विजया दशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है, और इसे विभिन्न रूपों में पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। विजया दशमी का धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व है।
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विजया दशमी का धार्मिक महत्त्व
विजया दशमी भगवती दुर्गा के ‘विजया’ नाम के आधार पर मनाई जाती है। यह पर्व नवरात्रि के नौ दिनों के उपरांत आता है, जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन भगवान रामचन्द्रजी ने लंका के राजा रावण को पराजित कर विजय प्राप्त की थी। इसीलिए इस पर्व को विजय का पर्व कहा जाता है।
बंगाल और उत्तर भारत में यह दिन विशेष रूप से दुर्गा पूजा और रामलीला के साथ जोड़ा जाता है। जहाँ एक ओर बंगाल में माँ दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, वहीं उत्तर भारत में रामलीला के समापन पर रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मनाया जाता है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, विजया दशमी के साथ कई पौराणिक घटनाएँ जुड़ी हुई हैं। एक कथा के अनुसार, अर्जुन ने अपने तेरहवें वर्ष के अज्ञातवास में शमी वृक्ष पर अपना धनुष गांडीव छुपाया था, और इसी वृक्ष से धनुष निकालकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए, शमी वृक्ष की पूजा इस दिन विशेष रूप से की जाती है।
महाभारत काल में, पांडवों के वनवास और अज्ञातवास की घटना भी इस पर्व से जुड़ी है। पांडवों ने अपने अंतिम वर्ष में अज्ञातवास में शमी वृक्ष का उपयोग किया था, और विजया दशमी के दिन अर्जुन ने इसी वृक्ष से अपने हथियार उठाकर अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। इसीलिए शमी वृक्ष की पूजा इस दिन विशेष रूप से की जाती है।
उत्सव और अनुष्ठान
विजया दशमी के दिन दुर्गा पूजन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रणाम, शमीपूजन, और नवरात्र पारण का विशेष महत्त्व है। क्षत्रियों के लिए यह दिन विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण होता है। वे इस दिन शस्त्र पूजन करते हैं और अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हैं। व्यापारियों के लिए बहीखाता पूजन का महत्त्व होता है, जबकि ब्राह्मण सरस्वती पूजन करते हैं।
यह पर्व सम्पूर्ण राष्ट्र में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है, जिसमें दुर्गा विसर्जन, रामलीला, और रावण दहन प्रमुख हैं। खासकर, रावण दहन इस पर्व का मुख्य आकर्षण होता है, जिसमें बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाया जाता है।
कथा
एक बार पार्वतीजी ने शिवजी से दशहरे के त्यौहार के फल के बारे में पूछा। शिवजी ने उत्तर दिया- “आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय “विजय” नामक काल होता है, जो सब इच्छाओं को पूर्ण करने वाला होता है। इस दिन यदि श्रवण नक्षत्र का योग हो तो और भी शुभ है। भगवान रामचन्द्रजी ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त किया था। इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन का गांडीव नामक धनुष धारण किया था।”
पार्वतीजी बोलीं-“शमी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष कब और किस कारण धारण किया था तथा रामचन्द्रजी से कब और कैसी प्रिय वाणी कही थी, सो कृपा कर मुझे समझाइये।”
शिवजी ने जवाब दिया- “दुर्योधन ने पांडवों को जुए में पराजित कर बारह वर्ष का वनवास तथा तेरहवें वर्ष में अज्ञात वास की शर्त रखी थी। तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जायेगा तो उन्हें पुनः बारह वर्ष का वनवास भोगना होगा। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष को शमी वृक्ष पर छुपाया था तथा स्वयं बृहन्नला के वेश में राजा विराट के पास नौकरी की थी।
जब गौ रक्षा के लिए विराट के पुत्र कुमार ने अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपना धनुष उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। विजया दशमी के दिन रामचन्द्रजी के लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने रामचन्द्रजी की विजय का उद्घोष किया था। विजय काल में शमी पूजन इसीलिए होता है।”
एक बार रके पूछने पर युधिष्ठिर के र श्रीकृष्णजी ने उन्हें बताया था कि-‘ -“विजया दशमी के दिन राजा को स्वयं अलंकृत होकर अपने दासों और हाथी-घोड़ों को सजाना चाहिए। उस दिन अपने पुरोहित को साथ लेकर पूर्व दिशा में प्रस्थान करके दूसरे राजा की सीमा में प्रवेश करना चाहिए तथा वहाँ वास्तु पूजा करके अष्ट-दिग्पालों तथा पार्थ देवता की वैदिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए। शत्रु की मूर्ति अथवा पुतला बनाकर उसकी छाती में बाण मारना चाहिए तथा पुरोहित वेद मंत्रों का उच्चारण करें। ब्राह्मणों की पूजा करके हाथी, घोड़ा, अस्त्र, शख का निरीक्षण करना चाहिए। जो राजा इस विधि से विजय प्राप्त करता है, वह सदा अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करता है।
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FAQs
विजया दशमी का क्या महत्त्व है?
