26. जरासन्ध की पराजय

कंस और जरासन्ध का संबंध

 महाबली कंसने जरासन्धकी पुत्री अस्ति और प्राप्तिसे विवाह किया था, अतः वह अत्यन्त बलिष्ठ मगधराज क्रोधपूर्वक एक बहुत बड़ी सेना लेकर अपनी पुत्रियोंके स्वामी कंसको मारनेवाले श्रीहरिको यादवोंके सहित मारनेकी इच्छासे मथुरापर चढ़ आया ॥  मगधेश्वर जरासन्धने तेईस अक्षौहिणी सेनाके सहित आकर मथुराको चारों ओरसे घेर लिया ॥

कृष्ण और बलराम की तैयारी

तब महाबली राम और जनार्दन थोड़ी-सी सेनाके साथ नगरसे निकलकर जरासन्धके प्रबल सैनिकोंसे युद्ध करने लगे ॥ उस समय राम और कृष्णने अपने पुरातन शस्त्रोंको ग्रहण करनेका विचार किया॥  हरिके स्मरण करते ही उनका शार्ङ्ग धनुष, अक्षय बाणयुक्त दो तरकश और कौमोदकी नामकी गदा आकाशसे आकर उपस्थित हो गये ॥ बलभद्रजीके पास भी उनका मनोवांछित महान् हल और सुनन्द नामक मूसल आकाशसे आ गये ॥

तदनन्तर दोनों वीर राम और कृष्ण सेनाके सहित मगधराजको युद्धमें हराकर मथुरापुरीमें चले आये ॥ दुराचारी जरासन्धको जीत लेनेपर भी उसके जीवित चले जानेके कारण कृष्णचन्द्रने अपनेको अपराजित नहीं समझा ॥ 

जरासन्ध के खिलाफ युद्ध

जरासन्ध फिर उतनी ही सेना लेकर आया, किन्तु राम और कृष्णसे पराजित होकर भाग गया ॥  इस प्रकार अत्यन्त दुर्धर्ष मगधराज जरासन्धने राम और कृष्ण आदि यादवोंसे अट्ठारह बार युद्ध किया ॥  इन सभी युद्धोंमें अधिक सैन्यशाली जरासन्ध थोड़ी-सी सेनावाले यदुवंशियोंसे हारकर भाग गया॥ यादवोंकी थोड़ी-सी सेना भी जो [उसकी अनेक बड़ी सेनाओंसे] पराजित न हुई, यह सब भगवान् विष्णुके अंशावतार श्रीकृष्णचन्द्रकी सन्निधिका ही माहात्म्य था ॥

उन मानवधर्मशील जगत्पतिकी यह लीला ही है जो कि ये अपने शत्रुओंपर नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्र छोड़ रहे हैं ॥  जो केवल संकल्पमात्रसे ही संसारकी उत्पत्ति और संहार कर देते हैं, उन्हें अपने शत्रुपक्षका नाश करनेके लिये भला उद्योग फैलानेकी कितनी आवश्यकता है ? ॥  तथापि वे बलवानोंसे सन्धि और बलहीनोंसे युद्ध करके मानव-धर्मोका अनुवर्तन कर रहे थे ॥ वे कहीं साम, कहीं दान और कहीं भेदनीतिका व्यवहार करते थे तथा कहीं दण्ड देते और कहींसे स्वयं भाग भी जाते थे ॥  इस प्रकार मानवदेहधारियोंकी चेष्टाओंका अनुवर्तन करते हुए श्रीजगत्पतिकी अपनी इच्छानुसार लीलाएँ होती रहती थीं ॥ 

 

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