103. द्वीपों का विशेष वर्णन

 द्वीपों का विशेष वर्णन

प्लक्षद्वीप

जिस प्रकार जम्बूद्वीप क्षारसमुद्रसे घिरा हुआ है उसी प्रकार क्षारसमुद्रको घेरे हुए प्लक्षद्वीप स्थित है ॥ जम्बूद्वीपका विस्तार एक लक्ष योजन है और प्लक्षद्वीपका है ॥ प्लक्षद्वीपके जाता कहा उससे दूना स्वामी मेधातिथिके सात पुत्र हुए । उनमें सबसे बड़ा शान्तहय था और उससे छोटा शिशिर ॥ उनके अनन्तर क्रमशः सुखोदय , आनन्द , शिव और क्षेमक थे तथा सातवाँ ध्रुव था । ये सब प्लक्षद्वीपके अधीश्वर हुए ॥ [ उनके अपने – अपने अधिकृत वर्षोंमें ] प्रथम शान्तहयवर्ष है तथा अन्य शिशिरवर्ष , सुखोदयवर्ष , आनन्दवर्ष , शिववर्ष , क्षेमकवर्ष और ध्रुववर्ष हैं ॥ तथा उनकी मर्यादा निश्चित करनेवाले अन्य सात पर्वत हैं । उनके नाम ये हैं , सुनो – ॥

गोमेद , चन्द्र , नारद , दुन्दुभि , सोमक , सुमना और सातवाँ वैभ्राज ॥ इन अति सुरम्य वर्ष – पर्वतों और वर्षोंमें देवता और गन्धर्वोंके सहित सदा निष्पाप प्रजा निवास करती है ॥ वहाँके निवासीगण पुण्यवान् होते हैं और वे चिरकालतक जीवित रहकर मरते हैं ; उनको किसी प्रकारकी आधि – व्याधि नहीं होती , निरन्तर सुख ही रहता है ॥ उन वर्षोंकी सात ही समुद्रगामिनी नदियाँ हैं ।उनके नाम तुम्हें बतलाता हूँ जिनके श्रवणमात्रसे वे पापोंको दूर कर देती हैं ॥ वहाँ अनुतप्ता , शिखी , विपाशा त्रिदिवा , अक्लमा , अमृता और सुकृता – ये ही सात नदियाँ हैं ॥

यह मैंने तुमसे प्रधान प्रधान पर्वत और नदियोंका वर्णन किया है ; वहाँ छोटे – छोटे पर्वत और नदियाँ तो और भी सहस्रों हैं । उस देशके हृष्ट – पुष्ट लोग सदा उन नदियोंका जल पान करते हैं ॥ उन लोगोंमें ह्रास अथवा वृद्धि नहीं होती और न उन सात वर्षोंमें युगकी ही कोई अवस्था है ॥ प्लक्षद्वीपसे लेकर शाकद्वीपपर्यन्त छहों द्वीपोंमें सदा त्रेतायुगके समान समय रहता है ॥ इन द्वीपोंके मनुष्य सदा नीरोग रहकर पाँच हजार वर्षतक जीते हैं और इनमें वर्णाश्रम विभागानुसार पाँचों धर्म ( अहिंसा , सत्य , अस्तेय , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ) वर्तमान रहते हैं ॥ वहाँ जो चार वर्ण हैं वह मैं तुमको सुनाता हूँ ॥

उस द्वीपमें जो आर्यक , कुरर , विदिश्य और भावी नामक जातियाँ हैं ; वे ही क्रमसे ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र हैं ॥ उसीमें जम्बूवृक्षके ही परिमाणवाला एक प्लक्ष ( पाकर ) का वृक्ष है , जिसके नामसे उसकी संज्ञा प्लक्षद्वीप हुई है ॥ वहाँ आर्यकादि वर्णोद्वारा जगत्स्रष्टा , सर्वरूप , सर्वेश्वर भगवान् हरिका सोमरूपसे यजन किया जाता है ॥ प्लक्षद्वीप अपने ही बराबर परिमाणवाले वृत्ताकार इक्षुरसके समुद्रसे घिरा हुआ है ॥

शाल्मलद्वीप:

शाल्मलद्वीपके स्वामी वीरवर वपुष्मान् थे । उनके पुत्रोंके नाम सुनो – हे महामुने ! वे श्वेत , हरित , जीमूत , रोहित , वैद्युत , मानस और सुप्रभ थे । उनके सात वर्ष उन्हींके नामानुसार संज्ञावाले हैं ॥ यह ( प्लक्षद्वीपको घेरनेवाला ) इक्षुरसका समुद्र अपनेसे दूने विस्तारवाले इस शाल्मलद्वीपसे चारों ओरसे घिरा हुआ है ॥ वहाँ भी रत्नोंके उद्भवस्थानरूप सात पर्वत हैं , जो उसके सातों वर्षोंके विभाजक हैं तथा सात नदियाँ हैं ॥ पर्वतोंमें पहला कुमुद , दूसरा उन्नत और तीसरा बलाहक है तथा चौथा द्रोणाचल है , जिसमें नाना प्रकारकी महौषधियाँ हैं ॥ पाँचवाँ कंक , छठा महिष और सातवाँ गिरिवर ककुद्मान् है । अब नदियोंके नाम सुनो ॥

वे योनि , तोया , वितृष्णा , चन्द्रा , मुक्ता , विमोचनी और निवृत्ति हैं तथा स्मरणमात्रसे ही सारे पापको कर देनेवाली हैं ॥ श्वेत , हरित , वैद्युत , मानस , जीमूत , रोहित और अति शोभायमान सुप्रभ – ये उसके चारों वर्णोंसे युक्त सात वर्ष हैं ॥ शाल्मलद्वीपमें कपिल , अरुण , पीत और कृष्ण — ये चार वर्ण निवास करते हैं जो पृथक् – पृथक् क्रमशः ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र हैं । ये यजनशील लोग सबके आत्मा , अव्यय और यज्ञके आश्रय वायुरूप विष्णुभगवान्का श्रेष्ठ यज्ञोंद्वारा यजन करते हैं ॥

इस अत्यन्त मनोहर द्वीपमें देवगण सदा विराजमान रहते हैं । इसमें शाल्मल ( सेमल ) का एक महान् वृक्ष है जो अपने नामसे ही अत्यन्त शान्तिदायक है ॥ यह द्वीप अपने समान ही विस्तारवाले एक मदिराके समुद्रसे सब ओरसे पूर्णतया घिरा हुआ है ॥ और यह सुरासमुद्र शाल्मलद्वीपसे दूने विस्तारवाले कुशद्वीपद्वारा सब ओरसे परिवेष्टित है ॥

कुशद्वीप:

कुशद्वीपमें [ वहाँके अधिपति ] ज्योतिष्मान्के  सात पुत्र थे , उनके नाम सुनो । वे उद्भिद , वेणुमान् , वैरथ , लम्बन , धृति , प्रभाकर और कपिल थे । उनके नामानुसार ही वहाँके वर्षोंके नाम पड़े ॥ उसमें दैत्य और दानवोंके सहित मनुष्य तथा देव , गन्धर्व , यक्ष और किन्नर आदि निवास करते हैं ॥ हे महामुने ! वहाँ भी अपने – अपने कर्मोंमें तत्पर दमी , शुष्मी , स्नेह और मन्देहनामक चार ही वर्ण हैं , जो क्रमशः ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र ही हैं ॥

अपने प्रारब्धक्षयके निमित्त शास्त्रानुकूल कर्म करते हुए वहाँ कुशद्वीपमें ही वे ब्रह्मरूप जनार्दनकी उपासनाद्वारा अपने प्रारब्धफलके देनेवाले अत्युग्र अहंकारका क्षय करते हैं ॥ हे महामुने ! उस द्वीपमें विद्रुम , हेमशैल , द्युतिमान् , पुष्पवान् , कुशेशय , हरि और सातवाँ मन्दराचल- ये सात वर्षपर्वत हैं । तथा उसमें सात ही नदियाँ हैं , उनके नाम क्रमशः सुनो – ॥ धूतपापा , शिवा , पवित्रा सम्मति , विद्युत् , अम्भा और मही हैं । ये सम्पूर्ण पापोंको हरनेवाली हैं ॥

क्रौंचद्वीप:

वहाँ और भी सहस्रों छोटी – छोटी नदियाँ और पर्वत हैं । कुशद्वीपमें एक कुशका झाड़ है । उसीके कारण इसका यह नाम पड़ा है ॥ यह द्वीप अपने ही बराबर विस्तारवाले घीके समुद्रसे घिरा हुआ है और वह घृत समुद्र क्रौंचद्वीपसे परिवेष्टित है ॥अब इसके अगले क्रौंचनामक महाद्वीपके विषयमें सुनो , जिसका विस्तार कुशद्वीपसे दूना है ॥ क्रौंचद्वीपमें महात्मा द्युतिमान्के जो पुत्र थे ; उनके नामानुसार ही महाराज द्युतिमान्ने उनके वर्षोंके नाम रखे ॥ हे मुने ।उसके कुशल , मन्दग , उष्ण , पीवर , अन्धकारक , मुनि और दुन्दुभि ये सात पुत्र थे ॥ वहाँ भी देवता और गन्धवसे सेवित अति मनोहर सात वर्षपर्वत हैं । हे महाबुद्धे ! उनके नाम सुनो- ॥

