अमकारी आठम व्रत भादवमास शुक्लपक्ष की अष्टमी को किया जाता है, जिसमें भगवान अमकार की कृपा से परिवार की समृद्धि और बच्चों की सुरक्षा की कामना की जाती है।
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अमकारी आठम व्रत की विधि
यह व्रत भादवमास शुक्लपक्ष की अष्टमी को किया जाता है। इस व्रत को महिला वर्ग ने अवश्य ही करना चाहिए। इस व्रत को नहीं करने वाली महिलाएँ अगर अन्य व्रत करती हैं, तो वह व्रत फलदाई नहीं होते, खंडित माने जाते हैं। यह व्रत आठ वर्ष तक किया जाता है। व्रत की समाप्ति पर इसका उजमन कर गाय के ग्वाले को कपड़े, चरण पादुका, पंछा, नारियल और यथाशक्ति नगदी देना चाहिए।
अमकारी आठम व्रत के लिए सामग्री
अमकारी आठम व्रत के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
- मिट्टी का दीपक
- चावल, हल्दी, रोली, मौली
- नारियल और पान के पत्ते
- धूप और दीप
- गाय का दूध और मिठाई
- सफेद वस्त्र
अमकारी आठम व्रत का महत्व
अमकारी आठम व्रत करने का मुख्य उद्देश्य परिवार की समृद्धि और बच्चों की दीर्घायु की प्राप्ति है। इस व्रत के माध्यम से भगवान अमकार की कृपा प्राप्त होती है, जो परिवार की सभी परेशानियों को दूर करते हैं। यह व्रत आठ वर्षों तक किया जाता है और इसके समाप्त होने के बाद इसका उजमन किया जाता है।
अमकारी आठम व्रत की कथा
कहानी : एक कुकड़ी (मुर्गी) और मकड़ी जंगल में रहती थी। एक समय अचानक जब जंगल में आग लगी, तो कुकड़ी अपने बच्चों को छोड़कर उड़ गई, लेकिन मकड़ी अपने व कुकड़ी, के बच्चों के साथ उस आग में जल गई।
दूसरे जन्म में कुकड़ी ने राजा के यहाँ और मकड़ी ने एक ब्राह्मण के यहाँ जन्म लिया, समय अनुसार दोनों का ही विवाह हुआ, कुकड़ी एक राजा की रानी बनी और मकड़ी एक निर्धन ब्राह्मण के साथ ब्याही गई।
कुकड़ी जो राजा की रानी थी, उसको जितने भी बच्चे होते थे, सभी की मृत्यु हो जाती थी, लेकिन मकड़ी जो इस जन्म में ब्राह्मणी थी, उसको होने वाले सभी बच्चे जीवित रहते थे। यह देख राजा की रानी मन ही मन बहुत जला करती थी कि मेरे सारे बच्चे मृत्यु को प्राप्त हुए और इस ब्राह्मणी के सभी बच्चे जीवित हैं। मैं इस ब्राह्मणी को अपनी सहेली बनाकर क्यों न इसके बच्चों को भी मार डालूँ।
रानी अपने मन में यह विचार कर ब्राह्मणी के घर जा पहुँची और ब्राह्मणी से कहा कि- “मैं तुमको अपनी सखी बहिन बनाना चाहती हूँ।” तब ब्राह्मणी बोली कि- “आप तो राजा की रानी हैं और मैं एक गरीब ब्राह्मणी हूँ। मैं आपकी सखी बहिन अच्छी नहीं लगूँगी।” लेकिन रानी द्वारा आग्रह करने पर ब्राह्मणी सहेली बनने को राजी हो गई और दोनों ने बहिन का रिश्ता मान लिया।
कुछ दिन बाद रानी ने जहर मिले लड्डू बनाकर अपनी सहेली ब्राह्मणी के बच्चों के लिए दासी के साथ भिजवाए। लड्डू देखकर ब्राह्मणी के बच्चो ने कहा- “माँ मौसीजी ने लड्डू भेजे हैं, वो हमको खाने को दो।
तब ब्राह्मणी बोली कि “बेटा, अभी तो भोजन कर लिया है, इसलिए सुबह खा लेना। बच्चे रात्रि को सो गए।” भगवान अमकार की कृपा से रात भर में लड्डू का सभी जहर समाप्त हो गया।
