ऋषि पंचमी व्रत कथा: पापों से मुक्ति और मोक्ष का मार्ग

ऋषि पंचमी व्रत का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को किया जाता है और इसे करने से समस्त पापों का नाश होता है। मुख्य रूप से यह व्रत महिलाएं करती हैं, लेकिन पुरुष भी इसे कर सकते हैं। इस व्रत का उद्देश्य पापों से मुक्ति प्राप्त करना और मोक्ष की प्राप्ति है।

ऋषि पंचमी व्रत का महत्व और इतिहास

ऋषि पंचमी का व्रत महिलाओं के लिए विशेष रूप से पवित्र माना गया है। यह व्रत सप्तऋषियों की पूजा करने और शरीर एवं आत्मा को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, यह व्रत पापों के प्रभाव को समाप्त करने और शारीरिक दोषों से मुक्त होने के लिए अत्यधिक प्रभावी माना जाता है।

ऋषि पंचमी व्रत की पूजन सामग्री

इस व्रत के लिए विशेष पूजन सामग्री की आवश्यकता होती है, जिनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित सामग्री शामिल है:

लटजीर, कुश, कलावा, चौकी या पाटा, गंगाजल,कलश, दीपक, पंचगण्य, पंचामृत, श्वेत वस्त्र, केले के पत्ते, ९ जोड़ी यज्ञोपवीत, सेदूर, केशर, चंदन, चावल, फूल-हार, दीपशलाका, धूप, कपूर, दीपक, नैवेद्य, फल, खीरा, निम्बू, पान, सुपारी, गिलौरी, सुहाग पिटारी, चूड़ी, शीशा, कंघी, बिछिया, नारा, डोरा, सूरमा, मिस्सी, महावर की गोली, पकवान, मिठाई, शंख, घण्टी, पूजन पात्र आदि।

ऋषि पंचमी व्रत का निर्णय

सम्पूर्ण पूजा में मध्यान्ह व्यापिनी तिथि ग्रहण करनी चाहिए। यदि दोनों दिनों मध्यान्ह व्यापिनी पंचमी हो पूर्व युता होनी चाहिए। जैसा कि माधवाचार्य ने कहा है कि सब जगह पंचमी पूर्वा ही लेनी चाहिए, जो कि निर्णय सिन्धु मे दियोदास से ऋषि पंचमी षष्ठियुता कही है,वह मान्य नहीं है।

स्नान विधि और पंचगव्य प्राशन

व्रत करने वाला प्रथम दिन एक बार भोजन करे और भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी अर्थात् ऋषि पंचमी को मध्याह्न समय (दोपहर) में किसी नदी या जलाशय पर लटजीरा की एक सौ आठ अथवा सात दतूने “आर्युबल” से श्लोक प्रार्थना कर “मुखदुर्गन्धिनाशाय” पढ़ते हुए दातून करें। दातून करने के बाद शरीर में मिट्टी लगाकर स्नान करें। लौकिक रीति – से सिर पर लटजीरा की एक सौ आठ या सात पत्ती रखकर एक सौ आठ या सात गोते लगाकर स्नान करें। तदन्तर नियमानुसार नीचे लिखे विधान से ब्रह्मा कूर्च विधि पंचगव्य (गोमूत्र, गोबर, गोदुग्ध, गोघृत, गोदधि) बनाकर प्रासन के लिए दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें।

संकल्प करके ताँबे आदि के पात्र में ‘गायत्री’ मंत्र से गोमूत्र ‘गन्ध द्वार’ गोबर, आप्यायस्व में दूध “दधिकाव्णौ” से दह ‘तेजोसि शुक्र’ से घी और ‘देवस्यत्वा’ पढ़ “ॐ” का उच्चारण कर खुवा आदि काष्ठा से मथकर सात हरि कुशाओं के नीचे लिखे मंत्र पढ़ता हुआ पंचगव्य की दस आहुति दें अर्थात् पृथ्वी पर कुश डुबो-डुबो कर छुआता जाए।

इस प्रकार दस आहुति देकर ‘यत्वग्रस्थि’ मंत्र पढ़ “ॐ” का उच्चारण कर पंचगब्य प्रासन कर यदि हवन करने की इच्छा न हो तो आहुति देने वाले मंत्रो का उच्चारण कर पंचगब्य प्रासन करें, परन्तु बिना मंत्र पढ़े ही पंचगब्य प्रासन न करें।

