64. काश्यवंश का वर्णन

काश्यवंश 

पुरूरवा के ज्येष्ठ पुत्र आयु और उसके वंशज 

आयु नामक जो पुरूरवा का ज्येष्ठ पुत्र था उसने राहुकी कन्या से विवाह किया ॥  उससे उसके पाँच पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः नहुष , क्षत्रवृद्ध , रम्भ , रजि और अनेना थे ॥ 

क्षत्रवृद्ध के वंशज

क्षत्रवृद्ध के सुहोत्र नामक पुत्र हुआ और सुहोत्रके काश्य , काश तथा गृत्समद नामक तीन पुत्र हुए । गृत्समदका पुत्र शौनक चातुर्वर्ण्य का प्रवर्तक हुआ ॥

क्षत्रवृद्ध के वंशज

काश्य का पुत्र काशिराज काशेय हुआ । उसके राष्ट्र , राष्ट्रके दीर्घतपा और दीर्घतपा के धन्वन्तरि नामक पुत्र हुआ ॥ इस धन्वन्तरि के शरीर और इन्द्रियाँ जरा आदि विकारों से रहित थीं तथा सभी जन्मों में यह सम्पूर्ण शास्त्रों का जाननेवाला था । पूर्वजन्म में भगवान् नारायण ने उसे यह वर दिया था कि ‘ काशिराज के वंशमें उत्पन्न होकर तुम सम्पूर्ण आयुर्वेदको आठ भागों में विभक्त करोगे और यज्ञ – भागके भोक्ता होगे ‘ ॥ 

धन्वन्तरि के वंशज

धन्वन्तरि का पुत्र केतुमान् , केतुमान्‌का भीमरथ ,भीमरथ का दिवोदास तथा दिवोदासका पुत्र प्रतर्दन  हुआ ॥ उसने मद्रश्रेण्यवंश का नाश करके समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी , इसलिये उसका नाम ‘ शत्रुजित् ‘ हुआ ॥ 

वत्स (प्रतर्दन) के वंशज

दिवोदास ने अपने इस पुत्र ( प्रतर्दन ) -से अत्यन्त प्रेमवश ‘ वत्स , वत्स ‘ कहा था , इसलिये इसका नाम ‘ वत्स ‘ हुआ ॥  अत्यन्त सत्यपरायण होनेके कारण इसका नाम ‘ ऋतध्वज ‘ हुआ ॥  तदनन्तर इसने कुवलय नामक अपूर्व अश्व प्राप्त किया । इसलिये यह इस पृथिवीतलपर ‘ कुवलयाश्व ‘ नामसे विख्यात हुआ ॥  इस वत्सके अलर्क नामक पुत्र हुआ जिसके विषयमें यह श्लोक आजतक गाया जाता है— ॥ 

‘ पूर्वकालमें अलर्क के अतिरिक्त और किसीने भी छाछठ सहस्र वर्षतक युवावस्थामें रहकर पृथिवीका भोग नहीं किया ‘ ॥  उस अलर्क के भी सन्नति नामक पुत्र हुआ ; सन्नतिके सुनीथ , सुनीथके सुकेतु , सुकेतुके धर्मकेतु ,  धर्मकेतुके सत्यकेतु , सत्यकेतुके विभु , विभुके सुविभु ,  सुविभुके सुकुमार , सुकुमारके धृष्टकेतु , धृष्टकेतुके  वीतिहोत्र , वीतिहोत्रके भार्ग और इस प्रकार काश्यवंश के राजाओं का वर्णन हो चुका अब रजि की संतान का विवरण सुनो।

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