देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है, और 12 नवंबर 2024 को इसे विशेष श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाएगा। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने का दिन माना जाता है। इसके साथ ही, इस दिन से सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों का आरम्भ होता है। शास्त्रों के अनुसार, इस एकादशी का व्रत और जागरण करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। आइए इस लेख में देवउठनी एकादशी का महत्व, व्रत की विधि, पूजा का तरीका और इससे प्राप्त होने वाले लाभों पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
देवउठनी एकादशी का महत्व
देवउठनी एकादशी का पौराणिक महत्व बहुत व्यापक है। ब्रह्माजी ने नारदजी से इस एकादशी के महात्म्य का वर्णन करते हुए कहा कि यह एकादशी व्यक्ति को हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ का फल प्रदान करती है। इसके अलावा, जो व्यक्ति इस दिन श्रीहरि का ध्यान और व्रत करता है, उसके पितृ भी नरक के दुखों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के परमधाम को प्राप्त होते हैं। कार्तिक मास की इस एकादशी का जागरण और व्रत करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान, दान करने से भी अधिक है।
देवउठनी एकादशी व्रत विधि
देवउठनी एकादशी का व्रत रखने से पहले भक्तों को पूरी श्रद्धा और संकल्प के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। व्रत की सही विधि इस प्रकार है:
- स्नान और संकल्प: इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु के व्रत का संकल्प लें।
- पूजा की तैयारी: पूजा के लिए भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और उन्हें फूल, कपूर, कुमकुम, फल, और तुलसी के पत्तों से सजाएँ।
- तुलसी का महत्व: तुलसी को विशेष महत्व दिया जाता है, इसलिए पूजा में तुलसी के पत्तों का प्रयोग करें। तुलसीदल अर्पण से समस्त पाप नष्ट होते हैं।
- भगवान विष्णु की आरती और कथा: प्रबोधिनी एकादशी की कथा का पाठ करें और भगवान विष्णु की आरती करें।
- रात्रि जागरण: व्रती को पूरी रात जागरण करना चाहिए, साथ ही विष्णु मंत्रों का जाप और भजन कीर्तन करते रहना चाहिए।
- दान और आहार: अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अपनी क्षमता के अनुसार दान करें। इस दिन गरीबों को भोजन और वस्त्र का दान करना अति शुभकारी माना गया है।
देवउठनी एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ
- पापों का नाश: इस दिन का व्रत करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं।
- मोक्ष की प्राप्ति: जो लोग इस व्रत को सच्चे मन से करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु के परमधाम में स्थान प्राप्त होता है।
- सुख-समृद्धि: भक्तिपूर्वक देवउठनी एकादशी का पालन करने से मनुष्य के जीवन में सुख-समृद्धि आती है और उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
- पितरों को मुक्ति: इस व्रत से न केवल व्रती के पाप समाप्त होते हैं, बल्कि उनके पितृ भी नरक के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।
देवउठनी एकादशी की कथा
नारदजीने कहा- पिताजी ! जिसमें धर्म-कर्ममें प्रवृत्ति करानेवाले भगवान् गोविन्द जागते हैं, उस ‘प्रबोधिनी’ एकादशीका माहात्म्य बतलाइये ।
ब्रह्माजी बोले- मुनिश्रेष्ठ ! ‘प्रबोधिनी’ का माहात्म्य पापका