सप्त ऋषियों की पूजा

इस व्रत में सप्त ऋषियों (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ) की विशेष पूजा की जाती है। पूजा के लिए भूमि को गोबर से लीपकर उस पर अष्टकमल दल बनाकर सप्त ऋषियों की प्रतिमा स्थापित की जाती है। फिर उन्हें चंदन, फूल, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित किया जाता है।

ऋषि पंचमी व्रत कथा

राजा सुताश्व ने कहा कि- “हे पितामह! मुझे ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पापों का नाश होवे।” तब ब्रह्माजी ने कहा- “राजन! मैं तुम्हें वह व्रत बताता हूँ, जिसमें समस्त पाप विनाश को प्राप्त होंगे, वह ऋषि पंचमी का व्रत है, जिसके करने से नारी जाति के तमाम पाप दूर होकर पुण्य की भागी होती है। इसके लिए तुमसे एक पुरातन कथा कहता हूँ कि विदर्भ देश में एक उतंक नाम के सदाचारी ब्राह्मण निवास करते थे, उनकी पतिव्रता नारी सुशीला से एक पुत्री और एक पुत्र का जन्म हुआ।

पुत्र सुविभूषण ने वेदों का साँगोपाँग अध्ययन किया कन्या का समयानुसार एक सामान्य कुल में ब्याह कर दिया, पर विधि के विधान से वह कन्या विधवा हो जाती है, तो वह अपनी सतीत्व की रक्षा पिता के घर रहकर के करने लगी। ब्राह्मण सपरिवार गंगा तट पर कुटी बना ब्राह्मण बालकों को विद्याध्ययन कराने लगे, एक दिवस कन्या माता-पिता की सेवा कर एक शिलाखण्ड पर शयन कर गई। रात भर में उसके सारे शरीर में कीड़े पड़ गए।

सुबह जब कुछ शिष्यों ने उस कन्या को अचानक इस दशा में देखा, उसकी माता सुशीला को आवेदन किया कि गुरु पुत्री के दुःख देखिए। गुरु पत्नी अपनी पुत्री की दशा देख के नाना तरह के विलाप करने लगी और वह पुत्री को उठाकर ब्राह्मण के पास लाती है।

ब्राह्मण भी पुत्री की दशा देख अति विस्मय को प्राप्त हुए और दुःखी हुए, तब ब्राह्मणी ने हाथ जोड़कर कहा- “महारा क्या कारण है कि इस पुत्री के सारे शरीर में कीड़े पड़ गए। तब महाराज ध्यान करके देखा तो पता चला कि यह पुत्री सात जन्म पहिले भी प्राजते थी, तो एक दिन रजस्वला होते हुए भी घर के तमाम बर्तन, भोजन नारायणी छू ली और ऋषि पंचमी व्रत को भी अनादर से देखा, उसी दोष के कामयी इस पुत्री के शरीर में कीड़े पड़ गए, क्योंकि रजस्वला (रजोधर्म) बालक राण प्रथम दिन चंडाली के बराबर व दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी के समान व तीसरे दिन धोबिन के समान शास्त्र दृष्टि से मानी जाती है।

तुम्हारी कन्या ने ऋषि पंचमी व्रत के दर्शन अपमान के साथ किए, इससे ब्राह्मण कुल में जन्म तो हुआ, पर शरीर में कीड़े पड़ गए हैं।” तब सुशीला ने कहा- “महाराज! ऐसे उत्तम व्रत को आप विधि के साथ वर्णन कीजिए, जिससे संसार के प्राणी मात्र इस व्रत से लाभ उठा सकें।” ब्राह्मण बोले- “हे सहधर्मिणी! यह व्रत भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को धारण किया जाता है। पंचमी के दिन सुंदर नदी में स्नान कर व्रत धारण कर सायंकाल सप्त ऋषियों का पूजन विधान से करना चाहिए।

भूमि को गौ के गोबर से लीप कर उस पर अष्टकमल दल बनाकर नीचे लिखे सप्त ऋषियों की स्थापना कर प्रार्थना करनी चाहिए। महर्षि कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ महर्षियों की स्थापना कर आचमन, स्नान, चंदन, फूल, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन कर व्रत सफलता की कामना करनी चाहिए। इस व्रत को करके उद्यापन की विधि भी कराना चाहिए।

चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करके पंचमी के दिन व्रत आरंभ करें, सुबह नदी या जलाशय में स्नान करके गोबर से लीप करके सर्वतोभद्र चक्र बनाके उस पर कलश स्थापना करें। कलश के कण्ठ में नया वस्त्र बाँधे, पूजा-सामग्री एकत्र कर अष्टकमल दल पर सप्त ऋषियों की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करें, फिर षोडशोपचार से पूजन कर रात्रि को पुराण का श्रवणा करें, फिर सुबह ब्राह्मण भोजन दक्षिणा देकर संतुष्ट करें।

इस प्रकार इस व्रत का उद्यापन करने से नारी सुंदर रूप लावण्य को प्राप्त होकर सौभाग्यवती होकर धन-पुत्र से संतुष्ट हो अजय उत्तम गति को प्राप्त होती है।” दूसरी कथा भविष्य पुराण में इसी प्रकार आती है कि एक बार महाराज कृष्ण से महाराज युधिष्ठिर ने कहा कि वह कौन-सी पंचमी है, जिसके करने से नारी जाति दोषों से मुक्त हो करके महत्व पुण्य को प्राप्त होती है? आप मुझे संक्षेप में श्रवण कराइए।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-राजन् ! भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि का व्रत रहने से रजस्वला से मुक्ति होती है, क्योंकि जब इंद्र ने वृत्रासुर को मारा था, तब ब्रह्म हत्या का एक भाग नारी के रज में, दूसरा नदी के फेन में, तीसरा भाग पर्वतों में, चौथा अग्नि के प्रथम ज्वाला में विभक्त किया था। इससे हर वर्ण जाति की नारी रजस्वला होने पर प्रथम दिन चण्डाली, दूसरे दिन ब्रह्म घातिनी, तीसरे दिन धोबिन माफिक दोषी होती है, इससे उस दिन प्रति वस्तु छूने से अपवित्र होकर दोष होता है। इस ऋषि पंचमी व्रत के करने से वह दोष मोक्ष होकर नारी पवित्रता को प्राप्त होती है।

हे राजन् ! विदर्भ देश में श्येनजित नाम का एक राजा था और उसी राज में एक सुमित्र नाम का ब्राह्मण था। उसकी जयश्री नाम की पत्नी एक दिन कृषि कार्य में रहती रजस्वला धर्म को प्राप्त हो गई और वह समयानुसार भोजन प्रति वस्तु छूती रही। इस प्रकार समय पाकर दोनों पति-पत्नी की मृत्यु हो गई। मरने पर ब्राह्मणी का कुतिया का जन्म हुआ और ब्राह्मण को बैल का जन्म लेना पड़ा। पर इन दोनो को अपने तप के प्रभाव से पूर्व जन्म की बातों का स्मरण बना रहा और यह दोनों प्राणी अपने ही पुत्र के घर पालित हुए।

एक दिन पितृपक्ष में ब्राह्मण कुमार ने अपने पिता की श्राद्ध तिथि में विधि के साथ ब्राह्मण भोज रखा और अपनी पत्नी को स्वादिष्ट पकवान बनाने की आज्ञा दी। इधर ब्राह्मण पतोहू ने विविध पकवान खीर आदि बनाकर तैयार किये।

भाग्यवशात् एक सर्प ने उस खीर में जहर उगल दिया। यह सब ब्राह्मणी कुतिया बनी देख रही थी, तो उसने सोचा कि अगर ब्राह्मण यह खीर खाएँगे, तो मृत्यु को प्राप्त हो जाएँगे, इससे मेरे लड़के को ब्रह्म हत्याओं का भारी पाप लगेगा, इससे उस खीर को कुतिया ने जान के भी झूठी कर दी, तो बहू ने कुतिया को इतनी मार मारी कि उसकी कमर तोड़ दी और खीर फेंक कर दूसरी खीर बना ली।

फिर श्राद्ध कर सब ब्राह्मणों को भोजन कराया। रात को कुतिया ने जाकर अपने पूर्व पति बैल से दिन में होने वाली सारी घटना बताई, तो बैल बोला- “प्रिये! तुम्हारे ही पाप के संसर्ग में आज मुझे बैल होना पड़ा और आज मेरे लड़के ने दिन भर मुँह बाँधकर जोता है और अभी तक एक मुट्ठी घास भी नहीं डाली।”

