काम

पति-पत्नी संबंध

मनुजी ने कहा है कि पुत्र की उत्पत्ति और गृहस्थ सम्बन्धी धर्म, कर्म सेवा, शुश्रूषा और रति रूपी सुख आदि यह सर्व सुपत्नी स्त्री केही आधीन हैं तथा पितरों को पुत्र उत्पत्ति द्वारा और अपने को गृहस्थ सम्बन्धी कर्म धर्म द्वारा स्वर्ग की प्राप्ति शुभ स्त्री के ही आधीन है।

महाभारत में शकुन्तला ने दुष्यन्त राजा से कहा है कि हे राजन ! भार्या पुरुष की अर्धांगी है और भार्या ही संसार में पुरुष का अति श्रेष्ठ सखा हैं और धर्म, अर्थ, काम रूपी त्रिवर्ग का भार्या ही मूल कारण है। भार्या मूलक गृहस्थ सम्बन्धी कर्म-धर्म करके पुरुष सांसारिक कष्टों से तर जाता है।

शास्त्र विहित क्रिया-कर्म

भार्या वाले पुरुष ही शास्त्र विहित क्रिया-कर्म के अधिकारी होते हैं। सभार्या पुरुष ही गृहस्थाश्रम में पवित्र गृहमेधी माने जाते हैं। भार्या वाले ही लोक में आनन्द और प्रमोद को पाते हैं और भार्या वाले ही संसार में लक्ष्मी प्राप्त करके शोभायुक्त होते हैं।

गृहस्थाश्रम और गुरु

कूर्म पुराण में कहा है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य इन तीनों द्विजातियों का अग्नि देव ही गुरु है। अस्तु द्विजातियों को प्रति दिवस अग्निहोत्र करके अग्निदेव पूजनीय है और चारों वर्ग का वेदशास्त्र अधीन ब्राह्मण गुरु है और स्त्रियों का सर्व प्रकार से पति ही गुरु है और सर्व गृहस्थाश्रमियों का सदाचार संग्रह आदि से रहित अभ्यागत ही पूजनीय गुरु हैं।

पत्नी के कर्तव्य और नरक की प्राप्ति

शिव पुराण में कहा है कि जो नारी अपने पति देव की सेवा शुश्रूषा पूजा त्याग कर व्रत उपवास आदि से तत्पर रहती है, सो नारी शास्त्र विधि का त्याग करने वाली निश्चित ही नरक को प्राप्त होती है।
इस प्रकार स्त्री के नरक में जाने पर कोई संशय रूपी विचार (शंका) करना योग्य नहीं है सो स्त्री अवश्य ही नरक को जाती हैं।

पति के अभाव में स्त्री का पुनर्विवाह

पाराशर स्मृति में कहा है कि पति के परदेश जाने पर ६ वर्ष तक पता न लगने पर, मृत्यु होने पर, नपुसंक होने पर और पतित हो जाने पर इन पाँच प्रकार की गति से पतियों के अभाव होने पर स्त्रियों की अन्य पति करने का विधान किया है। यह लेख अतिपापाचरण को रोकने के लिये संसारी विषय सुख परायण स्त्री-पुरुषों के लिये है। यदि दुर्जन तोषन्याय से इस लेख को धर्मजनक ही मान ले तो पाराशर और मनुजी के इन वचनों से विरोध होता है।

ब्रह्मचर्य व्रत और स्वर्ग की प्राप्ति

पाराशर और मनुजी कहते हैं कि जो स्त्री पति के मृत्यु होने पर ब्रह्मचर्य व्रत में स्थिर रहती है सो स्त्री स्वर्ग को प्राप्त होती हैं जैसे ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्य व्रत को रखकर स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। यह कल्याणकारी शास्त्रों का मुख्य सिद्धान्त है।

पुत्र की महत्ता

गरुड़ पुराण में कहा है कि गुणवान पुत्र एक भी कुलवर्धक, आनन्द कल्याणकारी होता है और गुणहीन धर्म-कर्म से रहित सौ पुत्र भी किस काम के हैं जैसे चन्द्रमा अकेला ही संसार के सर्व अन्धकारों को नष्ट कर देता है और तारागण हजार भी अन्धकार का नाश नहीं कर सकते हैं।

अध्यात्म रामायण का प्रसंग

अध्यात्म रामायण में कहा है कि श्री रामचन्द्रजी को मुनि वेशपूर्वक चौदह वर्ष का वनवास और भरत को अयोध्या का राज्य, यह दो वरदान मेरे को तोषकारी है। ऐसे कैकयी के दारुण कष्टप्रद रोमांचकारी वाक्य को सुनकर दशरथ महाराज मूर्छित होकर गिर पड़े।

तब कैकेयी ने सुमंत द्वारा बुलाकर श्री रामचन्द्रजी से कहा है कि राम आप यदि पिता की आज्ञा पालन करों तो आपके पिता का जीवन रह सकता है, तब ऐसे असीम कष्टकारी वाक्य से व्यथित हो
राम ने कैकेयी से कहा है माता ! आप क्यों मुझे ऐसा कहती हो। पिता के हर्ष के निमित्त में प्राण दे सकता हूँ और प्राणहारी भयंकर विष को पी सकता हूं सीता कौशल्या तथा राज्य को भी छोड़ सकता है

हे मात ! शास्त्रों में सुना है कि तीन प्रकार के पुत्र होते हैं। एक तो पुत्र पिता की आज्ञा के बिना ही पिता का अभिष्ट कार्य करता है जो उत्तम पुत्र कहा है और जो पुत्र पिता के कहे से भी कार्य नहीं करता है सो पुत्र पापात्मा कनिष्ठ कहा है। वो जानो मल रूप ही है। हे मात ! जो आपने कनिष्ठ पुत्र की संभावना से वाक्य कहे हैं उनसे मुझे असीम कष्ट हुआ है, क्योंकि धर्म परायण रघुवंश में उत्पन्न हुआ आज मैं, कनिष्ठ पुत्रों की गणना में गिना गया हूँ। हे मात ! मेरे निमित्त से रघुवंश को कलंकित न करो पिताजी जो-जो मेरे को आज्ञा देंगे सो मैं सर्व करूंगा सत्य कहता हूँ ।

पिता की आज्ञा और पुत्र का कर्तव्य

वायु पुराण में कहा है कि पिता की आज्ञा से प्रतिकुल विरुद्ध कार्य करने वाला जो पुत्र है सो श्रेष्ठ शास्त्रज्ञ महात्माओं के मत में पुत्र नहीं माना जाता है। पुत्र वो ही है जो माता-पिता की आज्ञा में समान पुत्र भाव से बर्तता है माता-पिताओं का अनिष्ठ कार्यकारी बने कंसादि पुत्र नहीं कहे जाते हैं। वे जानो पाप ही दुःख देने के लिये पुत्र नाम से प्रकट होते हैं और कल्याणकारी राम जैसे ही पुत्र माने जाते हैं।

MEGHA PATIDAR
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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

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