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जनाबाई

जनाबाई

1. भगवान को प्रेम प्यारा है

भगवान को प्रेम प्यारा है, उसे जो सच्चे मन से चाहता है वह उसीका बन जाता है। भगवत्प्रेममें जाति-पाँति, विद्या-बुद्धि, धन-ऐश्वर्य की कोई भी अपेक्षा नहीं है। पुरुष हो, स्त्री हो, पण्डित हो, मूर्ख हो, राजा हो, रंक हो, ब्राह्मण हो, चाण्डाल हो। जो उसे प्रेम से भजता है वही उसे पाता है।

2. जनाबाई का परिचय

भक्तिमती जनाबाई सुविख्यात भक्तश्रेष्ठ श्रीनामदेवजी के घर में नौकरानी थी। घरमें झाड़ देना, बरतन माँजना, कपड़े धोना और जल भरना आदि सभी काम उसे करने पड़ते थे। ऋषि-मुनियोंकी सेवामें रहकर पूर्वजन्ममें जैसे देवर्षि नारदजी भगवान्‌ के परम प्रेमी बन गये थे।

3. भगवच्चर्चा और सत्संगति का प्रभाव

वैसे ही भक्तवर नामदेवजी के घर में होने वाली सत्सङ्गति तथा भगवच्चर्चा के प्रभाव से जनाबाई के सरल हृदय में भी भगवत्प्रेम का बीज अंकुरित हो गया। उसकी भगवन्नाम में प्रीति हो गयी। जिसमें जिसकी प्रीति होती है, उसे वह भूल नहीं सकता, इसी तरह जनाबाई भी भगवन्नामको निरन्तर स्मरण करने लगी। ज्यों-ज्यों नामस्मरण बढ़ा, त्यों-ही-त्यों उसके पापपुञ्ज जलने लगे और प्रेम का अंकुर पल्लवित होकर दृढ़ वृक्ष के रूप में परिणत होने लगा तथा उसकी जड़ सब ओर फैलने लगी।

4. एकादशी की रात्रि

एकादशी का दिन है, नामदेवजी के घर भक्तों की मण्डली एकत्र हुई है, रातके समय जागरण हो रहा है। नामकीर्तन और भजनमें सभी मस्त हो रहे हैं। कोई कीर्तन करता है, कोई मृदंग बजाता है, कोई करताल और कोई झाँझ बजाता है। प्रेमी भक्त प्रेममें विभोर हैं, किसीको तन-मन की सुध नहीं है, कोई नाचता है, कोई गाता है, कोई आँसू बहा रहा है, कोई मस्त हँसी हँस रहा है। कितनी रात गयी, इस बातका किसी को खयाल नहीं है।जनाबाई भी एक कोने में खड़ी प्रेममद में मत्त होकर झूम रही है। इस आनन्दाम्बुधि में डूबे रात बहुत ही जल्दी बीत गयी।

5. देरी और चिंता

उषाकाल हो गया। लोग अपने-अपने घर गये। जनाबाई भी अपने घर आयी।

घर आनेपर जनाबाई जरा लेट गयी। प्रेमकी मादकता अभी पूरी नहीं उतरी थी, वह उसीमें विभोर हुई पड़ी रही। सूर्यदेव उदय गये। जनाबाई उठी और सूर्योदय हुआ देखकर बहुत घबरायी। उसने सोचा मुझे बड़ी देर हो गयी। मालिकके घर झाड़-बरतनकी बड़ी कठिनाई हुई होगी, वह हाथ-मुँह धोकर तुरंत कामपर चली गयी।

पूरा विलम्ब हो चुका था । जना घबरायी हुई जल्दी-जल्दी हाथका काम समाप्त करने में लग गयी। परंतु हड़बड़ाहट में काम पूरा नहीं हो पाता। दूसरे, एक काममें विलम्ब हो जाने से सिलसिला बिगड़ जाने के कारण सभी में विलम्ब होता है, यहाँ भी यही हुआ, झाड़ देना है, पानी भरना है, कपड़े धोने हैं, बरतन माँजने हैं और न मालूम कितने काम हैं।

