हमारे अमूल्य जीवन का मूल्य ब्रह्मांड में उपलब्ध किसी भी मूल्यवान वस्तु से नहीं आंका जा सकता। जीवन वास्तव में समय की पटरी पर चलने वाली एक ऐसी गाड़ी है, जिसमें गंतव्य तक पहुंचने का आनद भी है तो कहीं गत्यावरोधकों का त्रास भी है।
Table of Contents
सुख और कष्ट का संतुलन
जीवन में सुख की चाहे कितनी ही सामग्री क्यों न हो, किंतु छोटी सी प्रतिकूल घटना भी कष्ट उत्पन्न कर देती है। किसी अपने के द्वारा जरा सा अपमानजनक प्रसंग पीड़ा दे जाता है। थोड़ी सी निंदा मन की प्रसन्नता छीन लेती है। किसी के कटु शब्द जीवन में कड़वाहट पैदा कर देते हैं।
मानसिक द्वंद्व और वर्तमान
हम सभी अपने-अपने अतीत के साए में घिरे वर्तमान को मानसिक द्वंद्वद्धों से घसीटते हुए वक्त गुजारते हैं। जीवन को जीते कम और बोते ज्यादा हैं।
जीवन को जिंदादिली से जीना
नित-प्रति बहुत कुछ अनदेखा-अनचाहा और अनहोना होता है। ऐसी परिस्थितियों में स्वीकारे भाव में जोना ही जिंदादिली है। इस जिंदादिली का राज है कि जो भी मिला, उसका आनंद उठाएं। जो भी कुछ अच्छा-बुरा, शुभ-अशुभ, अनुकूल-प्रतिकूल मिला है, उसे समग्रता से स्वीकार करें।
अभिप्राय मात्र इतना ही है कि जीवन के समस्त क्षणों का, प्रत्येक परिस्थितियों का सदुपयोग करने की कला सीखना ही जिंदादिली से जीना है। हम जितना स्वीकार भाव की क्षमता को बढ़ाएंगे, हमारा जीवन उतना ही जीवंत होता जाएगा।
सुख और दुख का संतुलन
यह सदैव स्मरण रहे कि सुख और दुख दोनों ही अपने नहीं हैं। हमें इनका चुनाव नहीं, अपितु दोनों को स्वीकार करना होगा। दुख हमें कमजोर बनाता है और सुख हमें बंधन में डाल देता है।
निष्कर्ष
प्रतिकार मैं दुख और स्वीकार में सुख, यह सूत्र जीवन में जिंदादिली पैदा कर सकता है। जिस दिन अप्रिय वस्तु, अनचाहा व्यक्ति और प्रतिकूल परिस्थिति का सहयोग सहयोग और वांछित वस्तु प्रिय व्यक्ति एवं परिस्थितियों अनुकूल परि वियोग, इन का प्रसन्नता से स्ट्रीकार करना सीख लिया, दोनों को उस, दिन हमारे जीवन को वास्तविक अर्थ मिल जाएगा।
FAQs
जीवन का वास्तविक महत्व क्या है?
जीवन का वास्तविक महत्व उसकी अनमोलता में है, जो किसी भी मूल्यवान वस्तु से तुलना नहीं की जा सकती। यह समय की पटरी पर चलने वाली एक गाड़ी की तरह है, जिसमें सुख और कष्ट दोनों का संतुलन होता है।
जीवन में सुख और कष्ट का संतुलन कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
सुख और कष्ट का संतुलन प्राप्त करने के लिए हमें जीवन में प्राप्त हर अनुभव को समग्रता से स्वीकार करना चाहिए। सुख और दुख दोनों का स्वागत करना, हमें एक संतुलित जीवन जीने में मदद करता है।
मानसिक द्वंद्व का जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
मानसिक द्वंद्व हमें वर्तमान को पूरी तरह जीने से रोकते हैं। हम अक्सर अतीत के साए में वर्तमान को घसीटते हैं, जिससे जीवन के आनंद की कमी हो जाती ह
जीवन को जिंदादिली से जीने का क्या अर्थ है?
जीवन को जिंदादिली से जीने का अर्थ है, हर परिस्थिति को स्वीकार करना और जो भी मिले, उसका आनंद उठाना। यह जीवन में आने वाली हर अनदेखी, अनचाही और अनहोनी को स्वीकार करने की कला है।
सुख और दुख को कैसे स्वीकार करें?
सुख और दुख दोनों ही हमारे नहीं होते, बल्कि ये जीवन के अंग हैं। इनका चुनाव करने के बजाय हमें दोनों को स्वीकार करना चाहिए। दुख हमें सिखाता है, जबकि सुख हमें बांधता है, दोनों की स्वीकृति हमें जिंदादिली से जीने की प्रेरणा देती है।
जीवन में जिंदादिली क्यों महत्वपूर्ण है?
जिंदादिली जीवन को जीवंत और पूर्ण बनाती है। जब हम प्रतिकूल परिस्थितियों को स्वीकार करते हैं और उनसे सीखते हैं, तो हम जीवन के वास्तविक अर्थ को समझ पाते हैं और इसे पूरे आनंद के साथ जी सकते हैं।