अहोई माता का अशोकाष्टमी का व्रत

यह व्रत प्रायः कार्तिक बदी अष्टमी को उसी वार को किया जाता है, जिस वार की दीपावली होती है। इस दिन स्त्रियों की आरोग्यता और दीर्घायु प्राप्ति के लिए अहोई माता का चित्र दीवार पर मांड कर पूजन किया जाता है।

विधि

अहोई का व्रत दिन भर किया जाता है। जिस समय तारामण्डल आकाश में उदय हो जाए, उस समय वहाँ पर एक जल का लोटा रखकर चाँदी की स्याऊ और दो गुड़िया रखकर मौली नाल में पिरो लें। तत्पश्चात् रोली-चावल से अहोई माता के सहित स्याहू माता का अरचे और सीरा आदि का भोग लगाकर कहानी सुनें।

कथा

एक नगर में साहूकार रहा करता था। उसके सात लड़के थे। एक दिन उसकी स्त्री खदान में मिट्टी खोदने के लिए गई और ज्यों ही उसने जाकर वहाँ कुदाली मारी, त्यों ही सेही के बच्चे कुदाल की चोट से सदा के लिए सो गए। इसके बाद उसने कुदाल को स्याहू के खून से सना देखा, तो उसे सेही के बच्चे मर जाने का बड़ा दुःख हुआ, परन्तु वह विवश थी, क्योंकि यह काम उससे अन्जाने में हो गया था।

इसके बाद वह बिना मिट्टी लिए ही खेद करती हुई अपने घर आ गई और उधर जब सेही अपने घुरकाल में आई, तो अपने बच्चों को मरा हुआ देखकर नाना प्रकार से विलाप करने लगी और ईश्वर से प्रार्थना की कि जिसने मेरे बच्चों को मारा है, उसे भी इसी प्रकार का कष्ट होना चाहिए। तत्पश्चात् सेही के श्राप से सेठानी के सातों लड़के एक ही साल के अन्दर समाप्त हो गये अर्थात् मर गये। इस प्रकार अपने बच्चों को असमय काल के मुँह में समाये जाने पर सेठ-सेठानी इतने दुःखी हुए कि उन्होंने किसी तीर्थ पर जाकर अपने प्राण गँवा देना उचित समझा।

इसके बाद वे घर छोड़कर पैदल ही किसी तीर्थ की ओर चल दिये और खाने की ओर कोई ध्यान न देकर जब तक उनमें कुछ भी शक्ति और साहस रहा तब तक वे चलते ही रहे और जब वे पूर्णतया अशक्त हो गये, तो अन्त में मूच्छित होकर गिर पड़े। उनकी ऐसी दशा देखकर भगवान करुणा सागर ने उनको मृत्यु से बचाने के लिए उनके पापों का अन्त किया और अवसर में आकाशवाणी हुई कि “हे सेठ।

तेरी सेठानी ने मिट्टी खोदते इसी ध्यान न देकर सेही के बच्चों को मार दिया, इसके कारण तुम्हें अपने समग का दुःख देखना पड़ा। यदि अब पुनः घर जाकर तुम मन लगाकर गऊकी सेवा करोगे और अहोई माता अजक्ता देवी का विधि-विधान से व्रत आरक कर प्राणियों पर दया रखते हुए स्वप्न में भी किसी को कष्ट नहीं दोगे, तो तुम्हें भगवान की कृपा से पुनः संतान का सुख प्राप्त होगा।”

इस प्रकार आकाशवाणी सुनकर सेठ-सेठानी, कुछ आशान्वित हो गए और भगवती देवी का स्मरण करते हुए घर को चले आये। इसके बाद श्रद्धा- भक्ति से न केवल अहोई माता का व्रत अपितु गऊ माता की सेवा करना भी उन्होंने आरम्भ कर दिया। जीवों पर दया भाव रखते हुए क्रोध और द्वेष का सर्वथा परित्याग कर दिया। ऐसा करने के पश्चात् भगवान की कृपा से वे सेठ-सेठानी सातों पुत्रों वाले होकर अगणित पौत्रों सहित संसार में नाना प्रकार के सुखों को भोगकर स्वर्ग चले गये।

