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कलियुग का स्वरूप

कलियुग

कलियुग में मनुष्यों की प्रवृत्ति धर्मानुकूल नहीं रहती। उस समय गुरुओ का सम्मान, बड़ो का सम्मान, यज्ञ क्रिया भी नहीं रहता । कलियुग में जो बलवान होगा वहीं सबका स्वामी होगा। कलियुग में अल्प धनसे ही, लोगों को धनान्यता का गर्व हो जाएगा और केशों से ही स्त्रियों को सुन्दरता का अभिमान होगा न कि सुवर्ण, मणि, रत्न और क्स्त्रों से । कलियुग में मनुष्यों में धन की अधिक लालसा होगी । अधिक धन न होने पर स्त्रियाँ पतियों का त्याग कर देंगी। जो मनुष्य (चाहे कितना ही निन्द क्यों न हो)अधिक धन देगा वही लोगों का स्वामी होगा।

धन और सौंदर्य की अवधारणा

कलियुग में लोग बुद्धि का प्रयोग आत्मज्ञान में नहीं बल्कि धनसंचय में ही लगा देंगे । कलियुग में भाई- भाई का दुश्मन होगा। सभी व्यक्ति स्वार्थी होंगे ! कलि अने पर लोग बिना स्नान किये ही भोजन करेंगे। तथा अग्नि, देवता और अतिथि का पूजने न करेंगे। कलियुग में स्त्रियों गुरुजनों व पतियों के आदेश का अनादर करेंगी।

युवावस्था और दीर्घायु की कमी

कलि में पाँच-छः अथवा सात व वर्ष की स्त्री और आठ-नौ’ या दस वर्ष के पुरुषों के ही सन्तान हो जाएगी। बारह वर्ष की अवस्था में ही लोगों के बाल पकने लगेंगे और कोई भी व्यक्ति बीस वर्ष से अधिक, जीवित न रहेगा।

दुर्जन और लोभ का प्रबलता

कलियुग में दुर्जन लोगों का ही लाभ होगा। कलियुग में लोभ, मोह, कुदृष्टि, कुबुद्धि जैसे गुणों का ज्यादा दबदबा होगा। और दिन-प्रतिदिन धर्म की हानि होगी। कलियुग में लोग भगवान का पूजन नहीं करेंगे बल्कि उनकी निन्दा करेंगे। कलियुग में वृष्टि बहुत ही अल्प होगी और खेती भी अधिक उपज वाली न होंगी। कलियुग में लोग प्रतिदिन पुन:- पुन: पाप करेंगे । उस समय संसार के

धर्म का क्षीण अस्तित्व

स्वाध्याय और वषट्कार से हीन तथा स्वधा और स्वाहा से वर्जित हो जाने से कहीं-कहीं कुछ-कुछ धर्म रहेगा।

कलियुग में एक विशेष अच्छाई

कलियुग की इतनी बुराइयां होने के कारण भी एक अच्छाई है. जो इतनी बुराइयों को कम करने के लिए अधिक है। कलियुग में मनुष्य थोड़ा-सा प्रयत्न करने से ही ईश्वर को प्राप्त कर लेगा। वह ऐसा पुण्यफलप्राप्त कर सकेगा जो सतयुग में तपस्या से प्राप्त किया जा सकता था। कलियुग में केवल ईश्वरका नाम लेने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी।

तुलसीदास जी का कथन

रामचरित मानस में भी तुलसीदास जी ने इस कथन को एक चौपाई द्वारा स्पष्ट किया है जो हैं “कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पारा । अर्थात कलियुग का आधार केवल ईश्वर, का नाम है और इसी का गुणगान करके मनुष्य इस भवसागर से पार हो जाएगा।

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FAQs

कलियुग में धर्म और गुरु-सम्मान की कमी क्यों होती है?

कलियुग में मनुष्यों की प्रवृत्ति धर्मानुकूल नहीं होती और गुरु-सम्मान का अभाव होता है। लोग स्वार्थ और धन के पीछे भागते हैं, जिससे धार्मिक कार्यों, गुरु और बड़ों का सम्मान कम हो जाता है।

कलियुग में धन और सौंदर्य की अवधारणा क्या है?

कलियुग में धन और सौंदर्य की अवधारणा पूरी तरह भौतिक होती है। लोग अल्प धन से ही गर्व करते हैं, और स्त्रियाँ केशों से अपनी सुंदरता का माप करती हैं, न कि गुणों या आभूषणों से। समाज में धन का अधिक महत्व होता है, और लोग धन के पीछे नैतिकता को भूल जाते हैं।

कलियुग में युवावस्था और दीर्घायु की कमी का क्या कारण है?

कलियुग में लोग अल्पायु हो जाते हैं। पाँच-छः वर्ष की आयु की स्त्रियाँ और आठ-दस वर्ष के पुरुष माता-पिता बन जाते हैं, और लोगों के बाल बारह वर्ष की आयु में ही सफेद हो जाते हैं। बीस वर्ष की उम्र के बाद अधिकांश लोग जीवित नहीं रहते।

कलियुग में दुर्जनता और लोभ का क्या प्रभाव होता है?

कलियुग में दुर्जनता और लोभ प्रबल होते हैं। लोग स्वार्थ, लोभ, और कुबुद्धि के कारण धर्म और ईश्वर की निंदा करते हैं। धर्म का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जाता है, और लोग प्रतिदिन पाप करने लगते हैं।

कलियुग की एक विशेष अच्छाई क्या है?

कलियुग की एक विशेष अच्छाई यह है कि थोड़े से प्रयास में भी मनुष्य ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। सतयुग में जो पुण्य तपस्या से प्राप्त होता था, वह कलियुग में केवल ईश्वर के नाम का स्मरण करने से ही प्राप्त हो सकता है।

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कलियुग के बारे में क्या कहा है?

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कहा है कि “कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पारा।” इसका अर्थ है कि कलियुग का आधार केवल ईश्वर का नाम है, और जो व्यक्ति ईश्वर का स्मरण करता है, वह इस भवसागर से पार हो जाता है।


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