उनमें पहला क्रौंच , दूसरा वामन , तीसरा अन्धकारक , चौथा घोड़ीके मुखके समान रत्नमय स्वाहिनी पर्वत , पाँचवाँ दिवावृत् , छठा पुण्डरीकवान् और सातवाँ महापर्वत दुन्दुभि है । वे द्वीप परस्पर एक – दूसरेसे दूने हैं ; और उन्हींकी भाँति उनके पर्वत भी [ उत्तरोत्तर द्विगुण ] हैं ॥ इन सुरम्य वर्षों और पर्वतश्रेष्ठोंमें देवगणोंके सहित सम्पूर्ण प्रजा निर्भय होकर रहती है ॥ वहाँके ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र क्रमसे पुष्कर , पुष्कल , धन्य और तिष्य कहलाते हैं ॥ हे मैत्रेय ! वहाँ जिनका जल पान किया जाता है उन नदियोंका विवरण सुनो ।

उस द्वीपमें सात प्रधान तथा अन्य सैकड़ों क्षुद्र नदियाँ हैं ॥ वे सात वर्षनदियाँ गौरी , कुमुद्वती , सन्ध्या , रात्रि , मनोजवा , क्षान्ति और पुण्डरीका हैं ॥ वहाँ भी रुद्ररूपी जनार्दन भगवान् विष्णुकी पुष्करादि वर्णोद्वारा यज्ञादिसे पूजा की जाती है ॥ यह क्रौंचद्वीप चारों ओरसे अपने तुल्य परिमाणवाले दधिमण्ड ( मट्ठे ) -के समुद्रसे घिरा हुआ है ॥ यह मट्ठेका समुद्र भी शाकद्वीपसे घिरा हुआ है , जो विस्तारमें क्रौंचद्वीपसे दूना है ॥

शाकद्वीप:

शाकद्वीपके राजा महात्मा भव्यके भी सात ही पुत्र थे । उनको भी उन्होंने पृथक् – पृथक् सात वर्ष दिये ॥ वे सात पुत्र जलद , कुमार , सुकुमार , मरीचक, कुसुमोद , मौदाकि और महाद्रुम थे । उन्हींके नामानुसार वहाँ क्रमशः सात वर्ष हैं और वहाँ भी वर्षोंका विभाग करनेवाले सात ही पर्वत हैं ।। वहाँ पहला पर्वत उदयाचल है और दूसरा जलाधार ; तथा अन्य पर्वत रैवतक , श्याम , अस्ताचल , आम्बिकेय और अति सुरम्य गिरिश्रेष्ठ केसरी हैं ॥

वहाँ सिद्ध और गन्धर्वोंसे सेवित एक अति महान् शाकवृक्ष है , जिसके वायुका स्पर्श करनेसे हृदयमें परम आह्लाद उत्पन्न होता है ॥ वहाँ चातुर्वर्ण्यसे युक्त अति पवित्र देश और समस्त पाप तथा भयको दूर करनेवाली सुकुमारी , कुमारी , नलिनी , धेनुका , इक्षु , वेणुका और गभस्ती – ये सात महापवित्र नदियाँ हैं ।। इनके सिवा उस द्वीपमें और भी सैकड़ों छोटी – छोटी नदियाँ और सैकड़ों हजारों पर्वत हैं ॥

स्वर्ग – भोगके अनन्तर जिन्होंने पृथिवी – तलपर आकर जलद आदि वर्षोंमें जन्म ग्रहण किया है वे लोग प्रसन्न होकर उनका जल पान करते हैं ॥ उन सातों वर्षोंमें धर्मका ह्रास पारस्परिक संघर्ष ( कलह ) अथवा मर्यादाका उल्लंघन कभी नहीं होता ॥ वहाँ मग , मागध , मानस और मन्दग ये चार वर्ण हैं । इनमें मग सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण हैं , मागध क्षत्रिय हैं , मानस वैश्य हैं तथा मन्दग शूद्र हैं ॥  शाकद्वीपमें शास्त्रानुकूल कर्म करनेवाले पूर्वोक्त चारों वर्णोद्वारा संयत चित्तसे विधिपूर्वक सूर्यरूपधारी भगवान् विष्णुकी उपासना की जाती है ॥ वह शाकद्वीप अपने ही बराबर विस्तारवाले मण्डलाकार दुग्धके समुद्रसे घिरा हुआ है ॥

पुष्करद्वीप:

