धर्म और सत्य के सिद्धांत
1. नेति:
न मंत्रो न तपो दान न मित्राणि न बान्धवाः ।
शक्नुवन्ति परित्रातु’ नरं कालेन पीड़ितम |१|
अर्थ – नेति-मृत्यु के मुख से मंत्र, तप, दान, मित्र और बन्धु ये कोई भी पुरुष की रक्षा नहीं कर सकते॥
2. सुखनेति:
सुखेन वर्द्धते कर्म तद्विपाको हिदुस्तरः ।
हमंत्या धार्यते गर्भो रुदन्त्या परिमुच्यते ॥२॥
अर्थ —सुखनेति-इस संसार में मनुष्य भला बुरा कार्य कर तो लेता है परन्तु उस का भोगना बड़ा दुखदायी हो जाता है। जैसे स्त्री गर्भ को हंसते हुए धारण करती हैं। परतु त्याग के समय अत्यंत कष्ट होता है ॥
3. स्वयमिति:
स्वयं कर्म करोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते ।
स्वयं वृजाति संसारे स्वयं मोक्षं च गच्छति ॥३॥
अर्थ-स्वयमिति यह जीव संसार में स्वयं करता और स्वयं भोगता, और आप ही इस संसार में आता जाता, और आप ही मुक्त हो जाता है || 3||
4. मिथ्येति:
मिथ्याभावनया दुःख सत्यभावनया सुखम ।
ज्ञानभावनया कर्म नश्यत्येव न संशयः । ४।
अर्थ- मिथ्येति-झूठी भावना से जैसे यह मेरा है, दुःख और सत्य भावना से अर्थात् ममत्व कुछ भी नहीं, ज्ञान के प्रकाश से सब कर्म नष्ट हो जाता हैं ॥
5. अवसर मिति:
सुख और अवसरपठितं सर्व सुभाषतित्वं प्रयातियत्किचित ।
वामः प्रयाणकाले खरनिनदो मङ्गलो भवति |५|
अर्थ-अवसर मिति-समय पर कही हुई बुरी बात भी उत्तम कहा जाती है जैसे यात्रा समय बाई ओर गधे का शब्द उत्तम कहा जाता है ॥
6. उदयतीति:
उदयति यदि भानुः पश्चिमे दिग्वभागे प्रचलित यदि मेरुः शीततां याति वह्निः ।
प्रभवति यदि पद्म पर्वताग्र े शिलायां तदपि न पुरुनक्तं भाषित सज्जनानाम | ६|
अर्थ – उदयतीति यदि सूर्य पूर्व दिशा को छोड़ कर पश्चिम से उदय हो जाये, सुमेरु पर्वत यदि चल पड़े चाहे अग्नि का स्वभाव शीतल हो जाये, और चाहे पर्वत पर शिलाओं में से कमल उत्पन्न हो जायें, परन्तु तो भी सज्जन का वचन नहीं लौटता ॥
7. बुद्धेरिति:
बुद्धे फलं तत्वविचारणं च देहस्य सारं व्रतधारणं च।
वित्तस्य सारं खलु पात्रदानं वाचः फल प्रीतिकर नराणाम ॥७॥
अर्थ- बुद्धेरिति बुद्धि का फल ज्ञान का विचार, देह का सार व्रत धारण, धन का सार पात्र को देना, और वाक्य का सार मीठा बोलना है ॥
8. यन्मुखमिति:
यन्मुख शास्त्रविभ्रष्टं तांबूलरस बजतम ।
सुभाषितपरित्यक्तं छिद्रमेव हि केवलम |८|
अर्थ – यन्मुखमिति – जो मुख शास्त्र से रहित ताम्बूलादि सुगन्धित पदार्थों से भी रहित और मीठी बाणी से भी होन हो तो वह मुख छिद्रमात्र ही जानों ॥
9. कोऽतिभारइति:
कोऽतिभारः समर्थानां कि दूर व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सुविधानां कः परः प्रियवादिनाम् ॥९॥
अर्थ- कोऽतिभारइति- बलवानों के लिए क्या भार है, व्यापारियों के लिए कौन स्थान दूर है, विद्वानों के लिए विदेश क्या है और मीठा बोलने वालों के लिए कौन पराया है ॥
10. प्रियेति:
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जंतवः ।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥१०॥
अर्थ- प्रियेति-मीठा बोलने से सब जीव प्रसन्न हो जाते हैं अतएव वही वाक्य बोलने योग्य है बोलने में क्या हानि है।
11. सत्यमिति:
सत्यं ब्रूयात्त्रिय ं ब्रूयान्त ब्रूयात्सत्यमंत्रियम् ।
प्रियं च नानृत’ ब्रूयादेष धर्मः सनातनः ।११।
अर्थ-सत्यमिति सत्य बोले, मीठा बोले, वैसा सत्य भी न बोले जो सुनते तन मन को जला दे, प्रिय बोले परन्तु ऐसा मोठा भी न बोले जो झूठ ही हो, ये ही प्राचीन धर्म है ॥