6. अपरिचिता वृद्धा का मिलन

कुछ काम निपटाकर वह जल्दी-जल्दी कपड़े लेकर उन्हें धोनेके लिये चन्द्रभागा नदी के किनारे पहुँची। कपड़े धोनेमें हाथ लगा ही था कि एक बहुत जरूरी काम याद आ गया, जो इसी समय न होनेसे नामदेवजी को बड़ा कष्ट होता, अतएव वह नदी से तुरंत मालिक के घर की ओर चली। रास्ते में अकस्मात् एक अपरिचिता वृद्धा स्त्रीने प्रेमसे पल्ला पकड़कर जनासे कहा, ‘बाई जना ! यों घबरायी हुई क्यों दौड़ रही हो, ऐसा क्या काम है ?” जनाने अपना काम उसे बतला दिया।

वृद्धाने स्नेहपूर्ण वचनों से कहा, घबराओ नहीं। तुम घरसे काम कर आओ, तब तक मैं तुम्हारे कपड़े धोये देती हूँ।’ जनाबाई ने कहा, ‘नहीं माँ ! तुम मेरे लिये कष्ट न उठाओ, मैं अभी लौट आती हूँ।’ वृद्धा ने मुसकराते हुए उत्तर दिया, ‘मुझे इसमें कोई कष्ट नहीं होगा, मेरे लिये कोई भी काम करना बहुत आसान है, मैं सदा सभी तरह के ही काम करती हैं। इससे मुझे अभ्यास है। इस पर भी तुम्हारा मन न माने तो कभी मेरे काम में तुम सहायता कर देना।

‘जनाबाई को घर पहुँचने की जल्दी थी; इधर वृद्धा के वचनों में स्नेह टपक रहा था; वह कुछ भी न बोल सकी और मन-ही-मन वृद्धा की परोपकार- वृत्ति की सराहना करती हुई चली गयी। उसे क्या पता था कि यह वृद्धा मामूली स्त्री नहीं, परंतु सच्चिदानन्दमयी जगज्जननी है।

वृद्धा ने बात की बातमें कपड़े धोकर साफ कर दिये। कपड़ों के साथ ही उन कपड़ों को पहनने और लानेवाले का कर्मफल भी धुल गया। थोड़ी देरमें जनाबाई लौटी। धुले हुए कपड़े देखकर उसका हृदय कृतज्ञतासे भर गया। उसने वृद्धासे कहा, ‘माता ! आज तुम्हें बड़ा कष्ट हुआ। तुम सरीखी परोपकारिणी माताएँ ईश्वर- स्वरूप ही होती हैं ।’ जना ! तू भूलती है। यह वृद्धा ईश्वररूपिणी नहीं है साक्षात् ईश्वर ही है । तेरे प्रेमवश भगवान्ने वृद्धा का स्वाँग सजा ।’

वृद्धा ने मुसकराते हुए कहा, ‘जनाबाई ! मुझे तो कोई कष्ट नहीं हुआ, काम ही कौन-सा था ? लो अपने कपड़े, मैं जाती हूँ ।’ इतना कहकर वृद्धा वहाँ से चल दी, जनाका हृदय वृद्धा के स्नेह से भर गया था, उसे पता ही नहीं लगा कि वृद्धा चली जा रही है।

जना कपड़े बटोरने लगी, इतनेमें ही उसके मन में आया कि ‘वृद्धा ने इतना उपकार किया है, उसका नाम-पता तो पूछ लूँ, जिससे कभी उसका दर्शन और सेवा-सत्कार किया जा सके।’ वृद्धा कुछ ही क्षण पहले गयी थी । जना ने चारों ओर देखा, रास्ते की ओर दौड़ी, सब तरफ ढूँढ़ हारी, वृद्धा का कहीं पता नहीं लगा, लगता भी कैसे ?

जना निराश होकर नदी किनारे लौट आयी और वहाँ से कपड़े लेकर नामदेव के घर पहुँची। संत जना का मन वृद्धा के लिये व्याकुल था। वृद्धा ने जाते-जाते न मालूम क्या जादू कर दिया, जना कुछ समझ ही नहीं सकी। बात भी यही है। यह जादूगरनी धी भी बहुत निपुण ।

7. भगवान की लीला

सत्संग का समय था । संतमण्डली एकत्र हो रही थी, जनाने वहाँ पहुँचकर अपना हाल नामदेवजी को सुनाना आरम्भ किया; कहते-कहते जना गद्गदकण्ठ हो गयी। भगवद्भक्त नामदेवजी सारी घटना सुनकर तुरंत लीलामय की लीला समझ गये और मन-ही-मन भगवान्की भक्तवत्सलता की प्रशंसा पर प्रेम में मग्न हो गये। फिर बोले— ‘जना ! तू बड़भागिनी है; भगवान्ने तुझपर बड़ा अनुग्रह किया—वह कोई मामूली बुढ़िया नहीं थी; वह तो साक्षात् नारायण थे, जो तेरे प्रेमवश बिना ही बुलाये तेरे काममें हाथ बँटाने आये थे।’ यह सुनते ही जनाबाई प्रेमसे रोने लगी और भगवान्‌को कष्ट देनेके लिये अपनेको कोसने लगी। सारा संतसमाज आनन्दसे पुलकित हो गया।