विजया दशमी अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। यह पर्व भगवान राम की रावण पर विजय, दुर्गा पूजा के समापन, और अर्जुन द्वारा शमी वृक्ष से अपने धनुष निकालकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की कथा से जुड़ा हुआ है।
विजया दशमी का अन्य नाम क्या है?
विजया दशमी को दशहरा भी कहा जाता है। यह पर्व ‘विजय’ और ‘दशहरा’ के रूप में मनाया जाता है, जिसका अर्थ होता है ‘दस सिर वाले रावण पर विजय’।
शमी वृक्ष की पूजा क्यों की जाती है?
शमी वृक्ष की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार, अर्जुन ने अपने अज्ञातवास के दौरान इसी वृक्ष पर अपना धनुष गांडीव छुपाया था। शमी वृक्ष को विजय का प्रतीक माना जाता है।
दशहरे के दिन कौन-कौन से अनुष्ठान किए जाते हैं?
इस दिन दुर्गा पूजन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रणाम, शमीपूजन, नवरात्र पारण, और दुर्गा विसर्जन जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं। इसके अलावा, क्षत्रिय शस्त्र पूजन और व्यापारी बही पूजन भी करते हैं।
दशहरे का ऐतिहासिक महत्त्व क्या है?
दशहरे का ऐतिहासिक महत्त्व भगवान राम की रावण पर विजय, अर्जुन द्वारा शमी वृक्ष से धनुष उठाने और पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ा हुआ है। यह पर्व शस्त्र पूजा और शक्ति का प्रतीक है।
विजया दशमी का यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह पर्व हर वर्ष भारतीय संस्कृति में अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक बनकर हमारे जीवन में नई ऊर्जा का संचार करता है।
दशहरे के दिन रावण दहन क्यों किया जाता है?
रावण दहन अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। भगवान राम ने रावण को पराजित किया था, इसलिए दशहरे के दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं।
दुर्गा पूजा और दशहरा में क्या अंतर है?
दुर्गा पूजा मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में माँ दुर्गा की आराधना के रूप में मनाई जाती है, जबकि दशहरा पूरे भारत में भगवान राम की विजय और रावण के दहन के रूप में मनाया जाता है। हालाँकि, दोनों ही पर्व विजय का प्रतीक हैं।
दशहरे के दिन कौन-कौन से शुभ कार्य किए जाते हैं?
दशहरे के दिन शमी पूजन, शस्त्र पूजन, अपराजिता पूजन, और विजय-प्रणाम जैसे शुभ कार्य किए जाते हैं। इस दिन व्यापारियों द्वारा बही-खाता पूजन भी किया जाता है।
दशहरे का पर्यावरणीय महत्त्व क्या है?
दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा की जाती है, जिसे पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा, कई स्थानों पर पर्यावरण अनुकूल तरीके से रावण दहन करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं।
क्या दशहरे का संबंध शक्ति पूजा से है?
हां, दशहरा शक्ति पूजा का पर्व भी है। क्षत्रिय अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं, और दुर्गा पूजा के दौरान माँ दुर्गा को शक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। यह दिन शक्ति और साहस का प्रतीक है।
विजयादशमी के दिन रावण के पुतले जलाने की परंपरा कब से शुरू हुई?
रावण के पुतले जलाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है, लेकिन इसका विशेष रूप से आयोजन और इसे एक सांस्कृतिक महोत्सव के रूप में मनाने की शुरुआत उत्तर भारत में मुग़ल काल के दौरान मानी जाती है।
क्या दशहरे के दिन यात्रा करना शुभ माना जाता है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दशहरे के दिन यात्रा करना शुभ माना जाता है। इस दिन नए कार्यों की शुरुआत करना, व्यापार का विस्तार करना, और युद्ध के लिए प्रस्थान करना विजयदायक माना जाता है।
शमी पूजन क्या होता है और इसका क्या महत्त्व है?
शमी पूजन दशहरे के दिन किया जाता है। शमी वृक्ष का पूजन इस दिन इसलिए किया जाता है क्योंकि अर्जुन ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस वृक्ष में अपने धनुष गांडीव को छुपाया था। इस दिन शमी वृक्ष की पूजा से विजय प्राप्त करने की मान्यता है।
दशहरे के दिन कौन सा नक्षत्र और मुहूर्त शुभ माने जाते हैं?
दशहरे के दिन विजय मुहूर्त और यदि श्रवण नक्षत्र का योग हो, तो इसे विशेष शुभ माना जाता है। इस मुहूर्त में किए गए कार्य विजय और सफलता की ओर ले जाते हैं।
क्या दशहरे के दिन रावण दहन के अलावा अन्य अनुष्ठान भी होते हैं?
जी हां, दशहरे के दिन रावण दहन के साथ-साथ दुर्गा विसर्जन, शमी पूजन, शस्त्र पूजन और अपराजिता पूजन जैसे धार्मिक अनुष्ठान भी होते हैं, जो विजय और शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं।