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गणगौर व्रत

गणगौर व्रत

गणगौर व्रत कब और किसको करना चाहिए

यह व्रत चैत्र शुक्ल तृतीया को आता है। इस दिन सुहागन स्त्रियाँ व्रत करती हैं। इस दिन से मिट्टी की गणगौर दीवाल पर बनाई जाती है। गणगरे व्रत सोलह दिन का होता है। इसी दिन भगवान शंकर ने पार्वतीजी को और पार्वतीजी ने सभी महिलाओं को सौभाग्य होने का वरदान दिया था। इस व्रत में पुरुषों की उपस्थिति निषिद्ध है। पार्वतीजी ने भी इस व्रत को भगवान शंकर से छिपाकर किया था।

गणगौर व्रत कथा

गणगौर कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव, पार्वती माता और नारद जी साथ में भ्रमण के लिए निकलें और चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन एक गांव पहुंचे। उस गांव की गरीब महिलाओं को जब उनके आने की खबर मिली तो वो थाल में हल्दी और अक्षत लेकर उनके स्वागत के लिए पहुंच गई। मां पार्वती उन महिलाओं की निश्चल भावना से प्रसन्न हुईं और उन पर सुहाग रस का आशीर्वाद बरसा दिया।

कुछ ही समय पश्चात् धनी वर्ग की महिलाएं सोने चांदी की थाली में तरह तरह के पकवान लेकर और सोलह श्रृंगार किए भगवान शिव और माता पार्वती के पास पहुंची। इन स्त्रियों को देखने के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से प्रश्न किया कि तुमने तो सारा सुहाग रस निर्धन वर्ग की महिलाओं को दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी? इसके जवाब में मां पार्वती बोलीं कि उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया है। मैं इन महिलाओं को अपनी उंगली चीरकर रक्त छिड़क कर सुहाग का वरदान दूंगी।

माता पार्वती ने उन महिलाओं को आशीर्वाद दिया कि वो वस्त्र, आभूषण और बाहरी मोह-माया का त्याग कर अपने पति की सेवा तन मन और धन से करेंगी। उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी।

इस घटना के बाद पार्वती मां भगवान भोलेनाथ से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई। माता ने स्नान के बाद बालू से भगवान शिव की मूर्ति बनाई और उसकी पूजा की। भोग लगाकर तथा प्रदक्षिणा करके दो कण का प्रसाद ग्रहणा किया और माथे पर टीका लगाया। उस पार्थिव लिंग से शिवजी स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने माता पार्वती को वरदान दिया कि आज के दिन जो महिला मेरा पूजन करेगी और तुम्हारा व्रत करेगी उसका जीवनसाथी चिरंजीवी रहेगा और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

FAQ‘s

गणगौर व्रत कब मनाना चाहिए?

गणगौर व्रत चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। यह व्रत हर साल इस तिथि को आता है जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल के महीने में पड़ता है।

गणगौर व्रत किसके लिए होता है?

यह व्रत मुख्य रूप से सुहागन स्त्रियों द्वारा किया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और उनके सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती हैं।

गणगौर व्रत का महत्व क्या है?

गणगौर व्रत का महत्व अत्यधिक है क्योंकि यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के संबंध और उनकी कृपा को मनाने के लिए होता है। इसे करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य और पति के जीवन में दीर्घकालिकता की प्राप्ति होती है।

गणगौर व्रत में क्या विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं?

इस व्रत के दौरान महिलाएं मिट्टी की गणगौर की मूर्तियां बनाती हैं और पूजा करती हैं। व्रत की अवधि के दौरान महिलाएं विशेष पूजन करती हैं, व्रत का पालन करती हैं, और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

गणगौर व्रत के दौरान क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?

गणगौर व्रत के दौरान विशेष सावधानियाँ रखनी चाहिए जैसे कि व्रति को पूरे दिन उपवास रखना होता है और पुरुषों की उपस्थिति वर्जित होती है। महिलाएं पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा के साथ व्रत करती हैं।

गणगौर व्रत में पुरुषों की उपस्थिति की अनुमति है?

गणगौर व्रत में पुरुषों की उपस्थिति निषिद्ध है। यह व्रत केवल महिलाओं द्वारा ही किया जाता है।

गणगौर व्रत का धार्मिक महत्व क्या है?

धार्मिक दृष्टिकोण से गणगौर व्रत का महत्व भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए है। इस व्रत के माध्यम से महिलाओं को अखंड सौभाग्य, पति के जीवन की लंबाई, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गणगौर व्रत की कथा क्या है?

गणगौर व्रत की कथा में बताया गया है कि एक बार भगवान शिव, माता पार्वती और नारद मुनि ने भ्रमण किया। गरीब महिलाओं ने भगवान शिव और माता पार्वती का स्वागत किया और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। माता पार्वती ने गरीब महिलाओं को सुहाग रस दिया और धनी महिलाओं को अपनी उंगली से रक्त छिड़ककर आशीर्वाद दिया। माता पार्वती ने अपने स्नान के बाद भगवान शिव की पूजा की और उन्हें वरदान मिला कि गणगौर व्रत करने वाली महिलाओं को अखंड सौभाग्य प्राप्त होगा।

गणगौर व्रत का पालन किस प्रकार किया जाता है?

गणगौर व्रत का पालन करने के लिए महिलाएं पहले दिन गणगौर की मिट्टी से बनी मूर्तियां घर में स्थापित करती हैं। व्रत के दिन उपवास करके विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। महिलाएं व्रत के दौरान अपने पति के स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

गणगौर व्रत के दौरान विशेष भोजन की अनुमति है?

गणगौर व्रत के दौरान महिलाएं आमतौर पर उपवास करती हैं और केवल फल, दूध या अन्य हल्के खाद्य पदार्थ का सेवन करती हैं। इस दिन मुख्य भोजन से परहेज किया जाता है।

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