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52. कुरु वंश का वर्णन

कुरु

कुरु पुत्र परीक्षित् के वंशज

परीक्षित् के पुत्र

[ कुरुपुत्र ] परीक्षित्के जनमेजय , श्रुतसेन , उग्रसेन और भीमसेन नामक चार पुत्र हुए ॥

जनु के वंशज

जनु के सुरथ नामक एक पुत्र हुआ ॥ सुरथ के विदूरथ का जन्म हुआ । विदूरथ के सार्वभौम , सार्वभौम के जयत्सेन , जयत्सेनके आराधित , आराधित के अयुतायु , अयुतायु के अक्रोधन , अक्रोधन के देवातिथि तथा देवातिथिके [ अजमीढके पुत्र ऋक्षसे भिन्न ] दूसरे ऋक्ष का जन्म हुआ ॥

ऋक्ष से भीमसेन , भीमसेनसे दिलीप और दिलीप से प्रतीप कपुत्र हुआ । नामक प्रतीप के देवापि , शान्तनु और बाह्रीक नामक तीन पुत्र हुए ॥ इनमेंसे देवापि बाल्यावस्थामें ही वनमें चला गया था अतः शान्तनु ही राजा हुआ ॥ उसके विषय में पृथिवी तलपर यह श्लोक कहा जाता है ॥

शान्तनु का राज्यकाल

” [ राजा शान्तनु ] जिसको जिसको अपने हाथसे स्पर्श कर देते थे वे वृद्ध पुरुष भी युवावस्था प्राप्त कर लेते थे तथा उनके स्पर्शसे सम्पूर्ण जीव अत्युत्तम शान्तिलाभ करते थे , इसलिये वे शान्तनु कहलाते थे ” ॥ एक बार महाराज शान्तनुके राज्यमें बारह वर्षतक वर्षा न हुई ॥ उस समय सम्पूर्ण देशको नष्ट होता देखकर राजाने ब्राह्मणोंसे पूछा – ‘ हमारे राज्यमें वर्षा क्यों नहीं हुई ? इसमें मेरा क्या अपराध है ? ‘ तब ब्राह्मणोंने उससे कहा- ‘ यह राज्य तुम्हारे बड़े भाईका है किन्तु इसे तुम भोग रहे हो इसलिये तुम परिवेत्ता हो ।

‘ उनके ऐसा कहनेपर राजा शान्तनुने उनसे फिर पूछा – ‘ तो इस सम्बन्धमें मुझे अब क्या करना चाहिये ? ‘ इसपर वे ब्राह्मण फिर बोले – ‘ जबतक तुम्हारा बड़ा भाई देवापि किसी प्रकार पतित न हो तबतक यह राज्य उसीके योग्य है ॥ अतः तुम इसे उसीको दे डालो , तुम्हारा इससे कोई प्रयोजन नहीं । ‘ ब्राह्मणों के ऐसा कहनेपर शान्तनुके मन्त्री अश्मसारीने वेदवादके विरुद्ध बोलनेवाले तपस्वियोंको वनमें नियुक्त किया ॥ उन्होंने अतिशय सरलमति राजकुमार देवापिकी बुद्धिको वेदवादके विरुद्ध मार्गमें प्रवृत्त कर दिया ॥ उधर राजा शान्तनु ब्राह्मणोंके कथनानुसार दुःख और शोकयुक्त होकर ब्राह्मणोंको आगे कर अपने बड़े भाईको राज्य देनेके लिये वनमें गये ॥

वनमें पहुँचने पर वे ब्राह्मणगण परम विनीत राजकुमार देवापिके आश्रमपर उपस्थित हुए ; और उससे ज्येष्ठ भ्राताको ही राज्य करना चाहिये’- इस अर्थके समर्थक अनेक वेदानुकूल वाक्य कहने लगे ॥ किन्तु उस समय देवापिने वेदवादके विरुद्ध नाना प्रकारकी युक्तियोंसे दूषित बातें कीं ॥ तब उन ब्राह्मणोंने शान्तनुसे कहा- ॥ ” हे राजन् ! चलो , अब यहाँ अधिक आग्रह करनेकी आवश्यकता नहीं । अब अनावृष्टिका दोष शान्त हो गया ।

अनादिकाल से पूजित वेदवाक्यों में दोष बतलानेके कारण देवापि पतित हो गया है ॥ ज्येष्ठ भ्राताके पतित हो जानेसे अब तुम परिवेत्ता नहीं रहे । ” उनके ऐसा कहनेपर शान्तनु अपनी राजधानीको चले आये और राज्यशासन करने लगे ॥ वेदवादके विरुद्ध वचन बोलनेके कारण देवापिके पतित हो जानेसे , बड़े भाईके रहते हुए भी सम्पूर्ण धान्योंकी उत्पत्तिके लिये पर्जन्यदेव ( मेघ ) बरसने लगे ॥

