5. चार पुरुषार्थ

चार पुरुषार्थ

संसारेऽस्मिन्क्षणार्धोऽपि सत्संगःशेवधिर्नृणाम् ।

यस्मादवाष्यते सर्व पुरुषार्थचतुष्टयम् ।।1।।

गत तृतीय अध्याय में दुर्जनों के लक्षण कहे और दुर्जनों का संग चार पुरुषार्थों का घातक होने से सर्वथा त्याज्य कहा, तब चार पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिए पुरुष को किसका संग कर्तव्य है ऐसा प्रश्न होने पर इस चतुर्थ अध्याय में चार पुरुषार्थ और तिन की प्राप्ति का कारण साधु संग जैसा पद्म पुराण में कहा है वैसा ही निरूपण करते हैं :-

जिन अद्वैत चिन्तक महात्माओं के संग से धर्म अर्थ काम मोक्ष ये चार पुरुषार्थ प्राप्त होते हैं तिन साधु महात्माओं के सत्संग रूप अमृत का सेवन आध्यामिक, आधिभौतिक, आधिदैविक इन तीन ताप रूप त्रिदोष से पीड़ित पुरुषों को इस संसार में आधा क्षण भी अवश्य कर्तव्य है। क्योंकि जैसे असुरों को और देवताओं को अमृत पिलाने पर राहु आधे क्षण में ही अमृत पीकर सदा के लिए अमर हो गया ।।1।।

धन्यास्ते भारते वर्षे जायन्ते ये नरोत्तमाः ।

धर्मार्थकाममोक्षाणां प्राप्नुवन्ति महाफलम् ||2||

ब्रह्मपुराण में कहा है कि वे ही पुरुष भारतवर्ष में उत्पन्न हुए धन्यवाद के योग्य पात्र हैं और वे ही पुरुष नरों में उत्तम कहे जाते हैं जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पदार्थ रूप महान फल को प्राप्त करते हैं, इन चार पदार्थों में से जिसने एक भी प्राप्त न किया उसका जन्म व्यर्थ ही है ।।2।।

धर्मश्चार्थश्च कामश्च मोक्षश्चैवात्र कीर्त्यते ।

सर्वेष्वपि पुराणेषु तद्विरुद्धञ्च यत्फलम् ।।3।।

मत्स्य पुराण में कहा है कि सर्व पुराणों में, शास्त्रों में, वेदों में तथा इतिहासों में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ये चार पुरुषार्थ ही कथन करे हैं और इनसे विरुद्ध (अर्थात्) अधर्म- अनर्थ अकाम अमोक्ष ये संसार रूप दुर्गति के देने वाले कथन करे हैं ||3||

धर्मार्थकाममोक्षाणां स्पष्टीकरणमुत्तमम् ।

इतिहासपुराणानि मया सृष्टानि सुव्रत ! ।।4।।

भविष्यत् पुराण में ब्रह्माजी कहते हैं कि वेद शास्त्रों का अर्थ मन्द बुद्धि पुरुषों को नहीं समझने पर वेद शास्त्रों में कहे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के भली प्रकार स्पष्ट करने के लिए हे शोभन व्रत ! मैंने इतिहास, भारतादि तथा ब्रह्मादि पुराण रचे हैं ||4||

धर्मश्चार्थश्च कामश्च मोक्षश्चैनच्चतुष्टयम् ।

यथोक्तं फलदं ज्ञेयं विपरीतं तु निष्फलम् ||5||

पद्म पुराण में कहा है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ये चार जैसे शास्त्रों में कहे हैं वैसे ही करने पर फल देने वाले हैं शास्त्र की विधि को छोड़कर करने पर फल नहीं देते हैं। जैसे राजा की आज्ञा न मानकर राजा की नौकरी करने पर अति कष्ट उठाने पर भी वेतन रूप फल नहीं मिलता है ||5||

धर्मार्थकाममोक्षाणां देहः परमसाधनम् ।

तस्मादन्नेन पानेन पालयेद्देहमात्मनः ||6||

शिवपुराण में कहा है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की प्राप्ति का परम साधन मनुष्य देह है। शरीर के निरोग न होने पर पुरुष शास्रोक्त धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को प्राप्त नहीं करता है। इस कारण से शुद्ध अन्न पान औषधि आदि से शरीर का पालन अवश्य कर्त्तव्य है ।।6।।

