गोवर्धन पूजा (अन्नकूट)

गोवर्धन पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इसे दिवाली के अगले दिन भगवान कृष्ण की भक्ति और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा में मुख्यत: गाय-बैलों की पूजा की जाती है और गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर उसकी पूजा की जाती है।

गोवर्धन पूजा का महत्व

गोवर्धन पूजा का मुख्य उद्देश्य भगवान कृष्ण की उस कथा को पुनः जीवंत करना है, जिसमें उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हमें प्रकृति की रक्षा और उसका सम्मान करना चाहिए। साथ ही, यह त्योहार भगवान की कृपा के प्रति आभार व्यक्त करने का भी प्रतीक है।

अन्नकूट का महत्व

गोवर्धन पूजा के दौरान “अन्नकूट” का आयोजन किया जाता है। अन्नकूट का अर्थ है विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का अर्पण। इस दिन भक्त 56 प्रकार के भोजन (छप्पन भोग) बनाकर भगवान कृष्ण को अर्पित करते हैं। इस प्रसाद को ब्रज क्षेत्र में विशेष रूप से बांटा जाता है, जिससे सामूहिक आनंद का अनुभव होता है।

गोवर्धन पूजा विधि

गोवर्धन पूजा के दिन ब्रजवासी और अन्य भक्त अपने-अपने घरों में विशेष आयोजन करते हैं:गोवर्धन पूजा के दौरान अन्नकूट का आयोजन होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित किए जाते हैं। यह भोजन प्रसाद के रूप में सभी में बांटा जाता है।

गाय-बैलों की पूजा

गोवर्धन पूजा का मुख्य हिस्सा गाय-बैलों की पूजा से जुड़ा है। गाय-बैलों को स्नान कराकर उन्हें फूलमाला, चंदन और धूप आदि से सजाया जाता है। इसके बाद मिठाई खिलाई जाती है और उनकी आरती उतारी जाती है।

गोवर्धन पर्वत का प्रतीक

गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाया जाता है। इसे जल, मौली, रौली, और चावल से सजाकर पूजा की जाती है। इस प्रतीक की परिक्रमा की जाती है और भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं।

अन्नकूट प्रसाद का वितरण

गोवर्धन पूजा के दौरान अन्नकूट का आयोजन होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित किए जाते हैं। यह भोजन प्रसाद के रूप में सभी में बांटा जाता है।

इन्द्रदेव और श्रीकृष्ण की कथा

एक बार श्रीकृष्ण गोप-गोपियों के साथ गायें चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुँचे। वहाँ उन्होंने देखा कि हजारों गोपियाँ गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच गाकर उत्सव मना रही हैं। श्रीकृष्ण के पूछने पर गोपियों ने बताया कि- “मेघों के स्वामी इन्द्र को प्रसन्न रखने के लिए प्रतिवर्ष यह उत्सव होता है।” कृष्ण बोले- “यदि देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएँ, तब तो इस उत्सव की कुछ कीमत है।” गोपियाँ बोली- “तुम्हें इन्द्र की निन्दा नहीं करनी चाहिए। इन्द्र की कृपा से ही वर्षा होती है।”

श्रीकृष्ण बोले-“वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है, हमें इन्द्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए।”

सभी गोप-ग्वाल अपने-अपने घरों से पकवान ला-लाकर श्रीकृष्ण की बताई विधि से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।

इन्द्र को जब पता चला कि इस वर्ष मेरी पूजा न कर गोवर्धन की पूजा की जा रही है, तो वह कुपित हुए और मेघों को आज्ञा दी कि गोकुल में जाकर इतना पानी बरसायें कि वहाँ पर प्रलय का दृश्य उत्पन्न हो जाए।

मेघ इन्द्र की आज्ञा से मूसलधार वर्षा करने लगे। कृष्ण ने सब गोप-गोपियों को आदेश दिया कि “सब अपने-अपने गाय बछड़ों को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुँच जाएँ। गोवर्धन ही मेघों से रक्षा करेंगे।” सब गोप-गोपियाँ अपने-अपने गाय-बछड़ों, बैलों को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुँच गए। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ट उँगली पर धारण कर छाता-सा तान दिया। सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहे। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की बूँद भी नहीं पड़ी।

ब्रह्माजी ने इन्द्र को बताया कि “पृथ्वी पर श्रीकृष्ण ने जन्म ले लिया है। उनसे तुम्हारा बैर लेना उचित नहीं है।” श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपनी मूर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करने लगे।

श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियों से कहा कि-“अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो।” तभी से यह गोवर्धन पर्व के रूप में प्रचलित हो गया।

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FAQs

गोवर्धन पूजा कब मनाई जाती है?

गोवर्धन पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है।

गोवर्धन पूजा का महत्व क्या है?

यह त्योहार भगवान कृष्ण की उस घटना को समर्पित है जब उन्होंने ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था। यह भगवान की कृपा के प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक है।

गोवर्धन पूजा कैसे की जाती है?

इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर पूजा की जाती है, गाय-बैलों का पूजन किया जाता है, और अन्नकूट प्रसाद अर्पित कर परिक्रमा की जाती है।

गोवर्धन पूजा का मुख्य भोजन क्या होता है?

गोवर्धन पूजा में मुख्य रूप से 56 प्रकार के भोजन, जिन्हें “छप्पन भोग” कहते हैं, भगवान कृष्ण को अर्पित किए जाते हैं।

क्या गोवर्धन पूजा का आयोजन पूरे भारत में होता है?

गोवर्धन पूजा मुख्यत: उत्तर भारत, विशेष रूप से ब्रज क्षेत्र में मनाई जाती है। हालांकि, देश के अन्य हिस्सों में भी इसे धूमधाम से मनाया जाता है।

अन्नकूट का क्या महत्व है?

अन्नकूट में 56 प्रकार के भोजन बनाए जाते हैं और गोवर्धन पर्वत को अर्पित किए जाते हैं। यह भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण और आभार प्रकट करने का प्रतीक है।

गोवर्धन पूजा का क्या इतिहास है?

द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने इन्द्रदेव के अहंकार को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ की थी। इस घटना के बाद से प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जाता है।

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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

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