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संजा माता गीत और कथा: एक अनोखी लोक परंपरा की महिमा

संजा माता गीत

भारत के उत्तरी हिस्सों में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों और धार्मिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह विशेषकर मध्य प्रदेश, राजस्थान, और हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से लोकप्रिय है। इस त्योहार में संजा माता की पूजा की जाती है, जो प्रमुखता से फसल और घर की सुख-समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। संजा माता का पर्व हर साल आश्विन मास में मनाया जाता है, और इसमें विशेष गीत गाए जाते हैं जिन्हें संजा माता गीत कहा जाता है। साथ ही, संजा माता की कथा भी सुनाई जाती है, जो इस त्योहार के पीछे छिपी पौराणिक मान्यताओं और धार्मिक परंपराओं को समझने में मदद करती है।

संजा माता का परिचय

संजा माता हिंदू धर्म में ग्रामीण इलाकों की एक प्रमुख देवी हैं, जिन्हें विशेष रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान में पूजा जाता है। संजा माता का पर्व मुख्यतः आश्विन मास के दौरान मनाया जाता है और यह त्योहार 16 दिनों तक चलता है। इस दौरान महिलाएं और लड़कियां संजा माता के गीत गाती हैं और रंग-बिरंगे चित्र बनाती हैं। संजा माता की पूजा में पर्यावरण और प्राकृतिक सौंदर्य की प्रमुख भूमिका होती है।

इसे मुख्य रूप से ग्रामीण समाज में फसल की उपज के बाद उत्सव की शुरुआत के रूप में देखा जाता है। इस पर्व का मुख्य आकर्षण संजा माता की मूरतें होती हैं, जो गोबर, फूलों और रंगीन कागजों से बनाई जाती हैं। ये मूरतें घर की दीवारों पर सजाई जाती हैं और इस दौरान हर शाम पूजा की जाती है। पूजा के साथ संजा माता के गीत गाए जाते हैं जो संजा माता के महत्त्व, शक्ति और कृपा को प्रकट करते हैं।

संजा माता गीत का महत्व

संजा माता गीत एक प्रकार के भक्तिपूर्ण लोक गीत होते हैं जो देवी संजा की स्तुति और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गाए जाते हैं। इन गीतों की धुनें सरल और लोक परंपरा से ओतप्रोत होती हैं, जिनमें ग्राम्य जीवन और प्रकृति के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख मिलता है। संजा माता गीतों में विशेषकर कृषि जीवन, प्रेम, और रिश्तों का वर्णन किया जाता है, जिससे यह गीत हर आयु वर्ग के लिए आकर्षण का केंद्र बनते हैं।

इन गीतों का महत्व न केवल धार्मिक होता है, बल्कि ये गीत एकता और सामुदायिक भावना को भी प्रकट करते हैं। गाँव की सभी लड़कियाँ और महिलाएँ मिलकर संजा माता की पूजा करती हैं और मिलकर गीत गाती हैं। इन गीतों में परिवार की सुख-समृद्धि, खुशहाली, और देवी संजा माता से जीवन की कठिनाइयों को दूर करने की प्रार्थना की जाती है।

संजा माता की कथा: पौराणिक कथाएं और मान्यताएं

संजा माता की कथा ग्रामीण समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कथा संजा माता के चमत्कारों और उनके द्वारा दी गई कृपा का विवरण करती है। मान्यता है कि संजा माता एक शक्तिशाली देवी हैं जो घर की सुरक्षा और परिवार की समृद्धि सुनिश्चित करती हैं। संजा माता की कथा का मूल उद्देश्य घर की महिलाओं और युवतियों को धार्मिक और नैतिक मूल्यों का ज्ञान कराना है।

कहा जाता है कि एक समय जब धरती पर अकाल पड़ा था और लोग भूख और प्यास से पीड़ित थे, तब संजा माता ने अपनी कृपा से फसल को उगाया और लोगों को जीवन दिया। इसी कारण, जब फसल की कटाई के बाद संजा माता की पूजा की जाती है, तो यह देवी के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका होता है। इस कथा को सुनने के बाद, लोग संजा माता से प्रार्थना करते हैं कि वे आगामी वर्ष में भी अपनी कृपा बनाए रखें।