8. भगवान के प्रति जनाबाई का प्रेम

कहा जाता है कि इसके बाद भगवान्‌के प्रति जनाबाई का प्रेम बहुत ही बढ़ गया था और भगवान् समय-समयपर उसे दर्शन देकर कृतार्थ किया करते थे। जनाबाई चक्की पीसते समय भगवत्प्रेमके ‘अभंग’ गाया करती थी, गाते-गाते जब वह प्रेमावेशमें सुध-बुध भूल जाती तब उसके बदलेमें भगवान् स्वयं पीसते और भक्तिमती जनाके अभंगोंको सुन-सुनकर प्रसन्न हुआ करते थे। महाराष्ट्र-कवियोंने ‘जनी संगे दलिले’ यानी ‘जनाके साथ चक्की पीसते थे’ ऐसा गाया है। महाराष्ट्र प्रान्तमें जनाबाईका स्थान बहुत ही ऊँचा है।

FAQ’s –

जनाबाई कौन थीं और उनका परिचय क्या है?

जनाबाई महाराष्ट्र की प्रसिद्ध भक्तिमती और भक्त श्री नामदेवजी की नौकरानी थीं। उन्होंने नामदेवजी के घर में काम करते हुए भगवत प्रेम प्राप्त किया और उनकी भक्ति में लीन रहीं।

जनाबाई के जीवन में भगवत्प्रेम का कैसे प्रभाव पड़ा?

जनाबाई के जीवन में भगवत्प्रेम का प्रभाव नामदेवजी के घर में सत्संग और भगवच्चर्चा से पड़ा। उनकी भक्ति और नामस्मरण के चलते उनके हृदय में प्रेम का बीज अंकित हुआ और वह प्रेम एक मजबूत वृक्ष के रूप में उभरा।

एकादशी की रात जनाबाई के साथ क्या हुआ?

एकादशी की रात जनाबाई ने नामदेवजी के घर में भजन-कीर्तन के दौरान प्रेममय अनुभव किया। जब वह देर से घर लौटी, तो उसे एक अपरिचित वृद्धा ने उसकी कपड़े धोने में मदद की। यह वृद्धा वास्तव में भगवान का स्वरूप थी, जो जनाबाई के प्रेम के कारण उनके काम में सहायता करने आई थी।

जनाबाई की कहानी में वृद्धा का असली रूप क्या था?

जनाबाई की कहानी में वृद्धा का असली रूप भगवान का ही था। वह एक साक्षात नारायण थे जिन्होंने जनाबाई के प्रेमवश उसकी मदद की और उसकी भक्ति को सराहा।

जनाबाई के भगवान के प्रति प्रेम के विशेष लक्षण क्या थे?

जनाबाई का भगवान के प्रति प्रेम अत्यंत गहरा और सच्चा था। उन्होंने भगवान की भक्ति में सब कुछ अर्पित कर दिया और चक्की पीसते समय अभंग गाकर भगवान को प्रसन्न किया।

जनाबाई के अभंगों का महत्व क्या था?

जनाबाई के अभंग भगवान के प्रति उनके प्रेम और समर्पण को दर्शाते हैं। जब वह चक्की पीसते समय अभंग गाती थीं, तो भगवान स्वयं उनके लिए काम करते थे और उनकी भक्ति से प्रसन्न होते थे।

महाराष्ट्र में जनाबाई का स्थान क्या है?

महाराष्ट्र में जनाबाई का स्थान बहुत ऊँचा है। उन्हें भक्ति और भक्ति संगीत के लिए श्रद्धा और सम्मान प्राप्त है।

जनाबाई के जीवन से हमें क्या सिखने को मिलता है?

जनाबाई के जीवन से हमें सच्चे प्रेम और भक्ति का महत्व सिखने को मिलता है। उन्होंने अपने प्रेम और समर्पण से भगवान के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट किया और साधारण जीवन जीते हुए भी महान धार्मिक अनुभव प्राप्त किया।

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