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कलि युग का वर्णन

कलि युग

कलि युग का वर्णन

प्राप्ते कलियुगे घोरे नराः पुण्यविवर्जिताः ।

दुराचाररताः सर्वे सत्यवार्ताः पराङ्मुखाः ।।1।।

पूर्व द्वितीय अध्याय में पुत्र सम्बन्धी सुख का कथन करा अब तृतीये अध्याय में कलि का कथन करते हैं। शिवपुराण में कहा है कि घोर कलियुग के प्राप्त होने पर सर्वपुरुष पुण्य धर्म-कर्म से हीन हो जावेंगे और सर्व पुरुष सत्य भाषण आदि से रहित हुए, बहिर्मुख दुराचार में प्रीति वाले हो जावेंगे ||1||

देहात्मदृष्टयो मूढ़ा नास्तिकाः पशुबुद्धयः ।

मातापितृकृतद्वेषाः स्त्रीदेवाः कामकिंकराः ||2||

कलियुग में मूढ़ पुरुष अनित्य जड़ दुःख रूप देह में आत्मबुद्धि वाले हो जावेंगे और यदि कोई विद्वान् सत्य ज्ञान सुख स्वरूप आत्मा के बोध की शिक्षा देंगे तो तिस शास्त्रीय शिक्षा को न मानकर नास्तिक हो जायेंगे। यदि कोई वेदशास्त्रों के मानने वाले आस्तिक भी होंगे तो आत्मविचार करने में तो विशेषकर पशु बुद्धिवाले होंगे और माता-पिता पूज्य वर्ग के साथ में द्वेष करने वाले होंगे। ऐसे कलियुगी पुरुष अतिशय करके काम के ही दास होंगे और उनका स्त्री ही केवल ब्रह्मदेव पूजनीय प्रधान देवता होगा ऐसे स्त्री भक्त धर्म- कर्म-हीन पुरुषों के नरकों में वास करने में संदेह नहीं करना ||2||

आयुर्मेधा बलं रूपं कुलं चैव प्रणश्यति ।

शूद्राश्च ब्राह्मणाचाराः शूद्राचाराश्च ब्राह्मणाः ||3||

ब्रह्माण्ड पुराण में कहा है कि कलियुग में पुरुषों की आयु और आत्मविचार की बुद्धि तथा शारीरिक बल और सुन्दर रूप और शुभ कुलीनता यह सर्व नष्ट हो जायेंगे। ब्राह्मणों के आचरण वाले शूद्र हो जायेंगे और शूद्र के आचरण वाले ब्राह्मण हो जायेंगे। ऐसी पुण्य आत्माओं को रोमाञ्चकारी अद्भुत घटना कलियुग की होगी ||3||

वेदशास्त्रावलम्बास्ते भविष्यन्ति कलौ युगे ।

कटकारास्ततः पश्चान्नारायणगणाः स्मृता ||4||

उशना स्मृति में कहा है कि कलियुग में कटकारा आदि जातियों वाले भी वेदशास्त्रों के अवलम्बन करने वाले हो जायेंगे तिससे पश्चात् नारायण के गण कहे जायेंगे ||4||

घोरे कलियुगे विप्र पञ्चवर्षा प्रसूयते ।

सप्तवर्षाष्टवर्षाश्च युवानतः परे जरा ||5||

नारदीय पुराण में कहा है कि घोर कलियुग के प्राप्त होने पर, हे विप्र । पाँच वर्ष की स्त्री, पुत्र-पुत्रियों को उत्पन्न करने लग जायेगी, सप्त वा अष्ट वर्ष पर्यन्त स्त्री की युवा अवस्था होगी इससे उपरान्त वृद्ध हो जाया करेगी। बारह वर्ष की दीर्घ आयु वाली स्त्री महादीर्घ आयु वाली मानी जायगी ||5||

कलेदोंषनिधेस्तात गुण एको महानपि ।

मानसं च भवेत्पुण्यं सुकृतं न हि दुष्कृतम् ।।6।।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में नन्दजी ने कृष्णचन्द्रजी से पूछा कि हे कृष्णचन्द्र । कलियुग के दोषों से दूषित पुरुषों का कैसे कल्याण होगा। कलियुगी पुरुषों का मन तो सदा पापसंकल्पकारी सुना जाता है। तब कृष्णचन्द्रजी ने कहा हे तात ! दोषों के निधि कलियुग का एक गुण महान् शुभकारी है यदि यह शुभ गुण न होगा तो पुरुषों का कल्याण कभी न हो सकता था। सो गुण क्या है कि कलियुग में शुभ कर्मों का मन में संकल्प करने से ही पुण्य होता है और मानसी दुष्ट कर्म करने से पाप नहीं होता है ||6||