बाह्रीक के वंशज

बाह्रीकके सोमदत्त नामक पुत्र हुआ तथा सोमदत्तके भूरि भूरिश्रवा और शल्य नामक तीन हुए ॥ शान्तनुके गंगाजीसे अतिशय कीर्तिमान् तथा सम्पूर्ण शास्त्रोंका जाननेवाला भीष्म नामक पुत्र हुआ ॥ शान्तनुने सत्यवतीसे चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र और भी उत्पन्न किये ॥ उनमेंसे चित्रांगदको तो बाल्यावस्थामें ही चित्रांगद नामक गन्धर्वने युद्धमें मार डाला ॥

विचित्रवीर्य की पत्नियाँ

विचित्रवीर्य ने काशिराजकी पुत्री अम्बिका और अम्बालिकासे वाह किया ॥ उनमें अत्यन्त भोगासक्त रहनेके कारण अतिशय खिन्न रहनेसे वह यक्ष्माके वशीभूत होकर [ अकालहीमें ] मर गया ॥

कृष्णद्वैपायन के वंशज

तदनन्तर मेरे पुत्र कृष्णद्वैपायन ने सत्यवती के नियुक्त करने से माता का वचन टालना उचित न जान विचित्रवीर्य की पत्नियों से धृतराष्ट्र और पाण्डु नामक दो पुत्र उत्पन्न किये और उनकी भेजी हुई दासीसे विदुर नामक एक पुत्र उत्पन्न किया ॥ आदि धृतराष्ट्रने भी गान्धारीसे दुर्योधन और दुःशासन सौ पुत्रोंको जन्म दिया ॥ पाण्डु वनमें आखेट करते समय ऋषिके शापसे सन्तानोत्पादनमें असमर्थ हो गये थे अतः उनकी स्त्री कुन्तीसे धर्म , वायु और इन्द्रने क्रमशः युधिष्ठिर , भीम और अर्जुन नामक तीन पुत्र तथा माद्रीसे दोनों अश्विनीकुमारोंने नकुल और सहदेव नामक दो पुत्र उत्पन्न किये । इस प्रकार उनके पाँच पुत्र हुए ॥ उन पाँचोंके द्रौपदीसे पाँच ही पुत्र हुए ॥

उनमें से युधिष्ठिर से प्रतिविन्ध्य , भीमसेनसे श्रुतसेन , अर्जुनसे श्रुतकीर्ति , नकुलसे श्रुतानीक तथा सहदेवसे श्रुतकर्माका जन्म हुआ था ॥ इनके अतिरिक्त पाण्डवोंके और भी कई पुत्र हुए ॥ जैसे- युधिष्ठिरसे यौधेयीके देवक नामक पुत्र हुआ , भीमसेनसे हिडिम्बाके घटोत्कच और काशीसे सर्वग नामक पुत्र हुआ , सहदेवसे विजयाके सुहोत्रका जन्म हुआ , नकुलने रेणुमतीसे निरमित्रको उत्पन्न किया ॥ अर्जुनके नागकन्या उलूपीसे इरावान् नामक पुत्र हुआ ॥ मणिपुर नरेशकी पुत्रीसे अर्जुन पुत्रिका – धर्मानुसार बभ्रुवाहन नामक एक पुत्र उत्पन्न किया ॥ तथा उसके सुभद्रासे अभिमन्युका जन्म हुआ जो कि बाल्यावस्थामें ही बड़ा बल – पराक्रम सम्पन्न तथा अपने सम्पूर्ण शत्रुओंको जीतनेवाला था ॥

उपसंहार

तदनन्तर कुरुकुल के क्षीण हो जानेपर जो अश्वत्थामा प्रहार किये हुए ब्रह्मास्त्रद्वारा गर्भमें ही भस्मीभूत हो चुका था किन्तु फिर , जिन्होंने अपनी इच्छासे ही माया – मानव – देह धारण किया है उन सकल सुरासुरवन्दितचरणारविन्द श्रीकृष्णचन्द्रके प्रभावसे पुनः जीवित हो गया ; उस परीक्षितूने अभिमन्युके द्वारा उत्तराके गर्भसे जन्म लिया जो कि इस समय इस प्रकार धर्मपूर्वक सम्पूर्ण भूमण्डलका शासन कर रहा है कि जिससे भविष्यमें भी उसकी सम्पत्ति क्षीण न हो ॥

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