124. जगत की उत्पत्ति

जगत की उत्पत्ति

 जो ब्रह्मा , विष्णु और शंकररूपसे जगत्की उत्पत्ति , स्थिति और संहारके कारण हैं तथा अपने भक्तोंको संसार – सागरसे तारनेवाले हैं , उन विकाररहित , शुद्ध , अविनाशी , परमात्मा सर्वदा एकरस , सर्वविजयी भगवान् वासुदेव विष्णुको नमस्कार है । जो एक होकर भी नाना रूपवाले हैं , स्थूल सूक्ष्ममय हैं , अव्यक्त ( कारण ) एवं व्यक्त ( कार्य ) रूप हैं तथा [ अपने अनन्य भक्तोंकी ] मुक्तिके कारण हैं , [ उन श्रीविष्णुभगवान् को नमस्कार है ] । जो विश्वरूप प्रभु विश्वकी उत्पत्ति , स्थिति और संहारके मूल कारण हैं , उन परमात्मा विष्णुभगवान् को नमस्कार है ।

परमात्मा विष्णु की विशेषताएँ

जो विश्वके अधिष्ठान हैं , अतिसूक्ष्मसे भी सूक्ष्म हैं , सर्व प्राणियोंमें स्थित पुरुषोत्तम और अविनाशी हैं , जो परमार्थतः ( वास्तवमें ) अति निर्मल ज्ञानस्वरूप हैं , किन्तु अज्ञानवश नाना पदार्थरूपसे प्रतीत होते हैं , तथा जो [ कालस्वरूपसे ] जगत्की उत्पत्ति और स्थितिमें समर्थ एवं उसका संहार करनेवाले हैं , उन जगदीश्वर अजन्मा , अक्षय और अव्यय भगवान् विष्णुको प्रणाम करके तुम्हें वह सारा प्रसंग क्रमशः सुनाता हूँ जो दक्ष आदि मुनिश्रेष्ठोंके पूछनेपर पितामह भगवान् ब्रह्माजीने उनसे कहा था ।

पितामह ब्रह्माजी का उपदेश

वह प्रसंग दक्ष आदि मुनियोंने नर्मदा – तटपर राजा पुरुकुत्सको सुनाया था तथा पुरुकुत्सने सारस्वतसे और सारस्वतने मुझसे कहा था ।’ जो पर ( प्रकृति ) से भी पर , परमश्रेष्ठ , अन्तरात्मामें स्थित परमात्मा रूप , वर्ण , नाम और विशेषण आदिसे रहित है ; जिसमें जन्म , वृद्धि , परिणाम , क्षय और नाश- इन छः विकारोंका सर्वथा अभाव है ; जिसको सर्वदा केवल ‘ है ‘ इतना ही कह सकते हैं , तथा जिनके लिये यह प्रसिद्ध है कि ‘ वे सर्वत्र हैं और उनमें समस्त विश्व बसा हुआ है— इसलिये ही विद्वान् जिसको वासुदेव कहते हैं ‘ वही नित्य , अजन्मा अक्षय , अव्यय , एकरस और हेय गुणोंके अभावके कारण निर्मल परब्रह्म है ।

वही इन सब व्यक्त ( कार्य ) और अव्यक्त ( कारण ) जगत्के रूपसे , तथा इसके साक्षी पुरुष और महाकारण कालके रूपसे स्थित है । परब्रह्मका प्रथम रूप पुरुष है , अव्यक्त ( प्रकृति ) और व्यक्त ( महदादि ) उसके अन्य रूप हैं तथा [ सबको क्षोभित करनेवाला होनेसे ] काल उसका परमरूप है ।

प्रधान, पुरुष, व्यक्त और काल के परे विष्णु

इस प्रकार जो प्रधान , पुरुष , व्यक्त और काल इन चारोंसे परे है तथा जिसे पण्डितजन ही देख पाते हैं वही भगवान् विष्णुका परमपद है । प्रधान पुरुष , व्यक्त और काल – ये [ भगवान् विष्णुके ] रूप पृथक् – पृथक् संसारकी उत्पत्ति , पालन और संहारके प्रकाश तथा उत्पादनमें कारण हैं । भगवान् विष्णु जो व्यक्त , अव्यक्त , पुरुष और कालरूपसे स्थित होते हैं , इसे उनकी बालवत् क्रीडा ही समझो ।

उनमेंसे अव्यक्त कारणको , जो सदसद्रूप ( कारण शक्तिविशिष्ट ) और नित्य ( सदा एकरस ) है , श्रेष्ठ मुनिजन प्रधान तथा सूक्ष्म प्रकृति कहते हैं |वह क्षयरहित है , उसका कोई अन्य आधार भी नहीं है तथा अप्रमेय , अजर , निश्चल शब्द – स्पर्शादिशून्य और रूपादिरहित है । वह त्रिगुणमय और जगत्का कारण है तथा स्वयं अनादि एवं उत्पत्ति और लयसे रहित है । यह सम्पूर्ण प्रपंच प्रलयकालसे लेकर सृष्टिके आदितक उसीसे व्याप्त था । 

श्रुतियों में प्रधान की व्याख्या

श्रुतिके मर्मको जाननेवाले , श्रुतिपरायण ब्रह्मवेत्ता महात्मागण इसी अर्थको लक्ष्य करके प्रधानके प्रतिपादक इस ( निम्नलिखित ) श्लोकको कहा करते हैं— ।

नाही न रात्रिर्न नभो न भूमि र्नासीत्तमोज्योतिरभूच्च नान्यत् ।

श्रोत्रादिबुद्ध्यानुपलभ्यमेकं प्राधानिकं ब्रह्म पुमांस्तदासीत् ॥

उस समय ( प्रलयकालमें ) न दिन था , न रात्रि थी , न आकाश था , न पृथिवी थी , न अन्धकार था , न प्रकाश था और न इनके अतिरिक्त कुछ और ही था । बस , श्रोत्रादि इन्द्रियों और बुद्धि आदिका अविषय एक प्रधान ब्रह्म और पुरुष ही था ‘ ।

 

MEGHA PATIDAR
MEGHA PATIDAR

Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

Articles: 300