शालग्रामो हरेर्मूर्तिर्जगन्नाथश्च भारतम् ।

कलेर्दशसहस्रान्ते ययौ त्यक्त्वा हरेः पुरम् ।।7।।

कलियुग के दस हजार वर्ष बीत जाने पर शालग्राम और हरि की प्रतिमा रूप मूर्ति और जगन्नाथजी ये सर्व भारतवर्ष को त्याग करके हरि के वैकुण्ठ लोक को पधार जायेंगे ||7||

म्लेच्छशास्त्रं पठिष्यन्ति स्वशास्त्राणि विहाय च ।

ब्रह्मक्षत्रविशां वंशाः शूद्राणां सेवकाः कलौ ।।8।।

और कलियुग में देवपूजन श्राद्ध-कर्म-धर्म और ईश्वर के अवतारों को प्रतिपादन करने वाले स्व सनातनी शात्रों को त्यागकर पुरुष देवपूजा, श्राद्ध-कर्म-धर्म, ईश्वर की कथाओं से हीन म्लेच्छशास्त्रों को पढ़ा करेंगे और कलियुग में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों के शुभ वंश शूद्रों के सेवक हुआ करेंगे।।8।।

एवं कलौ संप्रवृत्ते सर्वे म्लेच्छमये भवे ।

हस्तप्रमाणे वृक्षे चांगुष्ठमाने च मानवे ।।9।।

ऐसे कलियुग के घोर संप्रवर्तन होने पर सर्व संसार के म्लेच्छ रूप होने पर और एक हाथ के प्रमाण वाले वृक्ष होने पर और अंगुष्ठ प्रमाण के पुरुष उत्पन्न होने पर और सर्व वस्तुओं के शक्तिहीन होने पर सर्व वस्तुओं के संकोच को प्राप्त हो जाने पर ।।9।।

विप्रस्य विष्णुयशसः पुत्रः कल्किर्भविष्यति ।

नारायणकलांशश्च बलिनां च बली प्रभुः ।।10।।

और जब धर्मशील कुलीन पुरुषों के गृहों में परंपरा से धर्म-कर्म और वेदशास्त्रों का नियम से पारायण, कथा, हरिकीर्तन आदि शुभ आचरण लुप्त हो जावेगा तब कलि और अधर्मकारियों के शासक, अन्तर्यामी परमात्मा नारायण की कला, सर्वशक्तिमान् बलियों में प्रधानबली, सर्व के रक्षक, सनातन धर्म के स्थापक, दुष्ट धर्म धातकों के प्राणहारी, साधु ब्राह्मण गो हितकारी, कृष्णमुरारी, सारङ्ग धनुष चक्र के धारी, म्लेच्छों के संहारी, कल्कि भगवान् विष्णुयश ब्राह्मण के पुत्र भाव से शम्भल नामक ग्राम में खङ्गधारी धर्महितकारी प्रगट होंगे और म्लेच्छों का नाशकर सतयुग का प्रवर्तन करेंगे ।।10।।

मन्वन्तरं तु दिव्यानां युगानामेकसप्तति ।

चतुर्दशसु मनुषु गतेषु ब्रह्मणो दिनम् ||11||

ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा है कि देवसम्बन्धी युगों के इकहत्तर युगों की मनु की आयु है, इतनी ही इन्द्र की आयु है और चौदह इन्द्रों के व्यतीत हो जाने पर अथवा चौदह मनु के व्यतीत हो जाने पर ब्रह्मा का एक दिन होता है।।11।।

अष्टाविंशतिमे चेन्द्रे गते ब्रह्मणोऽहर्निशम् ।

अष्टोत्तरे वर्षशते गते पातश्च ब्रह्मणः ||12||

अट्ठाईस (28) इन्द्रों के व्यतीत हो जाने पर अथवा अट्ठाईस (28) मनुओं के व्यतीत हो जाने पर ब्रह्मा की एक रात्रि और एक दिन कहे जाते हैं। ऐसे दिन रात्रि के हिसाब से एक सौ आठ (108) वर्ष व्यतीत हो जाने पर ब्रह्मा का पात हो जाता है, ब्रह्मा की आयु पूरी हो जाती है।। पुरुष के वर्षों की संख्या से दो परार्ध वर्ष ब्रह्मा की आयु है ।।12।।

 

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