कश्यपजी ऋषि और उनके वंश का वर्णन
1. संह्लादके वंशज
संह्लादके पुत्र आयुष्मान् शिबि और बाष्कल थे तथा प्रह्लादके पुत्र विरोचन थे और विरोचनसे बलिका जन्म हुआ ॥ बलिके सौ पुत्र थे जिनमें बाणासुर सबसे बड़ा था ।
2. हिरण्याक्षके वंशज
हिरण्याक्षके पुत्र उत्कुर , शकुनि , भूतसन्तापन , महानाभ , महाबाहु तथा कालनाभ आदि सभी महाबलवान् थे ॥
3. दनुके वंशज
( कश्यपजीकी एक दूसरी स्त्री ) दनुके पुत्र द्विमूर्धा , शम्बर , अयोमुख , शंकुशिरा , कपिल , शंकर , एकचक्र , महाबाहु , तारक , महाबल , स्वर्भानु , वृषपर्वा , महाबली पुलोम और परमपराक्रमी विप्रचित्ति थे । ये सब दनुके पुत्र विख्यात हैं ॥ स्वर्भानुकी कन्या प्रभा थी तथा शर्मिष्ठा , उपदानी और हयशिरा – ये वृषपर्वाकी परम सुन्दरी कन्याएँ विख्यात हैं ॥
4. वैश्वानरके वंशज
वैश्वानरकी पुलोमा और कालका दो पुत्रियाँ थीं । वे दोनों कन्याएँ मरीचिनन्दन कश्यपजीकी भार्या हुईं ॥ उनके पुत्र साठ हजार दानव – श्रेष्ठ हुए । मरीचिनन्दन कश्यपजीके वे सभी पुत्र पौलोम और कालकेय कहलाये ॥
5. विप्रचित्तिके वंशज
इनके सिवा विप्रचित्तिके सिंहिकाके गर्भसे और भी बहुत – से महाबलवान् , भयंकर और अतिक्रूर पुत्र उत्पन्न हुए ॥ वे व्यंश , शल्य , बलवान् नभ , महाबली वातापी , नमुचि , इल्वल , खसृम , अन्धक , नरक , कालनाभ , महावीर , स्वर्भानु और महादैत्य वक्त्र योधी थे ॥ ये सब दानवश्रेष्ठ दनुके वंशको बढ़ानेवाले थे । इनके और भी सैकड़ों – हजारों पुत्र – पौत्रादि हुए ॥
6. प्रह्लादजीके वंशज
महान् तपस्याद्वारा आत्मज्ञानसम्पन्न दैत्यवर प्रह्लादजीके कुलमें निवातकवच नामक दैत्य उत्पन्न हुए ॥
7. ताम्राके वंशज
कश्यपजीकी स्त्री ताम्राकी शुकी , श्येनी , भासी , सुग्रीवी , शुचि और गृद्धिका – ये छः अति प्रभावशाली कन्याएँ कही जाती हैं ॥
शुकीसे शुक , उलूक एवं उलूकोंके प्रतिपक्षी काक आदि उत्पन्न हुए तथा श्येनीसे श्येन ( बाज ) , भासीसे भास और गृद्धिकासे गृद्धोंका जन्म हुआ । शुचिसे जलके पक्षिगण और सुग्रीवीसे अश्व , उष्ट्र और गर्दभोंकी उत्पत्ति हुई । इस प्रकार यह ताम्राका वंश कहा जाता है ॥
8. विनताके वंशज
विनताके गरुड और अरुण ये दो पुत्र विख्यात हैं । इनमें पक्षियोंमें श्रेष्ठ सुपर्ण ( गरुडजी ) अति भयंकर और सर्पोको खानेवाले हैं ॥
9. सुरसाके वंशज
हे ब्रह्मन् सुरसासे सहस्त्रों सर्प उत्पन्न हुए जो बड़े ही प्रभावशाली , आकाशमें विचरनेवाले , अनेक शिरोंवाले और बड़े विशालकाय थे ॥
10. कद्रूके वंशज
और कद्रूके पुत्र भी महाबली और अमित तेजस्वी अनेक सिरवाले सहस्त्रों सर्प ही हुए जो गरुडजीके वशवर्ती थे ॥ उनमेंसे शेष , वासुकि , तक्षक , शंखश्वेत , महापद्म , कम्बल , अश्वतर , एलापुत्र , नाग , कर्कोटक , धनंजय तथा और भी अनेक उग्र विषधर एवं काटनेवाले सर्प प्रधान हैं ॥
11. क्रोधवशाके वंशज
