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57. वसुदेवजी की सन्तति का वर्णन

वसुदेवजी

वसुदेवजी के परिवार के सदस्य

वसुदेवजी की पत्नियाँ

आनकदुन्दुभि वसुदेवजी के पौरवी , रोहिणी , मदिरा , भद्रा और देवकी आदि बहुत – सी स्त्रियाँ थीं ॥

रोहिणी के पुत्र

उनमें रोहिणी से वसुदेवजी ने बलभद्र , शठ , सारण और दुर्मद आदि कई पुत्र उत्पन्न किये ॥

बलभद्रजी के पुत्र (रेवती से)

तथा बलभद्रजी के रेवती से विशठ और उल्मुक नामक दो पुत्र हुए ॥

सारण के पुत्र

साष्टि , माष्टि , सत्य और धृति आदि सारणके पुत्र थे ॥ इनके अतिरिक्त भद्राश्व , भद्रबाहु , दुर्दम और भूत आदि भी रोहिणी ही की सन्तान में थे ॥

अन्य पत्नियों के पुत्र

नन्द , उपनन्द और कृतक आदि मदिराके तथा उपनिधि और गद आदि भद्रा के पुत्र थे ॥ वैशालीके गर्भ से कौशिक नामक केवल एक ही पुत्र हुआ ॥ आनकदुन्दुभि के देवकी से कीर्तिमान् , सुषेण , उदायु , भद्रसेन , ऋजुदास तथा भद्रदेव नामक छ : पुत्र हुए ॥ इन सबको कंस ने मार डाला था ॥ पीछे भगवान्‌ की प्रेरणा से योगमाया ने देवकी के सातवें गर्भ को आधी रात के समय खींचकर रोहिणी की कुक्षि में स्थापित कर दिया ॥ आकर्षण करने से इस गर्भ का नाम संकर्षण हुआ ॥

वसुदेवजी का अवतार

तदनन्तर सम्पूर्ण संसाररूप महावृक्ष के मूल स्वरूप भूत , भविष्यत् और वर्तमान कालीन सम्पूर्ण देव , असुर और मुनिजनकी बुद्धि के अगम्य तथा ब्रह्मा और अग्नि आदि देवताओं द्वारा प्रणाम करके भूभार हरण के लिये प्रसन्न किये गये आदि , मध्य और अन्तहीन भगवान् वासुदेव ने देवकी के गर्भ से अवतार लिया तथा उन्हीं की कृपा से बढ़ी हुई महिमावाली योगनिद्रा भी नन्दगोप की पत्नी यशोदा के गर्भ में स्थित हुई ॥ उन कमलनयन भगवान्के प्रकट होनेपर यह सम्पूर्ण जगत् प्रसन्न हुए सूर्य , चन्द्र आदि ग्रहोंसे सम्पन्न सर्पादि के भय से शून्य , अधर्मादि से रहित तथा स्वस्थचित्त हो गया ॥

वसुदेवजी की पत्नियाँ और संतान

उन्होंने प्रकट होकर इस सम्पूर्ण संसार को सन्मार्गावलम्बी कर दिया ॥ इस मर्त्यलोक में अवतीर्ण हुए भगवान्‌ की सोलह हजार एक सौ एक रानियाँ थीं ॥ उनमें रुक्मिणी , सत्यभामा , जाम्बवती और चारुहासिनी आदि आठ मुख्य थीं ॥ अनादि भगवान् अखिलमूर्ति ने उनसे एक लाख अस्सी हजार पुत्र उत्पन्न किये ॥ उनमें से प्रद्युम्न , चारुदेष्ण और साम्ब आदि तेरह पुत्र प्रधान थे ॥ प्रद्युम्नने भी रुक्मी की पुत्री रुक्मवती से विवाह किया था ॥ उससे अनिरुद्ध का जन्म हुआ ॥ अनिरुद्ध ने भी रुक्मी की पौत्री सुभद्रा से विवाह किया था ॥ उससे वज्र उत्पन्न हुआ ॥ वज्रका पुत्र प्रतिबाहु तथा प्रतिबाहुका सुचारु था ॥

यदुकुल की विशेषताएँ

इस प्रकार सैकड़ों हजार पुरुषों की संख्यावाले यदुकुलकी सन्तानों की गणना सौ वर्षमें भी नहीं की जा सकती ॥ क्योंकि इस विषयमें ये दो श्लोक चरितार्थ हैं— ॥ जो गृहाचार्य यादवकुमारोंको धनुर्विद्याकी शिक्षा देनेमें तत्पर रहते थे उनकी संख्या तीन करोड़ अट्ठासी लाख थी , फिर उन महात्मा यादवोंकी गणना तो कर ही कौन सकता है ? जहाँ हजारों और लाखोंकी संख्या में सर्वदा यदुराज उग्रसेन रहते थे ॥

देवासुर संग्राम और यदुवंश

देवासुर संग्राम में जो महाबली दैत्यगण मारे गये थे वे मनुष्यलोकमें उपद्रव करनेवाले राजालोग होकर उत्पन्न हुए ॥ उनका नाश करनेके लिये देवताओं ने यदुवंश में जन्म लिया जिसमें कि एक सौ एक कुल थे ॥ उनका नियन्त्रण और स्वामित्व भगवान् विष्णु ने ही किया । वे समस्त यादवगण उनकी आज्ञानुसार ही वृद्धि को प्राप्त हुए ॥

वृष्णि वंश का विवरण

इस प्रकार जो पुरुष इस वृष्णि वंश को उत्पत्ति के विवरण को सुनता है वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त कर लेता है ॥

 

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