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अहोई माता की दूसरी कथा

एक साहूकार था, जिसके सात बेटे थे, सात बहुएँ तथा एक बेटी थी। दीवाली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातों बहुएँ अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल में खदान में मिट्टी खोद रही थी। स्याहू (सेई) की माँद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से सेई का बच्चा मर गया। स्याहू माता बोली कि- “मैं तेरी कोख बाँधूंगी। तब ननद अपनी सातों भाभियों से बोली कि तुममें से मेरे बदले कोई अपनी कोख बँधवा लो।” सब भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इन्कार कर दिया, परन्तु छोटी भाभी सोचने लगी कि- “यदि मैं कोख नहीं बँधवाऊँगी, तो सासूजी नाराज़ होंगी।” ऐसा विचार कर ननद के बदले में छोटी भाभी ने अपनी कोख बँधवा ली।

इसके बाद जब उसके जो लड़का होता, तो सात दिन बाद मर जाता। एक दिन उसने पंडितजी को बुलाकर पूछा- “मेरी संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है?” तब पंडित ने कहा कि- “तुम सुरही गाय की पूजा करो, सुरही गाय स्याहू माता की भायली है, वह तेरी कोख छोड़े, तब तेरा बच्चा जियेगा।” इसके बाद से वह बहू प्रातःकाल उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती। गौ माता बोली कि- “आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है। सो आज देखूँगी।” गौ माता खूब तड़के उठी, क्या देखती है कि एक साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है।

गौ माता उससे बोलीं- “मैं तेरी सेवा से प्रसन्न हूँ। इच्छानुसार जो चाहो माँग लो।” तब साहूकार की बहू बोली कि “स्याहू माता तुम्हारी भायली है और उसने मेरी कोख बाँध रखी है, सो मेरी कोख खुलवा दो।” गौ माता ने कहा- “अच्छा।” अब तो गौ माता समुद्र पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली। रास्ते में कड़ी धूप थी, सो वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गईं।

थोड़ी देर में एक साँप आया और उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी (पक्षी) का बच्चा था। साँप उसको डंसने लगा, तब साहूकार की बहू ने साँप मारकर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चों को बचा लिया। थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई, तो वहाँ खून पड़ा देखकर साहूकार की बहू के चोंच मारने लगी। तब साहूकारनी बोली कि “मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा, बल्कि साँप तेरे बच्चे को डंसने को आया था, मैंने तो उससे तेरे बच्चों की रक्षा की है।”

यह सुनकर गरुड़ पंखनी बोली कि- “माँग, तू क्या माँगती है?” वह बोली-“सात समुद्र पार स्याहू माता रहती है, हमें तू उसके पास पहुँचा दे।” तब गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याहू माता के पास पहुँचा दिया। स्याहू माता उन्हें देखकर बोली कि- “आ बहन! बहुत दिनों में आई।” फिर कहने लगी कि “बहन मेरे सिर में जूँ पड़ गई है।” तब सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने सलाई से उनकी जूएँ निकाल दीं।

इस पर स्याहू माता प्रसन्न हो बोली कि “तूने मेरे सिर में बहुत सलाई डाली हैं, इसलिए तेरे सात बेटे और बहू होंगी।” वह बोली- “मेरे तो एक भी बेटा नहीं, सात बेटे कहाँ से होंगे?” स्याऊ माता बोली- “वचन दिया, वचन से फिरूँ तो धोबी के कुण्ड पर कंकरी होऊँ।” जब साहूकार की बहू बोली- “मेरी कोख तो तुम्हारे पास बंद पड़ी है।” यह सुन स्याहू माता बोली कि- “तूने मुझे बहुत ठग लिया, मैं तेरी कोख खोलती तो नहीं, परन्तु अब खोलना पड़ेगी।

