अतिथि पूजा का महत्व
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वैश्व देव कर्म और अतिथि सत्कार
हरिस्मृति में कहा है कि वैश्व देव कर्म करने के पहले यदि अतिथि (भिक्षा) ग्रह में आ जाये तो प्रथम वैश्व देव कर्म के लिए भोजन निकाल कर तब अतिथि को भिक्षा देकर विसर्जन करें। पाराशर स्मृति में कहा है कि जिस गृहस्थी के घर से अतिथि सत्कार न पाकर निराश चला जाता है उस गृहस्थी का काष्ठ के हजार भारों से और घृत के सौ घड़ों से भरा हुआ यज्ञ भी निष्फल ही हो जाता है।
अतिथि का सत्कार
अतिथि पूजा के पुण्य का अभिलाषी गृहस्थी अतिथि का नाम, गौत्र, आचरण तथा स्वाध्याय, क्या पढ़े हो यह न पूछे और अपने हृदय करें। में अतिथि को सर्व देवताओं का स्वरूप विष्णु जानकर पूजा करे।
गृहस्थाश्रम का महत्व
गृहस्थाश्रम से बढ़कर धर्म नहीं
देवी भागवत् में व्यासजी ने वन को जाते हुए शुकदेव जी से कहा कि हे पुत्र ! गृहस्थाश्रम से बढ़कर धर्म न तो शास्त्रों में देखा है और न ऋषियों ने सुना है। यदि कहो कि ज्ञानी गृहस्थ को नहीं करते सो तो बात नहीं है क्योंकि आत्म ब्रह्मस्वरूप अद्वैत ज्ञानी श्रीरामचन्द्रजी के आचार्य वशिष्ठादि ने भी गृहस्थाश्रम के धर्म का पालन किया है।
श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा सेवित गृहस्थाश्रम
पद्म पुराण में कहा है कि श्रेष्ठ पुरुषों से सेवित होने से अति पुण्यरूप गृहस्थाश्रम है। सर्वदा तीर्थ के समान गृहस्थ का कहा है। इस पुण्यरूप गृहस्थाश्रम में विशेषकर दान करना ही उचित है।
गृहस्थाश्रम के कार्य और पुण्य
जिस गृहस्थाश्रम में प्रति दिवस देवताओं का पूजन होता है। और अतिथियों को भोजन कराया जाता है, मार्ग चलने वाले पथिकों गृहस्थाश्रम को विश्राम के लिये स्थान दिया जाता है, ऐसे पुण्यचरण से गृहस्थाश्रम को अति धन्यवाद के योग्य माना है और ऐसे आचरण से हीन गृहस्थ को नरकगामी कहा है।