नाश, पुण्यकी वृद्धि तथा उत्तम बुद्धिवाले पुरुषोंको मोक्ष प्रदान करनेवाला है। समुद्रसे लेकर सरोवरतक जितने भी तीर्थ हैं, वे सभी अपने माहात्म्यकी तभीतक गर्जना करते हैं, जबतक कि कार्तिक-मासमें भगवान् विष्णुकी ‘प्रबोधिनी’ तिथि नहीं आ जाती। ‘प्रबोधिनी’ एकादशीको एक ही उपवास कर लेनेसे मनुष्य हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञका फल पा लेता है। बेटा ! जो दुर्लभ है, जिसकी प्राप्ति असम्भव है तथा जिसे त्रिलोकीमें किसीने भी नहीं देखा है; ऐसी वस्तुके लिये भी याचना करनेपर ‘प्रबोधिनी’ एकादशी उसे देती है।
भक्तिपूर्वक उपवास करनेपर मनुष्योंको ‘हरिबोधिनी’ एकादशी ऐश्वर्य, सम्पत्ति, उत्तम बुद्धि, राज्य तथा सुख प्रदान करती है। मेरु पर्वतके समान जो बड़े-बड़े पाप हैं, उन सबको यह पापनाशिनी ‘प्रबोधिनी’ एक ही उपवाससे भस्म कर देती है। पहलेके हजारों जन्मोंमें जो पाप किये गये हैं, उन्हें ‘प्रबोधिनी’ की रात्रिका जागरण रूईकी ढेरीके समान भस्म कर डालता है। जो लोग ‘प्रबोधिनी’ एकादशीका मनसे ध्यान करते तथा जो इसके व्रतका अनुष्ठान करते हैं, उनके पितर नरकके दुःखोंसे छुटकारा पाकर भगवान् विष्णुके परमधामको चले जाते हैं। ब्रह्मन् ! अश्वमेध आदि यज्ञोंसे भी जिस फलकी प्राप्ति कठिन है, वह ‘प्रबोधिनी’ एकादशीको जागरण करनेसे अनायास ही मिल जाता है।
सम्पूर्ण तीर्थोंमें नहाकर सुवर्ण और पृथ्वी दान करनेसे जो फल मिलता है, वह श्रीहरिके निमित्त जागरण करनेमात्रसे मनुष्य प्राप्त कर लेता है। जैसे मनुष्योंके लिये मृत्यु अनिवार्य है, उसी प्रकार धन-सम्पत्तिमात्र भी क्षणभङ्गर है; ऐसा समझकर एकादशीका व्रत करना चाहिये। तीनों लोकोंमें जो कोई भी तीर्थ सम्भव हैं, वे सब ‘प्रबोधिनी’ एकादशीका व्रत करनेवाले मनुष्यके घरमें मौजूद रहते हैं। कार्तिककी ‘हरिबोधिनी’ एकादशी पुत्र तथा पौत्र प्रदान करनेवाली है। जो ‘प्रबोधिनी’ को उपासना करता है, वही ज्ञानी है वही योगी है, वही तपस्वी और जितेन्द्रिय है तथा उसीको भोग और मोक्षकी प्राप्ति होती है।
बेटा! ‘प्रबोधिनी’ एकादशीको भगवान् विष्णुके उद्देश्यसे मानव जो स्नान, दान, जप और होम करता है, वह सब अक्षय होता है। जो मनुष्य उस तिथिको उपवास करके भगवान् माधवकी भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं, वे सौ जन्मोंके पापोंसे छुटकारा पा जाते हैं। इस व्रतके द्वारा देवेश्वर जनार्दनको सन्तुष्ट करके मनुष्य सम्पूर्ण दिशाओंको अपने तेजसे प्रकाशित करता हुआ श्रीहरिके वैकुण्ठ धामको जाता है। ‘प्रबोधिनी’ को पूजित होनेपर भगवान् गोविन्द मनुष्योंके बचपन, जवानी और बुढ़ापेमें किये हुए सौ जन्मोंके पापोंको, चाहे वे अधिक हों या कम, धो डालते हैं। अतः सर्वथा प्रयत्न करके सम्पूर्ण मनोवाञ्छित फलोंको देनेवाले देवाधिदेव जनार्दनकी उपासना करनी चाहिये। बेटा नारद ! जो भगवान् विष्णुके भजनमें तत्पर होकर कार्तिकमें पराये अन्नका त्याग करता है, वह चान्द्रायण-व्रतका फल पाता है।
जो प्रतिदिन शास्त्रीय चर्चासे मनोरञ्जन करते हुए कार्तिकमास व्यतीत करता है, वह अपने सम्पूर्ण पापोंको जला डालता और दस हजार यज्ञोंका फल प्राप्त करता है। कार्तिकमासमें शास्त्रीय कथाके कहने-सुननेसे भगवान् मधुसूदनको जैसा सन्तोष होता है, वैसा उन्हें यज्ञ, दान अथवा जप आदिसे भी नहीं होता। जो शुभकर्म-परायण पुरुष कार्तिकमासमें एक या आधा श्लोक भी भगवान् विष्णुकी कथा बाँचते हैं, उन्हें सौ गोदानका फल मिलता है। महामुने ! कार्तिकमें भगवान् केशवके सामने शास्त्रका स्वाध्याय तथा श्रवण करना चाहिये। मुनिश्रेष्ठ ! जो कार्तिकमें कल्याण-प्राप्तिके लोभसे श्रीहरिकी कथाका प्रबन्ध करता है, वह अपनी सौ पीढ़ियोंको तार देता है। जो मनुष्य सदा नियमपूर्वक कार्तिकमासमें भगवान् विष्णुकी कथा सुनता है, उसे सहस्त्र गोदानका फल मिलता है।
