1. धन, कीर्ति, विद्या और बुद्धि के स्रोत
यत्नानुसारिंणी लक्ष्मीःकीर्तिस्त्यागानुसारिणी ।
अभ्याससारिणी विद्या बुद्धि कर्मानुसारिणी ॥१॥
अर्थ-यत्नानुसारिणीति लक्ष्मी (धन) उद्यम से, कीर्ति घन त्याग से, विद्या अभ्यास से और बुद्धि कर्मों के अनुसार होती है ।
2. कुछ गतिविधियों और व्यवहारों की प्रकृति
उद्योग कलहा कंडूचत्तं मद्य परिस्त्रियः ।
आहारो मैथुनं निद्रा सेव्यमान’ तु वर्द्धते |२|
अर्थ – उद्योगइति-उद्यम, लड़ाई, खुजली, द्यूत, मद्य,परस्त्री प्रेम, आहार, मैथुन और निद्रा यह सब सेवन करने से अत्यन्त बढ़ जाते हैं ।
3. उद्योग और आलस्य पर विचार
उद्योग: ‘शत्रुवन्मित्रमालस्य’ मित्रवद्विषम । विषवच्चामृत ं विद्या सुधावद्विषमंगना ॥ ३ ॥
अर्थ- उद्योगइति-उद्यम शत्रु के समान मित्र समझो, और आलस्य मित्र के समान प्रेम करते हुए शत्रु समझो, विद्या विष के समान होती हुई भी अमृत के तुल्य समझो और स्त्री अमृत के समान विष ही जानो ।
4. अपने व्यवसाय में दृढ़ता का महत्व
कषिः सेवा वणिग्विद्या येन यस्योपजीवितम
सुदृढं चैव कर्त्तव्यं कृष्णसर्पमुख यथा ॥४॥
अर्थ – कृषिरिति– कृषि (खेती) व्यापार, नौकरी और विद्या इनमें से जिस मनुष्य का जिस से आजीवन हो उस को दृढ़ होकर करे जैसे काले सांप का डंक दृढ़ होता है ।
5. कठिनाइयों पर विजय और सफलता प्राप्त करना
जितं कृषीभिर्दारिदन्य’ गोभिरभ्यगतो जितः ।
जिता धनवता नारी तथा शास्त्रजिता सभा |५|
अर्थ-जितेति खेती से दरिद्रता, क्षीरादि भोजन से अतिथि, धनी पुरुष से नारी और शास्त्र विचार से सभा जीत लो जाती है ॥
6. वर्षा, जप, मौन और जागरण के लाभ
वष्टितो नास्ति दुर्भिक्षं जपतो नास्ति पातकम् ।
मौनतः कलहो नास्ति नास्ति जागरतो भयम् । ६ ।
अर्थ-वर्षा से अकाल, मन्त्र जपने से पाप, मौन रहने से लड़ाई और जागने से भय दूर हो जाता है ॥
7. कठिनाइयों के लिए योजना और तैयारी
न दैवमिति संचित्य त्यजेदुद्योगमात्मनः ।
अनुद्योगे तु कस्तैल तिलेभ्यः प्राप्तुमिच्छति |७|
अर्थ-नेति-जो कुछ है सब प्रारब्ध ही है ऐसे विचार कर उद्यम नहीं छोड़ना चाहिये क्योंकि बिना उद्यम के दिलों से भी तेल प्राप्त नहीं हो सकता ॥
8. महान व्यक्तियों के लक्षण
चिंतनीया हि विपदामादावेव प्रतिक्रिया ।
न कूपखननं कार्य प्रदीप्ते वह्निना गृहे ॥८॥
अर्थ- चिन्तनीयेति सब कार्यों के आरम्भ में ही विष त्तियों का विचार करे, और उनके विनाश का उपाय सोचे क्योंकि घर के जलने पर उसी समय कुआं नहीं खोदा जाता ॥
प्रारम्भे सर्वकार्याणि विचार्याणि पुनः पुनः ।
प्रारब्धस्यांतगमनं महापुरुषलक्षणम् ।।९॥
अर्थ- प्रारम्भइति-कार्यारम्भ से पूर्व अपनी शक्ति को देख लेना चाहिए, क्योंकि आरम्भ किये हुए कामों को अंत तक पहुंचाना ही महापुरुषों के लक्षण हैं ॥
9. धन अर्जित करने की श्रेणियाँ
उत्तमः स्वाजितैर्वित्तैः पितुर्वित्तेन मध्यमः ।
अधमो मातृत्वत्तेन स्त्रीवित्तेनाधमाधमः । १०।
अर्थ – उत्तमइति स्वयं धन को कमाने वाला अति उत्तम पिता के द्रव्य से धनी मध्यम, माता मही वा मातुलादि (मामा) को सम्पत्ति से धनवान् अधम् और श्वसुर कुल की सम्पत्ति से धनवान होता हुआ अति नीच होता है ॥
10. धन की परेशानियाँ
अर्थस्योपार्जने दुःखमर्जितस्यापि रक्षणे ।
नाशे दुःखं व्यये दुःखं धिगर्थं दुखभाजनम् ।
अविश्वासविधानाय महापातकहेतवे ।
पितृ पुत्र विरोधाय हिरण्याय नमोऽस्तुते ।११।
अर्थ-अर्थस्येति-धन के संग्रह में, उसकी रक्षा में, उसके – नाश से, खर्च से, सब दुःख ही दुःख है इस लिए इस दुःखदाई धन को धिक्कार है, जो धन आपस में अविश्वास के लिए, विरोध का कारण है, और पापों का घर, और पिता पुत्र उस धन को नमस्कार हो ॥
11. यौवन, धन, प्रभुता और अज्ञान के खतरे
यौवन धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता ।
एकैकमप्यनर्थाय किंपुनस्तच्चतुष्टयम् ॥१२॥
अर्थ-यौवनमिति-यौवन (जवानी) धन ऐश्वर्य, प्रभुता,अज्ञान, यह एक एकअनर्थ का हेतु है यदि यह चारों ही हों तो क्या कहना ॥