सुबह उठकर ब्राह्मणी के बच्चों ने रानी द्वारा भेजे गए लड्डू खाए, लेकिन किसी भी बच्चे को कुछ भी नहीं हुआ और सभी बच्चे रोजाना की तरह खेलते रहे। यह चमत्कार ब्राह्मणी द्वारा किए जाने वाले अमकार आठम के व्रत का था। इधर, रानी ने अपनी दासी को ब्राह्मणी के घर यह देखने के लिए भेजा कि ब्राह्मणी के बच्चे मर गए हों, तो बहिन के नाते मैं भी जाकर नहा आऊँ। दासी ने ब्राह्मणी के घर जाकर देखा कि सभी बच्चे जीवित हैं और आँगन में खेल रहे हैं।
दासी ने जाकर रानी को बताया कि- “ब्राह्मणी के तो सभी बच्चे आँगन मे खेल रहे हैं और कोई भी नहीं मरा है।” यह सुन रानी जलकर राख हो गई और ब्राह्मणी के बच्चों को कैसे मारा जाए, यह विचारने लगी।
कुछ समय बीत जाने के बाद रानी ने साँप, बिच्छू आदि जहरीले जन्तु मँगवाए और उन सबको एक डिब्बे में बंद करके अपनी सहेली ब्राह्मणी के घर भेजते हुए यह कहलवाया कि “इस डिब्बे में बच्चों को खेलने के लिए भंवरे, चकरी आदि खिलौने हैं।”
बच्चों ने अपनी माँ से कहा कि- “मौसी ने हमारे लिए खिलौने भेजे हैं, यह हमको खेलने के लिए दे दो।” माँ ने डिब्बा खोला तो डिब्बे में भंवरे, चकरी आदि खिलौने ही थे, जो उसने बच्चों को खेलने के लिए दे दिये। यह सब भगवान अमकार की ही कृपा से हुआ था।
रानी ने फिर दासी को भेजा कि- “जा अब देखकर आ कि ब्राह्मणी के सभी बच्चे अभी भी मरे या नहीं।”
दासी ने ब्राह्मणी के घर जाकर देखा तो उसके सभी बच्चे भंवरे और चकरी से खेल रहे थे। दासी ने रानी के पास आकर बताया कि “ब्राह्मणी के सभी बच्चे भंवरे, चकरी से खेल रहे हैं।” रानी अपनी ईर्ष्या को नहीं दबा सकी और बच्चों को मारने के उपाय करती रही।
रानी गर्भावस्था में थी, उसने एक दिन मरी हुई बच्ची को जन्म दिया, लेकिन रानी ने इस बात को सभी से छुपाकर रखा कि उसको मरी हुई लड़की पैदा हुई है। रिवाज के अनुसार रानी ने दस दिन बाद सूरज पूजन का मुहूर्त निकलवाया और ब्राह्मणी सखी को खबर भेजी कि सूरज का मुहूर्त है, इसलिए जल्दी आना।
आज ब्राह्मणी को भी अमकारी आठम का व्रत था, वह जल्दी से स्नान करके झरते हुए गीले बाल से ही रानी के बुलाने पर राजमहल चली गई। रानी तो किसी भी तरह ब्राह्मणी को दुःखी देखना चाहती थी। ब्राह्मणी के आने के पूर्व से ही रानी ने मरी हुई लड़की को पालने में सुला दिया था। रानी ने ब्राह्मणी को अपने कमरे में आते ही कहा कि- “बहिन! पालने में लड़की सो रही है, इसको सम्हालना मैं भी नहाकर आती हूँ।”
ब्राह्मणी ने पालने से लड़की को उठाया, तो ब्राह्मणी के गीले बालों का पानी मरी हुई लड़की के मुँह में गिरते ही लड़की जीवित होकर रोने लगी। लड़की के रोने की आवाज सुनकर रानी नहाकर तुरंत आई और अपनी बच्ची को ब्राह्मणी की गोद में जीवित देखकर उसी समय ब्राह्मणी के पैरों पर गिरकर कहने लगी कि “बहिन मैंने तो मरी हुई लड़की को पालने में सुला रखा था, मैं तुमको लड़की मारने का कलंक लगाना चाहती थी, लेकिन तुम्हारी कृपा से यह लड़की जीवित हो गई।”