यह सारी बातें छुपा हुआ ब्राह्मण बालक भी सुनता रहा, जिससे वह बड़ा दुःखी हुआ और माता-पिता दोनो को भोजन देकर वह रंज में वन चला गया। उधर, ऋषियों को उसने दण्डवत् करके पूछा- “महाराज! मेरे माता-पिता कुतिया व बैल योनि में हैं, वह किस प्रकार इस योनि से छुटकारा पा सकेंगे।” तो ऋषियों ने बताया- “तुम्हारे माता-पिता ने रजोधर्म दोष से कुतिया और बैल का जन्म पाया है, इससे तुम घर जाकर के विधि से उत्तम ऋषि पंचमी को करके उसका फल अपने माता-पिता को समर्पण करो, जिससे वह इस योनि से मुक्त होकर स्वर्ग प्राप्त करें।”

मुनियों से विधि सुनकर ब्राह्मण पुत्र ने घर आकर विधि के साथ सर्वान्न सहित भाद्र पद शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी व्रत को किया और श्रद्धा से उस व्रत का फल अपने माता-पिता को समर्पण किया, जिसके प्रभाव से वह इस क्रूर योनि से छुटकर दिव्य देव विमान पर आरूढ़ हो स्वर्ग को प्राप्त हुए।

भविष्य पुराण में ऋषि पंचमी का वर्णन

भविष्य पुराण में भी ऋषि पंचमी का उल्लेख मिलता है, जिसमें युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से इस व्रत का महत्व पूछा। श्रीकृष्ण ने बताया कि यह व्रत रजस्वला दोष से मुक्ति के लिए किया जाता है। “हे राजन! जो नारी इस व्रत को विधि के साथ करती है, श्रद्धा से सप्त ऋषियों का पूजन करती है, वह नारी भयंकर रजस्वला दोष से छुटकर शीघ्र ही धन, पुत्र, पौत्र आदि के सौभाग्य रूप को पाती है, इस व्रत को करना नारी जाती का मुख्य कर्तव्य है। इससे मन, तन आदि के दोष से मुक्त होते हैं, जो फल तीर्थों के करने, दूसरे व्रतों को करने आदि से प्राप्त होते हैं। वे इस व्रत से अनायास नारी जाति को मिलते हैं।

ऋषि पंचमी व्रत के नियम और विधि

  1. व्रत करने वाले को चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करना चाहिए।
  2. पंचमी के दिन सुबह नदी या जलाशय में स्नान करें।
  3. सप्त ऋषियों की प्रतिमा को अष्टकमल दल पर स्थापित करें।
  4. षोडशोपचार से सप्त ऋषियों की पूजा करें।
  5. रात्रि में पुराण कथा का श्रवण करें।
  6. अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा दें।

ऋषि पंचमी व्रत का फल

इस व्रत को विधिपूर्वक करने से महिलाएं पवित्रता और पुण्य की प्राप्ति करती हैं। उनके पापों का नाश होता है और उन्हें सौभाग्य, पुत्र और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, इस व्रत के फलस्वरूप स्त्रियाँ रजस्वला दोष से मुक्त होकर शारीरिक और मानसिक पवित्रता को प्राप्त करती हैं।

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FAQs

ऋषि पंचमी का व्रत कब किया जाता है?

ऋषि पंचमी का व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को किया जाता है।

इस व्रत को कौन कर सकता है?

यह व्रत स्त्रियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन पुरुष भी इसे कर सकते हैं।

ऋषि पंचमी व्रत से क्या लाभ होता है?

यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

व्रत में कौन-कौन सी पूजन सामग्री की आवश्यकता होती है?

व्रत में लटजीर, कुश, कलावा, गंगाजल, पंचगव्य, पंचामृत आदि की आवश्यकता होती है।

क्या इस व्रत में कथा सुनना अनिवार्य है?

हाँ, ऋषि पंचमी व्रत के दौरान कथा का श्रवण करना अनिवार्य है।

ऋषि पंचमी व्रत का उद्यापन कैसे किया जाता है?

व्रत का उद्यापन विधिपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा देकर किया जाता है।

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Deepika patidar is a dedicated blogger who explores Hindu mythology through ancient texts, bringing timeless stories and spiritual wisdom to life with passion and authenticity.

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