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12. द्विविद-वध

द्विविद

द्विविद कौन था?

 द्विविद नामक एक महावीर्यशाली वानरश्रेष्ठ देवविरोधी दैत्यराज नरकासुरका मित्र था ॥ भगवान् कृष्णने देवराज इन्द्रकी प्रेरणासे नरकासुरका वध किया था, इसलिये वीर वानर द्विविदने देवताओंसे वैर ठाना ॥  [उसने निश्चय किया कि] “मैं मर्त्यलोकका क्षय कर दूँगा और इस प्रकार यज्ञ-यागादिका उच्छेद करके सम्पूर्ण देवताओंसे इसका बदला चुका लूँगा ” ॥  तबसे वह अज्ञानमोहित होकर यज्ञोंको विध्वंस करने लगा और साधुमर्यादाको मिटाने तथा देहधारी जीवोंको नष्ट करने लगा ॥ वह वन, देश, पुर और भिन्न-भिन्न ग्रामोंको जला देता तथा कभी पर्वत गिराकर ग्रामादिकोंको चूर्ण कर डालता ॥ कभी पहाड़ोंकी चट्टान उखाड़कर समुद्रके जलमें छोड़ देता और फिर कभी समुद्रमें घुसकर उसे क्षुभित कर देता ॥ उससे क्षुभित हुआ समुद्र ऊँची- ऊँची तरंगोंसे उठकर अति वेगसे युक्त हो अपने तीरवर्ती ग्राम और पुर आदिको डुबो देता था ॥  वह कामरूपी वानर महान् रूप धारणकर लोटने लगता था और अपने लुण्ठनके संघर्षसे सम्पूर्ण धान्यों (खेतों)-को कुचल डालता था ॥ उस दुरात्माने इस सम्पूर्ण जगत्को स्वाध्याय और वषट्कारसे शून्य कर दिया था, जिससे यह अत्यन्त दुःखमय हो गया ॥ 

बलराम जी द्वारा द्विविद वानर का वध

एक दिन श्रीबलभद्रजी रैवतोद्यानमें [क्रीडासक्त होकर ] मद्यपान कर रहे थे। साथ ही महाभागा रेवती तथा अन्य सुन्दर रमणियाँ भी थीं ॥ उस समय यदुश्रेष्ठ श्रीबलरामजी मन्दराचलपर्वतपर कुबेरके समान [ रैवतकपर स्वयं ] रमण कर रहे थे ॥ इसी समय वहाँ द्विविद वानर आया और श्रीहलधरके हल और मूसल लेकर उनके सामने ही उनकी नकल करने लगा॥ वह दुरात्मा वानर उन स्त्रियोंकी ओर देख-देखकर हँसने लगा और उसने मदिरासे भरे हुए घड़े फोड़कर फेंक दिये ॥ 

तब श्रीहलधरने क्रुद्ध होकर उसे धमकाया तथापि वह उनकी अवज्ञा करके किलकारी मारने लगा ॥ तदनन्तर श्रीबलरामजीने मुसकाकर क्रोधसे अपना मूसल उठा लिया तथा उस वानरने भी एक भारी चट्टान ले ली ॥ और उसे बलरामजीके ऊपर फेंकी, किन्तु यदुवीर बलभद्रजीने मूसलसे उसके हजारों टुकड़े कर दिये; जिससे वह पृथिवीपर गिर पड़ी ॥ तब उस वानरने बलरामजीके मूसलका वार बचाकर रोषपूर्वक अत्यन्त वेगसे उनकी छातीमें घूँसा मारा ॥ तत्पश्चात् बलभद्रजीने भी क्रुद्ध होकर द्विविदके सिरमें घूँसा मारा जिससे वह रुधिर वमन करता हुआ निर्जीव होकर पृथिवीपर गिर पड़ा ॥ उसके गिरते समय उसके शरीरका आघात पाकर इन्द्र-वज्रसे विदीर्ण होनेके समान उस पर्वतके शिखरके सैकड़ों टुकड़े हो गये ॥

देवताओं द्वारा बलराम जी की प्रशंसा

उस समय देवतालोग बलरामजीके ऊपर फूल बरसाने लगे और वहाँ आकर “आपने यह बड़ा अच्छा किया” ऐसा कहकर उनकी प्रशंसा करने लगे ॥ ” हे वीर ! दैत्यपक्षके उपकारक इस दुष्ट वानरने संसारको बड़ा कष्ट दे रखा था; यह बड़े ही सौभाग्यका विषय है कि आज यह आपके हाथों मारा गया।” ऐसा कहकर गुह्यकोंके सहित देवगण अत्यन्त हर्षपूर्वक स्वर्गलोकको चले आये ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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