वह क्षीर – समुद्र शाकद्वीपसे दूने परिमाणवाले पुष्करद्वीपसे परिवेष्टित है ॥ पुष्करद्वीपमें वहाँके अधिपति महाराज सवनके महावीर और धातकि नामक दो पुत्र हुए । अतः उन दोनोंके नामानुसार उसमें महावीर – खण्ड और धातकी खण्ड नामक दो वर्ष हैं ॥ हे महाभाग ! इसमें मानसोत्तर नामक एक ही वर्ष – पर्वत कहा जाता है जो इसके मध्यमें वलयाकार स्थित है तथा पचास सहस्त्र योजन ऊँचा और इतना ही सब ओर गोलाकार फैला हुआ है ॥ यह पर्वत पुष्करद्वीपरूप गोलेको मानो बीचमेंसे विभक्त कर रहा है और इससे विभक्त होनेसे उसमें दो वर्ष हो गये हैं ; उनमेंसे प्रत्येक वर्ष और वह पर्वत वलयाकार ही है ॥ वहाँके मनुष्य रोग , शोक और राग – द्वेषादिसे रहित हुए दस सहस्र वर्षतक जीवित रहते हैं ॥ 

उनमें उत्तम – अधम अथवा वध्य – वधक आदि ( विरोधी ) भाव नहीं हैं और न उनमें ईर्ष्या , असूया , भय , द्वेष और लोभादि दोष ही हैं ॥ महावीरवर्ष मानसोत्तर पर्वतके बाहरकी ओर है और धातकी – खण्ड भीतरकी ओर । इनमें देव और दैत्य आदि निवास करते हैं ॥ दो खण्डोंसे युक्त उस पुष्करद्वीपमें सत्य और मिथ्याका व्यवहार नहीं है और न उसमें पर्वत तथा नदियाँ ही हैं ॥ वहाँके मनुष्य और देवगण समान वेष और समान रूपवाले होते हैं ।

वर्णाश्रमाचारसे हीन , काम्य कर्मोंसे रहित तथा वेदत्रयी , कृषि , दण्डनीति और शुश्रूषा आदिसे शून्य वे दोनों वर्ष तो मानो अत्युत्तम भौम ( पृथिवीके ) स्वर्ग हैं ॥  उन महावीर और धातकी खण्ड नामक वर्षोंमें काल ( समय ) समस्त ऋतुओंमें सुखदायक और जरा तथा रोगादिसे रहित रहता है ॥ पुष्करद्वीपमें ब्रह्माजीका उत्तम निवासस्थान एक न्यग्रोध ( वट ) का वृक्ष है , जहाँ देवता और दानवादिसे पूजित श्रीब्रह्माजी विराजते हैं ॥पुष्करद्वीप चारों ओरसे अपने ही समान विस्तारवाले मीठे पानीके समुद्रसे मण्डलके समान घिरा हुआ है ।

इस प्रकार सातों द्वीप सात समुद्रोंसे घिरे हुए हैं और वे द्वीप तथा [ उन्हें घेरनेवाले ] समुद्र परस्पर समान हैं , और उत्तरोत्तर दूने होते गये हैं ॥ सभी समुद्रोंमें सदा समान जल रहता है , उसमें कभी न्यूनता अथवा अधिकता नहीं होती ॥ हे मुनिश्रेष्ठ ! पात्रका जल जिस प्रकार अग्निका संयोग होनेसे उबलने लगता है उसी प्रकार चन्द्रमाकी कलाओंके बढ़ने से समुद्रका जल भी बढ़ने लगता है ॥ शुक्ल और कृष्ण पक्षोंमें चन्द्रमाके उदय और अस्तसे न्यूनाधिक होते हुए ही जल घटता और बढ़ता है ॥

 समुद्रके जलकी वृद्धि और क्षय पाँच सौ दस ( ५१० ) अंगुलतक देखी जाती है ॥ पुष्करद्वीपमें सम्पूर्ण प्रजावर्ग सर्वदा [ बिना प्रयत्नके ] अपने – आप ही प्राप्त हुए षड्रस भोजनका आहार करते हैं ॥ स्वादूदक ( मीठे पानीके ) समुद्रके चारों ओर लोक निवाससे शून्य और समस्त जीवोंसे रहित उससे दूनी सुवर्णमयी भूमि दिखायी देती है ॥ वहाँ दस सहस्र योजन विस्तारवाला लोकालोक – पर्वत है । वह पर्वत ऊँचाईमे भी उतने ही सहस्र योजन है ॥

उसके आगे उस पर्वतको सब ओरसे आवृतकर घोर अन्धकार छाया हुआ है , तथा वह अन्धकार चारों ओरसे ब्रह्माण्ड – कटाहसे आवृत है ॥ हे महामुने ! अण्डकटाहके सहित द्वीप , समुद्र औ पर्वतादियुक्त यह समस्त भूमण्डल पचास करोड़ योजन विस्तारवाला है ॥ आकाशादि समस्त भूतो अधिक गुणवाली यह पृथिवी सम्पूर्ण जगत्की आधारभूत और उसका पालन तथा उद्भव करनेवाली है ॥

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