संजा माता की पूजा और अनुष्ठान

संजा माता की पूजा विशेषकर महिलाएं और किशोरियाँ करती हैं। यह पर्व विशेष रूप से उन परिवारों में अधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है जहां नवविवाहिताएँ होती हैं। पूजा की विधि में महिलाएं हर शाम को संजा माता की मूर्ति बनाकर उसकी आराधना करती हैं। इसके साथ ही संजा माता के गीत गाए जाते हैं। पूजा के बाद प्रसाद के रूप में विशेष प्रकार की मिठाई बनाई जाती है, जो सभी में वितरित की जाती है।

संजा माता के गीत और कला का सांस्कृतिक महत्व

संजा माता गीत और कथा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह पर्व एक सांस्कृतिक धरोहर भी है। यह पर्व ग्रामीण भारत की समृद्ध लोक संस्कृति को दर्शाता है, जिसमें कला, संगीत, और परंपराओं का गहरा संबंध है।

संजा माता की मूरतें बनाना भी एक कला है, जिसे हर वर्ष महिलाएं बड़ी उत्सुकता से करती हैं। मूरतें बनाने में गोबर, रंगीन मिट्टी, और फूलों का उपयोग किया जाता है। इस अनुष्ठान के दौरान महिलाओं में एक प्रकार की सामूहिकता और आपसी सहयोग की भावना का विकास होता है। गीतों में ग्राम्य जीवन की झलक मिलती है, जो कि भारतीय ग्रामीण संस्कृति का प्रतिबिंब है।

संजा माता गीत और कथा का सामाजिक प्रभाव

संजा माता के गीत और कथा एक प्रकार से समाज में महिलाओं की भूमिका को भी दर्शाते हैं। यह पर्व महिलाओं को एकजुट करता है और उन्हें समाज में एक विशिष्ट स्थान दिलाने का माध्यम बनता है। इस पर्व के माध्यम से महिलाओं को समाज में उनके कर्तव्यों और धार्मिक जिम्मेदारियों का एहसास दिलाया जाता है। संजा माता का पर्व उन्हें एक मंच प्रदान करता है, जहां वे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकती हैं, समाज में योगदान दे सकती हैं और सामाजिक धारा में अपना योगदान सुनिश्चित कर सकती हैं।

संजा माता के गीतों का संरचनात्मक सौंदर्य

संजा माता गीतों का विशिष्ट ढांचा होता है जो सरल होते हुए भी प्रभावशाली होता है। ये गीत छोटे-छोटे वाक्यों और छंदों में होते हैं, जिनमें लोकभाषा और मुहावरों का भरपूर उपयोग होता है। गीतों में सरल भाषा का प्रयोग किया जाता है, जो आम जनमानस के बीच संवाद स्थापित करने में सहायक होते हैं। गीतों में देवी संजा की महिमा का बखान किया जाता है और उनसे घर की सुख-समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है।

संजा माता के गीत

छोटी-सी गाड़ी लुढ़कती जाय, 
जिसमें बैठी संजा बाई सासरे जाय।
घाघरो चमकाती जाय,
लूगड़ो लटकाती जाय,
बिछिया बजाती जाय।
संजा बाई का लाड़ाजी, 
लूगड़ो लाया जाड़ाजी
असो कई लाया दारिका,
लाता गोट किनारी का।
जीरो लो भई जीरो लो जीरो लइने संजा बई के दो, 
संजा को पीयर सांगानेर परण पधार्या गढ़ अजमेर।
संजा तू बड़ा बाप की बेटी,
तू खाए खाजा रोटी,
तू पहने मानक मोती,
पठानी चाल चले,
गुजराती बोली बोले।
संजा का सासरे जावांगा, 
खाटो रोटा खावांगा,
संजा की सासू दुपल्ली,
चलते रस्ते मारेगी,
असी कसी मारे दारिकी,
चार गुलाटी खायेगी।
नीली-पीली मोटर दरवाजे पर खड़ी, 
आज मेरी संजा ससुराल चली,
मम्मी भी रोये,
सखियां भी रोयें,
रो-रो के नदियां बह चलीं।
संजा तू थारी आगमन की रीत,
संजा तू थारी आगमन की रीत।
आजा संजा थारे घर रंग-रंगीली,
लाल चुनरिया ओढ़ सजधज आईली।
संजा तू थारी आगमन की रीत।