रानी की बात सुनने के बाद ब्राह्मणी ने कहा- “बहन! इसमें मेरी कोई कृपा नहीं है, यह सब तो भगवान अमकार का चमत्कार है।” रानी ने अपनी सहेली ब्राह्मणी के समक्ष वह सभी कहा, जो उसने बच्चों को मारने के लिए किया था।
ब्राह्मणी ने अपनी सहेली रानी से कहा कि- “हम पंडित के पास चलकर अपने गृह बतावें कि तुम्हारे बच्चे जीवित क्यों नहीं रहते हैं।”
जब दोनों पंडित के पास पूछने गई, तो पंडित ने रानी से कहा कि- “आप पूर्व जन्म में कुकड़ी थी और आपकी यह सहेली मकड़ी थी। जब जंगल में आग लगी, तो आप तो अपने बच्चों को छोड़कर उड़ गई, लेकिन यह मकड़ी आपके और अपने बच्चों के साथ उस आग में जल गई। आपने बच्चों की कोई चिंता नहीं की और केवल अपनी जान को बचाया, इसलिए आपके बच्चे जीवित नहीं रहते हैं और मकड़ी ने अपने और अपने बच्चों के साथ आग में जलकर अपने प्राण गँवाये इसलिए इसके सभी बच्चे जीवित हैं।
आज भी आपकी इस सहेली का अमकारी का व्रत है और इसके गीले बालों का पानी मरी हुई लड़की के मुँह में गिर जाने से आपकी बच्ची जीवित हो गई।” उसी दिन से रानी ने भी अमकारी अष्टमी का व्रत करना शुरू कर दिया, जिससे उसके बच्चे जीवित रहने लगे। अंत में बच्चों का सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त हुई।
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FAQs
अमकारी आठम व्रत किस दिन मनाया जाता है?
अमकारी आठम व्रत भादवमास शुक्ल पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। यह व्रत वर्ष में एक बार आता है और इसे भगवान अमकार की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है।
अमकारी आठम व्रत को कितने वर्षों तक करना चाहिए?
यह व्रत लगातार आठ वर्षों तक किया जाता है। आठ वर्षों के बाद व्रत की समाप्ति पर उजमन करने का विधान होता है, जिसमें गाय के ग्वाले को कपड़े, चरण पादुका, नारियल, और नगदी दान दिया जाता है।
क्या पुरुष भी अमकारी आठम व्रत कर सकते हैं?
हाँ, हालांकि अमकारी आठम व्रत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है, लेकिन अगर पुरुष इसे करना चाहें, तो वे भी इस व्रत का पालन कर सकते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य परिवार की समृद्धि और संतान की सुरक्षा है।
अमकारी आठम व्रत में कौन-कौन सी सामग्री की आवश्यकता होती है?
अमकारी आठम व्रत के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
मिट्टी का दीपक
धूप और दीप
चावल, हल्दी, रोली, मौली
नारियल, पान के पत्ते
गाय का दूध और मिठाई
सफेद वस्त्र
अमकारी आठम व्रत की कथा क्या है और इसका क्या महत्व है?
अमकारी आठम व्रत की कथा में एक कुकड़ी (मुर्गी) और मकड़ी की कहानी है, जिसमें भगवान अमकार की कृपा से मकड़ी के बच्चों की रक्षा होती है जबकि कुकड़ी अपने बच्चों को छोड़ देती है। यह व्रत संतान और परिवार की सुरक्षा और समृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अमकारी आठम व्रत का उजमन कैसे किया जाता है?
अमकारी आठम व्रत का उजमन आठ वर्षों के व्रत के बाद किया जाता है। उजमन के समय ग्वाले को कपड़े, चरण पादुका, नारियल, और कुछ नगदी दान दी जाती है, जिससे व्रत की पूर्णता मानी जाती है।