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10. तीर्थव्रत

तीर्थव्रत

तीर्थव्रत

यजुर्वेद में कहा है कि जो महादेव के स्वरूप गण, दुष्टों से तीथों की रक्षा करते हुये तीथों में विचरते हैं उनको हमारा नमस्कार है।

द्विजोत्तमों का संग

पद्म पुराण में कहा है कि द्विजोत्तमो तीर्थों के प्रभाव से, अद्वैत् चिन्तक महात्माओं का संग होने से, पापी पुरुषों के पाप ऐसे नाश हो जाते हैं, जैसे अग्नि के संग से काष्ठ दग्ध हो जाता है।

गंगा, सरस्वती, नर्मदा का पुण्य

स्कन्ध पुराण में कहा है कि गंगा कनखल में पुण्य रूप हैं। सरस्वती कुरुक्षेत्र में पुण्य रूप हैं और नर्मदा ग्राम में तथा वन में सर्व स्थानों में पुण्य रूप है। अत्रि स्मृति में कहा है कि घर में स्नान करने से कूप पर स्नान करना दस गुणा पुण्यरूप है। कूप से दसगुणा त में, तड़ाग से दसगुणा नदी स्नान पुण्य रूप है और गंगा के स्नान के पुण्य की तो कोई संख्या ही नहीं हैं।

स्कन्ध पुराण में कहा है कि रात्रि में और संध्या में ग्रहण से बिना स्नान न करे। उष्ण जल से रोग बिना स्नान न करे। रात्रि में स्नान करने से शुद्धि नहीं होती है। सूर्य के दर्शन से ही सर्व कार्यों के

करने में शास्त्रों में शुद्धि विधानकारी है।

सात पुरीयों के महत्व

गरुड़ पुराण में कहा है कि (१) अयोध्यापुरी (२) मथुरापुरी (३) हरिद्वार मायापुरी (४) काशीपुरी (५) शिव विष्णु कांचीपुरी (६) अवन्तिकापुरी (७) द्वारकापुरी ये सात पुरिया स्नान-दान कर्ता के विचार पूर्वक निवास करने वाले पुरुषों को मोक्ष देने वाली, जानना तथा नाम लेने मात्र से पुण्य के देने वाली हैं।

चार तीर्थों के उपदेश

वायु पुराण में कहा है कि कुरुक्षेत्र, बद्री विशाल, विरजानदी, गया इन चारों को छोड़कर और सब तीर्थों में मुण्डन कराने का और उपवास करने का शास्त्रों ने विधान किया है।

पाप केशों में स्थितत्व

पाराशर स्मृति में कहा है कि जो कुछ भीं पुरुष पाप करता हैं। वे सर्व पाप केशों में स्थित रहते हैं। जिन केशधारी प्राणियों को मुण्डन नहीं कराना है उनको भी तीर्थों में जाकर सर्व केशों को उठाकर ऊपर से दो अंगुल काटना चाहिये।

केश और मूंछ का मुण्डन

शतपथ् ब्राह्मण में कहा है कि जो पुरुष केश और मूंछ का मुण्डन करता है और नखों को काटता है वह पुरुष शुभ कार्य करने के लिये पवित्र होता है।

व्रत करने की महत्ता

ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा है कि (१) श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (अतिपुण्यरूप) (२) रामनवमी (३) शिवरात्रि (४) एकादशी (५) रविवार इन ५ पुण्य पर्वों में जो पुरुष व्रत नहीं करते हैं, वे ब्रह्म हत्या को प्राप्त होते हैं और चाण्डाल से भी अधिक पापी कहे हैं। रविवार के यदि सर्व व्रत नहीं हो सके तो सप्तमी में रविवार होने पर अवश्य ही व्रत कर्त्तव्य है और एकादशियाँ भी सर्व नहीं हो सके, तो निर्जला, देवशयनी, देवउत्थानी ये तीन तो अवश्य ही कर्तव्य हैं।

पद्म पुराण में कहा है कि रोहिणी नक्षत्र के सहित कृष्णजन्म- अष्टमी बुधवार के सहित हो अथवा सोमवार के सहित हो तब  करोड़ों व्रतों के भी करने से क्या है ? इस एक कृष्णजन्म अष्टमी के व्रत से ही महान पुण्य की प्राप्ति होती है।

याज्ञवल्क्य स्मृति में कहा है कि जैसे कैसे भी पुरुष २४० ग्रास खाकर एक मास व्यतीत करे तो इस व्रत का नाम चान्द्रायण व्रत है। मास भर में आठ ग्रास रोज खाने पर दो सौ चालीस हो जाते हैं। दूसरा एक – एक ग्रास घटाना और बढ़ाना इससे भी दो सौ चालीस ही ग्रास होते हैं। ग्रास का भाव बड़े आंवले के समान कहा है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा है कि षट् मुहूर्त रात्रि व्यतीत होने पर (साढ़े दस बजे के बाद) रात्रि का नाम महानिशा हैं। इस महानिशा में कृष्ण जन्मअष्टमी को छोड़कर अन्न जल, फल, फूल आदि को खाने से पुरुष ब्रह्म हत्या को प्राप्त होता है और एक सूर्य में दो बार भोजन करना भी निषेध कहा है इस हेतु से संध्याकाल के पश्चात् और साढ़े दस बजे के पहले भोजन कर लेना चाहिए।

हरि का नाम के महत्व

प्रभुनाम नारदीय पुराण में कहा है कि जैसे इच्छा न होने पर भी स्पर्श करने पर अग्नि दग्ध कर देती हैं वैसे ही हरि का नाम दुष्ट चित्त से भी लिया हुआ पापों को हरण कर देता है और यदि शुभचित्त से लिया जाय तो महान फलदायक होता है।

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