क्रोधवशाके पुत्र क्रोधवशगण हैं । वे सभी बड़ी – बड़ी दाढ़ोंवाले , भयंकर और कच्चा मांस खानेवाले जलचर , स्थलचर एवं पक्षिगण हैं ॥ महाबली पिशाचोंको भी क्रोधाने ही जन्म दिया है ।
12. सुरभिके वंशज
सुरभिसे गौ और महिष आदिकी उत्पत्ति हुई तथा
13. इराके वंशज
इरासे वृक्ष , लता , बेल और सब प्रकारके तृण उत्पन्न हुए हैं ॥
14. खसाके वंशज
खसाने यक्ष और राक्षसोंको ,
15. मुनिके वंशज
मुनिने अप्सराओंको तथा
16. अरिष्टाके वंशज
अरिष्टाने अति समर्थ गन्धर्वोको जन्म दिया ॥
ये सब स्थावर – जंगम कश्यपजीकी सन्तान हुए । इनके और भी सैकड़ों – हजारों पुत्र पौत्रादि हुए ॥
17. स्वारोचिष मन्वन्तरकी सृष्टि का वर्णन
यह स्वारोचिष – मन्वन्तरकी सृष्टिका वर्णन कहा जाता है ॥ वैवस्वत मन्वन्तरके आरम्भमें महान् वारुण यज्ञ हुआ , उसमें ब्रह्माजी होता थे , अब मैं उनकी प्रजाका वर्णन करता हूँ ॥
18. पूर्व मन्वन्तरके सप्तर्षिगण
पूर्व मन्वन्तरमें जो सप्तर्षिगण स्वयं ब्रह्माजीके मानसपुत्ररूपसे उत्पन्न हुए थे , उन्हींको ब्रह्माजीने इस कल्पमें गन्धर्व , नाग , देव और दानवादिके पितृरूपसे निश्चित किया ॥ पुत्रोंके नष्ट हो जानेपर दितिने कश्यपजीको प्रसन्न किया । उसकी सम्यक् आराधनासे सन्तुष्ट हो तपस्वियों में श्रेष्ठ कश्यपजीने उसे वर देकर प्रसन्न किया । उस समय उसने इन्द्रके वध करनेमें समर्थ एक अति तेजस्वी पुत्रका वर माँगा ।
19. दिति और कश्यपजीके वंशज
गुपुर वह वे मुनिश्रेष्ठ कश्यपजीने अपनी भार्या दितिको वर दिया और उस अति उग्र वरको देते हुए वे उससे बोले – ॥ “ यदि तुम भगवान्के ध्यानमें तत्पर रहकर अपना गर्भ शौच और संयमपूर्वक सौ वर्षतक धारण कर सकोगी तो तुम्हारा पुत्र इन्द्रको मारनेवाला ” होगा ” ॥ ऐसा कहकर मुनि कश्यपजीने उस देवीसे संगमन किया और उसने बड़े शौचपूर्वक रहते हुए वह गर्भ धारण किया ॥ उस गर्भको अपने वधका कारण जान देवराज इन्द्र भी विनयपूर्वक उसकी सेवा करनेके लिये आ गये ॥
उसके शौचादिमें कभी कोई अन्तर पड़े – यही देखनेकी इच्छासे इन्द्र वहाँ हर समय उपस्थित रहते थे । अन्तमें सौ वर्षमें कुछ ही कमी रहनेपर उन्होंने एक अन्तर देख ही लिया ॥ एक दिन दिति बिना चरण – शुद्धि किये ही अपनी शय्यापर लेट गयी । उस समय निद्राने उसे घेर लिया । तब इन्द्र हाथमें वज्र लेकर उसकी कुक्षिमें घुस गये और उस महागर्भके सात टुकड़े कर डाले । इस प्रकार वज्रसे पीड़ित होनेसे वह गर्भ जोर – जोरसे रोने लगा ॥
इन्द्रने उससे पुनः – पुनः कहा कि ‘ मत रो ‘ । किन्तु जब वह गर्भ सात भागोंमें विभक्त हो गया , [ और फिर भी न मरा ] तो इन्द्रने अत्यन्त कुपित हो अपने शत्रु- विनाशक वज्रसे एक – एकके सात – सात टुकड़े और कर दिये । वे ही अति वेगवान् मरुत् नामक देवता हुए ॥ भगवान् इन्द्रने जो उससे कहा था कि ‘ मा रोदीः ‘ ( मत रो ) इसीलिये वे मरुत् कहलाये । ये उनचास मरुद्गण इन्द्रके सहायक देवता हुए ॥