जा तेरे घर तुझे सात बेटे और सात बहुएँ मिलेंगी, तू जाकर उजमन करियो। सात अहोई बनाकर सात कढ़ाई करियो।” वह लौटकर पर आई, तो वहाँ देखा सात बेटे सात बहुएँ बैठे हैं। वह खुश हो गई। उसन सात अहोई बनाईं, सात उजमन किए तथा सात कढ़ाई की। रात्रि के समय जेठानियाँ आपस में कहने लगीं कि “जल्दी-जल्दी नहाकर पूजा करावय कहीं छोटी बच्चों को याद करके रोने न लगे।” थोड़ी देर में उन्होंने आपने बच्चों से कहा- “अपनी चाची के घर जाकर देख आओ कि आज वह अभी तक रोई क्यों नहीं।

” बच्चों ने जाकर कहा- “चाची तो कुछ माँड रही हैं, खूब उजमन हो रहा है।” यह सुनते ही जेठानियाँ दौड़ी-दौड़ी उसके घर आई और आकर कहने लगीं कि “तूने कोख कैसे छुड़ाई?” वह बोली-“तूमने तो कोख बँधाई नहीं, सो मैंने कोख बँधा ली थी। अब स्याहू म माता ने कृपा करके मेरी कोख खोल दी है।” स्याहू माता ने जिस प्रकार उस साहूकार की बहू की कोख खोली, उसी प्रकार हमारी भी खोलियों। कहने वाले तथा सुनने वाले की तथा सब परिवार की कोख खोलियो।

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FAQs

अहोई अष्टमी व्रत क्या है?

अहोई अष्टमी व्रत माताओं द्वारा संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि, और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है, विशेष रूप से उन माताओं द्वारा जिनके बच्चे होते हैं।

अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि क्या है?

अहोई अष्टमी की पूजा के लिए शाम के समय तारों के उदय होने के बाद दीवार पर अहोई माता और स्याऊ (सेई) के चित्र बनाए जाते हैं। चाँदी की स्याऊ और दो गुड़ियों को मौली में पिरोकर रोली, चावल, और सीरा आदि से पूजा की जाती है, और उसके बाद व्रत कथा सुनकर पूजा संपन्न की जाती है।

अहोई अष्टमी व्रत के पीछे क्या कथा है?

अहोई अष्टमी की कथा में एक साहूकार की पत्नी द्वारा अंजाने में एक स्याऊ के बच्चे की मृत्यु हो जाने के बाद उसे श्राप मिलता है, जिससे उसके सातों बेटे मर जाते हैं। बाद में, अहोई माता के व्रत और गऊ माता की सेवा के कारण उसकी संतान की रक्षा होती है और वह फिर से संतान सुख प्राप्त करती है।

अहोई अष्टमी पर उजमन का क्या महत्व है?

अहोई अष्टमी पर उजमन उस समय किया जाता है जब महिला के बेटे का जन्म हो या उसका विवाह हो चुका हो। उजमन के दौरान सात पूड़ियों और हलवे के साथ अन्य पूजा सामग्री और वस्त्र सासूजी को दिए जाते हैं, और इसका विशेष धार्मिक महत्व होता है।

अहोई अष्टमी व्रत कब खोला जाता है?

अहोई अष्टमी का व्रत तारों के उदय होने के बाद खोला जाता है। तारों के दर्शन करने के बाद अहोई माता की पूजा की जाती है और फिर व्रत का समापन होता है।

अहोई माता का व्रत किसके लिए रखा जाता है?

यह व्रत मुख्य रूप से संतान प्राप्ति, संतान की लंबी उम्र और उनकी सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से उन माताओं द्वारा किया जाता है जिनके बच्चे होते हैं, और यह व्रत संतान की सुरक्षा और खुशहाली की कामना हेतु महत्वपूर्ण माना जाता है।






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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

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