संजा रे संजा तेरा कौन सा रूप,
घाघरा ओढ़ी, लहरिया छाती, माखन खावे गूंथ।
संजा रे संजा तेरा कौन सा रूप।

संजा आई घर-घर बहार,
संजा आई घर-घर बहार।
धूम मचाए लाडली नार,
संजा आई घर-घर बहार।

आओ बहनों सजायें संजा,
संजा माता की सुनाओ गाथा।
गोबर से बनाएंगे देवी की मूरत,
रंग-बिरंगे फूलों से करेंगे पूजा।

संजा तेरा रूप है निराला,
धूम मचावे गांव सारा।
लाल-पीली चुनरी ओढ़े,
घर-घर बिठाए सारा मोहल्ला।

संजा तू क्यों रूठी बैठी है,
तेरे बिना हम कैसे जी पाएंगे।
फसल की बुवाई में साथ चाहिए,
तेरे आशीर्वाद के बिना क्या कर पाएंगे।

संजा माता थारे चरणों में प्रणाम,
घर की सुख-समृद्धि हो, रहे हम सबका मान।
धूप-दीप जलाएंगे, प्रसाद चढ़ाएंगे,
संजा माता थारे चरणों में प्रणाम।
संजा के सिर मोर मुकुट सोहे,
चुनरी ओढ़े, फूलन की माला।
हाथ में सोहे, चाँदी की चूड़ी,
घाघरा पे चमकें सितारों वाली।
संजा के सिर मोर मुकुट सोहे।

संजा रे संजा, थारा रूप निराला,
सजे थारी मूरत गोबर वाली।
फूलन से श्रृंगार थारा,
रंगीन चुनरी सिर पे प्यारी।
संजा रे संजा, थारा रूप निराला।

संजा के गीत गाएंगे, मंगल हम मनाएंगे,
घर आओ संजा माता, धूप-दीप जलाएंगे।
गाएं संजा माता के गुण,
मूरत पे चढ़ाएं हम चुनरी।
संजा के गीत गाएंगे, मंगल हम मनाएंगे।

संजा आई रे, खुशियों की बगिया लाई रे,
संग में फूलों की महक लाई रे।
घर-घर में बजें ढोल, नगाड़े,
संजा माता की जय-जयकार हो।
संजा आई रे, खुशियों की बगिया लाई रे।

संजा माता, देवी महारानी,
सबके घर की हो रक्षक भवानी।
खुशियाँ लाना, दुखों को हरना,
सुख-संपत्ति से सबको भरना।
संजा माता, देवी महारानी।

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FAQs

संजा माता का पर्व कब मनाया जाता है?

संजा माता का पर्व आश्विन मास में, विशेषकर सितंबर-अक्टूबर में मनाया जाता है, जब फसलें तैयार हो जाती हैं और गांवों में त्योहारों का मौसम शुरू होता है।

संजा माता की पूजा में कौन-कौन से अनुष्ठान होते हैं?

संजा माता की पूजा में गोबर और रंगीन कागज से देवी की मूर्ति बनाई जाती है। हर शाम महिलाएं संजा माता की पूजा करती हैं, गीत गाती हैं और विशेष प्रकार का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

संजा माता गीतों का क्या महत्व है?

संजा माता गीत देवी की महिमा का गुणगान करते हैं और इनके माध्यम से महिलाएं देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करती हैं। इन गीतों में सामुदायिकता और समृद्धि की भावना छिपी होती है।

संजा माता की कथा क्या है?

संजा माता की कथा देवी संजा के चमत्कारों और उनके द्वारा समाज में दी गई कृपा का वर्णन करती है। यह कथा कृषि जीवन से जुड़ी होती है और देवी से फसल और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है।

संजा माता की मूर्तियों का निर्माण कैसे किया जाता है?

संजा माता की मूर्तियां गोबर, फूल, और रंगीन कागज से बनाई जाती हैं। इन्हें घर की दीवारों पर सजाया जाता है और प्रत्येक शाम इनकी पूजा की जाती है।

संजा माता का त्योहार कौन मनाता है?

संजा माता का त्योहार मुख्य रूप से उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं और युवतियां मनाती हैं। विशेष रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, और हरियाणा में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

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