जो ‘प्रबोधिनी’ एकादशीके दिन श्रीविष्णुकी कथा श्रवण करता है, उसे सातों द्वीपोंसे युक्त पृथ्वी दान करनेका फल प्राप्त होता है। मुनिश्रेष्ठ ! जो भगवान् विष्णुकी कथा सुनकर अपनी शक्तिके अनुसार कथा-वाचककी पूजा करते हैं, उन्हें अक्षय लोककी प्राप्ति होती है। नारद ! जो मनुष्य कार्तिकमासमें भगवत्सम्बन्धी गीत और शास्त्र-विनोदके द्वारा समय बिताता है, उसकी पुनरावृत्ति मैंने नहीं देखी है। मुने ! जो पुण्यात्मा पुरुष भगवान्के समक्ष गान, नृत्य, वाद्य और श्रीविष्णुकी कथा करता है, वह तीनों लोकोंके ऊपर विराजमान होता है।
मुनिश्रेष्ठ ! कार्तिककी ‘प्रबोधिनी’ एकादशीके दिन बहुत-से फल-फूल, कपूर, अरगजा और कुङ्कुमके द्वारा श्रीहरिकी पूजा करनी चाहिये। एकादशी आनेपर धनकी कंजूसी कंजूसी नहीं करनी चाहिये; क्योंकि उस दिन दान आदि करनेसे असंख्य पुण्यकी प्राप्ति होती है।’ प्रबोधिनी’ को जागरणके समय शङ्खमें जल लेकर फल तथा नाना प्रकारके द्रव्योंके साथ श्रीजनार्दनको अर्घ्य देना चाहिये। सम्पूर्ण तीर्थोंमें स्नान करने और सब प्रकारके दान देनेसे जो फल मिलता है, वही ‘प्रबोधिनी’ एकादशीको अर्घ्य देनेसे करोड़ गुना होकर प्राप्त होता है। देवर्षे ! अर्घ्यके पश्चात् भोजन-आच्छादन और दक्षिणा आदिके द्वारा भगवान् विष्णुकी प्रसन्नताके लिये गुरुकी पूजा करनी चाहिये। जो मनुष्य उस दिन श्रीमद्भागवतकी कथा सुनता अथवा पुराणका पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षरपर कपिलादानका फल मिलता है।
मुनिश्रेष्ठ! कार्तिकमें जो मनुष्य अपनी शक्तिके अनुसार शास्त्रोक्त रीतिसे वैष्णवव्रत (एकादशी) का पालन करता है, उसकी मुक्ति अविचल है। केतकीके एक पत्तेसे पूजित होनेपर भगवान् गरुड़ध्वज एक हजार वर्षतक अत्यन्त तृप्त रहते हैं। देवर्षे ! जो अगस्तके फूलसे भगवान् जनार्दनकी पूजा करता है, उसके दर्शनमात्रसे नरककी आग बुझ जाती है। वत्स ! जो कार्तिकमें भगवान् जनार्दनको तुलसीके पत्र और पुष्प अर्पण करते हैं, उनका जन्मभरका किया हुआ सारा पाप भस्म हो जाता है। मुने ! जो प्रतिदिन दर्शन, स्पर्श, ध्यान, नाम-कीर्तन, स्तवन, अर्पण, सेचन, नित्यपूजन तथा नमस्कारके द्वारा तुलसीमें नव प्रकारकी भक्ति करते हैं, वे कोटि सहस्त्र युगोंतक पुण्यका विस्तार करते हैं।
नारद ! सब प्रकारके फूलों और पत्तोंको चढ़ानेसे जो फल होता है, वह कार्तिकमासमें तुलसीके एक पत्तेसे मिल जाता है। कार्तिक आया देख प्रतिदिन नियमपूर्वक तुलसीके कोमल पत्तोंसे महाविष्णु श्रीजनार्दनका पूजन करना चाहिये। सौ यज्ञोंद्वारा देवताओंका यजन करने और अनेक प्रकारके दान देनेसे जो पुण्य होता है, वह कार्तिकमें तुलसीदलमात्रसे केशवकी पूजा करनेपर प्राप्त हो जाता है।
तुलसी विवाह का महत्व
तुलसी विवाह एक महत्वपूर्ण वैदिक अनुष्ठान है जो देवउठनी एकादशी के दिन या उसके अगले दिन, द्वादशी को आयोजित किया जाता है। तुलसी विवाह का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु और तुलसी देवी के बीच प्रतीकात्मक विवाह को संपन्न करना होता है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी विवाह करने से सभी वैवाहिक समस्याओं का समाधान होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। इस दिन तुलसी के पौधे का श्रीहरि के रूप में शालिग्राम से विवाह कराया जाता है।