धमार्थकाममोक्षाख्याः पुरुषार्था उदाहृताः ।

चतुष्टयमिदं यस्मात्तस्मात्किं किमिदं वृथा ||7||

विष्णु पुराण में प्रह्लाद भक्त हिरण्यकश्यपु से कहते हैं कि हे पितः ! जिस व्यापक सच्चिदानन्द अद्वैत स्वरूप विष्णु भगवान् के नाम स्मरण से शास्त्र में कहे हुए धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। ऐसा अलभ्य लाभ होने पर भी विष्णु के नामस्मरण से क्या होता है यह आपका पुनः पुनः कथन करना व्यर्थ ही है ।।7।।

अपकारिणि कोपश्चेत्कोपे कोपं कथं न ते ।

धर्मार्थकाममोक्षाणां प्रसह्य परिपन्थिनि ।।8।।

मोक्ष चार याज्ञवल्क्योपनिषद् में कहा है कि हे जीव ! तुम यदि अपने साथ अपकार करने वालों पर क्रोध करते हो, तो तुम्हारे साथ में अपकार करने वाले तो काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि हैं, उन पर तुम क्रोध क्यों नहीं करते क्योंकि ये तुम्हारे धर्म, अर्थ, काम, पुरुषार्थों को बलात्कार से लूटने वाले हैं ||8||

धमार्थकाममोक्षाख्याः पुरुषार्थाः सनातनाः ।

श्रद्धावतां हि सिंध्यन्ति नान्यथा ब्रह्मनन्दन ||9||

नारद पुराण में विष्णु भगवान् नारदजी से कहते हैं, हे ब्रह्मनन्दन ! धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष नाम के चार पदार्थ सनातन है इन चार पदार्थों के अतिरिक्त कोई पांचवां पदार्थ नहीं है, ये चार पदार्थ श्रद्धा, भक्ति और यथायोग्य साधनयुक्तों को प्राप्त होते हैं। श्रद्धा आदि साधन रहित पुरुषों को प्राप्त नहीं होते ।।9।।

धर्ममर्थ च कामं च मोक्षं न जरंया पुनः ।

शक्तः साधयितुं तस्माद्यंवा धर्मं समाचरेंत् ।।10।।

बहुत से बुद्धि के बैरी पुरुषों के ऐसे विचार होते हैं कि अभी तो युवा अवस्था है इसमें तो खाना-पीना रंग-तमाशे देखना चाहिए, धर्मादिक साधनों को वृद्धावस्था में करेंगे अभी क्या है ऐसे अंधों के नेत्र को खोलने के वास्ते नेत्रांजन रूप शिक्षा पद्मपुराण में कही है कि हे अन्ध मति वाले जीव जभी दुर्जनतोष न्याय से वृद्ध अवस्था में धर्मादि का संपादन करना मान भी लें तो भी क्या तुम्हारे पास में वृद्धावस्था को प्राप्त होने की कोई चिट्ठी तो है नहीं ।

आज ही रामनाम सत्य हो जाये। और शास्त्रों में भी कहा है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पदार्थों को पुरुष वृद्ध अवस्था में प्राप्त नहीं कर सकता है इस कारण से युवावस्था में ही धर्म आदिकों को संपादन करना चाहिए ।।10।।

यस्मिन् प्रीतिः पुरुषस्य तस्य लिप्साऽर्थलक्षणाऽविभक्तत्वात् ।।11।।

पूर्वमीमांसा में कहा है पुरुष की जिस वस्तु में प्रीति होती है। तिसकी इच्छा होती है क्योंकि जहाँ इष्ट रूप चार पुरुषार्थ अर्थ होता है वहाँ ही इच्छा है दोनों का नित्य सम्बन्ध होने से ।।11।।

वेदार्थस्य प्रकाशेन तमो हार्द निवारयन् ।

पुमर्थांश्चतुरो देयाद् विद्यातीर्थमहेश्वरः ।।12।।

सायणाचार्य वेदों का भाष्य करते हुए मंगल करते हैं कि विद्या का स्वामी महेश्वर वेदों के अर्थ के प्रकाश से हमारे हृदय के तम रूप अज्ञान को दूर करते हुए धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चार पुरुषार्थों को प्रदान करें ||12||

तस्मै सहोवाच पितामहश्च श्रद्धा भक्ति ध्यान योगादवैहि ।।13।।

कैवल्योपनिषद् में अश्वलायन ऋषि ब्रह्माजी से पूछते हैं। हे भगवन् । ब्रह्म स्वरूप आत्मा कैसे जाना जाता है? तब ब्रह्माजी कहते हैं कि हे ऋषे ! ब्रह्म स्वरूप आत्मा श्रद्धा, भक्ति, ध्यान, चित्त की वृत्तियों का निरोध रूप योग आदि से जाना जाता है ||13||

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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

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