुषोंके ही सन्तान हो जायगी ॥ बारह वर्षकी अवस्थामें ही लोगोंके बाल पकने लगेंगे और कोई भी व्यक्ति बीस वर्षसे अधिक जीवित न रहेगा ॥ कलियुगमें लोग मन्द-बुद्धि, व्यर्थ चिह्न धारण करनेवाले और दुष्ट चित्तवाले होंगे, इसलिये वे अल्पकालमें ही नष्ट हो जायँगे ॥ 

 जब-जब धर्मकी अधिक हानि दिखलायी दे तभी तभी बुद्धिमान् मनुष्यको कलियुगकी वृद्धिका अनुमान करना चाहिये ॥ जब-जब पाषण्ड बढ़ा हुआ दीखे तभी तभी महात्माओंको कलियुगकी वृद्धि समझनी चाहिये ॥ जब-जब वैदिक मार्गका अनुसरण करनेवाले सत्पुरुषोंका अभाव हो तभी तभी बुद्धिमान् मनुष्य कलिकी वृद्धि हुई जाने ॥ 

जब धर्मात्मा पुरुषोंके आरम्भ किये हुए कार्योंमें असफलता हो तब पण्डितजन कलियुगकी प्रधानता समझें ॥ जब-जब यज्ञोंके अधीश्वर भगवान् पुरुषोत्तमका लोग यज्ञोंद्वारा यजन न करें तब-तब कलिका प्रभाव ही समझना चाहिये ॥ जब वेद-वादमें प्रीतिका अभाव हो और पाषण्डमें प्रेम हो तब बुद्धिमान् प्राज्ञ पुरुष कलियुगको बढ़ा हुआ जानें ॥ 

कलियुगमें लोग पाषण्डके वशीभूत हो जानेसे सबके रचयिता और प्रभु जगत्पति भगवान् विष्णुका पूजन नहीं करेंगे ॥ उस समय लोग पाषण्डके वशीभूत होकर कहेंगे-‘इन देव, द्विज, वेद और जलमे होनेवाले शौचादिमें क्या रखा है ? ‘ ॥  कलिके आनेपर वृष्टि अल्प जलवाली होगी, खेती थोड़ी उपजवाली होगी और फलादि अल्प सारयुक्त होंगे ॥ कलियुगमें प्रायः सनके बने हुए सबके वस्त्र होंगे, अधिकतर शमीके वृक्ष होंगे और चारों वर्ण बहुधा शूद्रवत् हो जायँगे ॥  कलिके आनेपर धान्य अत्यन्त अणु होंगे, प्रायः बकरियोंका ही दूध मिलेगा और उशीर (खस) ही एकमात्र अनुलेपन होगा ॥

 

 कलियुगमें सास और ससुर ही लोगोंके गुरुजन होंगे और हृदयहारिणी भार्या तथा साले ही सुहृद् होंगे ॥ लोग अपने ससुरके अनुगामी होकर कहेंगे कि ‘कौन किसका पिता है और कौन किसकी माता; सब पुरुष अपने कर्मानुसार जन्मते-मरते रहते हैं’ ॥

उस समय अल्पबुद्धि पुरुष बारम्बार वाणी, मन और शरीरादिके दोषोंके वशीभूत होकर प्रतिदिन पुनः- पुनः पापकर्म करेंगे ॥ शक्ति, शौच और लज्जाहीन पुरुषोंको जो-जो दुःख हो सकते हैं कलियुगमें वे सभी दुःख उपस्थित होंगे ॥  उस समय संसारके स्वाध्याय और वषट्कारसे हीन तथा स्वधा और स्वाहासे वर्जित हो जानेसे कहीं-कहीं कुछ-कुछ धर्म रहेगा ॥  किंतु कलियुगमें मनुष्य थोड़ा-सा प्रयत्न करनेसे ही जो अत्यन्त उत्तम पुण्यराशि प्राप्त करता है वही सत्ययुगमें महान् तपस्यासे प्राप्त किया जा सकता है ॥ 

 

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