तुलसी विवाह की पौराणिक कथा
तुलसी विवाह से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, वृंदा नाम की एक असुर कन्या भगवान विष्णु की परम भक्त थी। वृंदा के पति जलंधर थे जो एक शक्तिशाली असुर थे। वृंदा के तप के कारण जलंधर को अमरत्व का वरदान प्राप्त था। भगवान विष्णु ने भक्तों की रक्षा के लिए जलंधर का वध किया, जिससे वृंदा ने भगवान को श्राप दिया कि वह एक दिन पत्थर में परिवर्तित हो जाएं। विष्णु जी ने तुलसी के रूप में वृंदा को अमरता का वरदान दिया और उसे अपने शालिग्राम रूप से विवाह का आश्वासन दिया।
तुलसी विवाह के धार्मिक लाभ
तुलसी विवाह को पूर्ण धार्मिक विधि-विधान से करने पर व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और उसे भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। तुलसी विवाह का आयोजन करने वाले भक्तों को कई जन्मों के पुण्य प्राप्त होते हैं, और उनके घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
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FAQs
देवउठनी एकादशी का क्या महत्व है?
देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और संसार में सुख-समृद्धि का संचार करते हैं। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देवउठनी एकादशी कब है?
इस वर्ष 2024 में देवउठनी एकादशी 12 नवंबर को मनाई जाएगी।
क्या देवउठनी एकादशी पर दान का महत्व है?
हां, इस दिन दान का अत्यधिक महत्व है। गरीबों को भोजन, वस्त्र आदि का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होता है।
देवउठनी एकादशी का व्रत कैसे रखा जाता है?
देवउठनी एकादशी का व्रत रखने के लिए सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करें, दिनभर उपवास रखें, और रात को जागरण करें। अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान करें।
देवउठनी एकादशी पर तुलसी का क्या महत्व है?
तुलसी का भगवान विष्णु की पूजा में विशेष महत्व है। तुलसी के पत्ते अर्पण करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
तुलसी विवाह का आयोजन कौन कर सकता है?
तुलसी विवाह का आयोजन सभी भक्तगण कर सकते हैं, विशेष रूप से वे लोग जिनकी विवाह में समस्याएँ आ रही हैं।
क्या तुलसी विवाह से विवाह से जुड़ी समस्याएँ दूर होती हैं?
जी हाँ, तुलसी विवाह का आयोजन करने से विवाह में आने वाली अड़चनों का निवारण होता है और भगवान की कृपा से विवाह सुखद होता है।
क्या तुलसी विवाह का आयोजन अन्य तिथियों पर किया जा सकता है?
तुलसी विवाह का मुख्य आयोजन देवउठनी एकादशी के दिन ही किया जाता है, परंतु विशेष परिस्थिति में इसे द्वादशी के दिन भी किया जा सकता है।
तुलसी विवाह कैसे करें?
तुलसी विवाह का आयोजन एक सजीव विवाह की तरह होता है। तुलसी के पौधे को दुल्हन के रूप में सजाया जाता है और शालिग्राम को भगवान विष्णु के प्रतीक के रूप में रखा जाता है। इस दिन तुलसी और शालिग्राम के बीच विवाह के सभी संस्कार किए जाते हैं। विवाह के दौरान सभी रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है, जैसे कि हल्दी, मेंहदी, माला पहनाना, सात फेरे और आशीर्वाद देना।
तुलसी विवाह का महत्व वैवाहिक जीवन में सुख, शांति और संतान सुख के लिए अत्यधिक शुभ माना गया है।