कंस का बालकों को बुलाना
कंस ने खिन्नचित्त से प्रलम्ब और केशी आदि समस्त मुख्य-मुख्य असुरोंको बुलाकर कहा ॥
कंस बोला – हे प्रलम्ब ! हे महाबाहो केशिन् ! हे धेनुक! हे पूतने! तथा हे अरिष्ट आदि अन्य असुरगण! मेरा वचन सुनो- ॥ यह बात प्रसिद्ध हो रही है कि दुरात्मा देवताओंने मेरे मारनेके लिये कोई यत्न किया है; किन्तु मैं वीर पुरुष अपने वीर्यसे सताये हुए इन लोगोंको कुछ भी नहीं गिनता हूँ ॥
कंस का अधिकार और घमंड
अल्पवीर्य इन्द्र, अकेले घूमने वाले महादेव अथवा छिद्र (असावधानीका समय) ढूँढ़कर दैत्योंका वध करने वाले विष्णु से उनका क्या कार्य सिद्ध हो सकता है ? ॥ मेरे बाहुबलसे दलित आदित्यों, अल्पवीर्य वसुगणों, अग्नियों अथवा अन्य समस्त देवताओंसे भी मेरा क्या अनिष्ट हो सकता है ? ॥
आपलोगों ने क्या देखा नहीं था कि मेरे साथ युद्धभूमिमें आकर देवराज इन्द्र, वक्षःस्थलमें नहीं, अपनी पीठपर बाणोंकी बौछार सहता हुआ भाग गया था ॥ जिस समय इन्द्रने मेरे राज्यमें वर्षाका होना बन्द कर दिया था उस समय क्या मेघोंने मेरे बाणों से विंधकर ही यथेष्ट जल नहीं बरसाया ? ॥ हमारे गुरु (श्वशुर) जरासन्धको छोड़कर क्या पृथिवी के और सभी नृपतिगण मेरे बाहुबल से भयभीत होकर मेरे सामने सिर नहीं झुकाते ? ॥
कंस का बालकों के वध का निश्चय
देवताओंके प्रति मेरे अवज्ञा होती है और हे वीरगण। उन्हें अपने (मेरे) वधका यत्न करते देखकर तो मुझे हँसी आती है॥ तथापि हे दैत्येन्द्रो ! उन दुष्ट और दुरात्माओंके अपकारके लिये मुझे और भी अधिक प्रयत्न करना चाहिये ॥ अतः पृथिवीमें जो कोई यशस्वी और यज्ञकर्ता हों उनका देवताओंके अपकारके लिये सर्वथा वध कर देना चाहिये ॥
देवकी के गर्भ से उत्पन्न हुई बालिका ने यह भी कहा है कि, वह मेरा भूतपूर्व (प्रथम जन्मका) काल निश्चय ही उत्पन्न हो चुका है ॥ अतः आजकल पृथिवीपर उत्पन्न हुए बालकों के विषय में विशेष सावधानी रखनी चाहिये और जिस बालक में विशेष बलका उद्रेक हो उसे यत्नपूर्वक मार डालना चाहिये ॥ असुरों को इस प्रकार आज्ञा दे कंस ने कारागृह में जाकर तुरन्त ही वसुदेव और देवकी को बन्धनसे मुक्त कर दिया ॥
कंस का प्रलम्ब और केशी समेत अन्य असुरों के साथ गहरा योद्धा विषयक विचार
कंस बोला – मैंने अबतक आप दोनोंके बालकों की तो वृथा ही हत्या की, मेरा नाश करनेके लिये तो कोई और ही बालक उत्पन्न हो गया है ॥ परन्तु आपलोग इसका कुछ दुःख न मानें; क्योंकि उन बालकों की होनहार ऐसी ही थी । आपलोगोंके प्रारब्धदोष से ही उन बालकों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है ॥
उन्हें इस प्रकार ढाँढ़स बँधा और बन्धनसे मुक्तकर कंसने शंकित चित्त से अपने अन्तः पुरमें प्रवेश किया ॥