40. धेनुकासुर-वध

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धेनुकासुर का परिचय

एक दिन बलराम और कृष्ण साथ-साथ गौ चराते अति रमणीय तालवनमें आये ॥ उस दिव्य तालवनमें धेनुक नामक एक गधेके आकारवाला दैत्य मृगमांसका आहार करता हुआ सदा रहा करता था ॥ उस तालवनको पके फलोंकी सम्पत्ति से सम्पन्न देखकर उन्हें तोड़नेकी इच्छासे गोपगण बोले ॥

इस भूमिप्रदेशकी रक्षा सदा धेनुकासुर करता है, इसीलिये यहाँ ऐसे पके पके फल लगे हुए हैं ॥अपनी गन्धसे सम्पूर्ण दिशाओंको आमोदित करनेवाले ये ताल-फल तो देखो; हमें इन्हें खानेकी इच्छा है; यदि आपको अच्छा लगे तो [ थोड़े-से ] झाड़ दीजिये ॥

धेनुकासुर का आक्रमण

गोपकुमारोंके ये वचन सुनकर बलरामजीने ‘ऐसा ही करना चाहिये’ यह कहकर फल गिरा दिये और पीछे कुछ फल कृष्णचन्द्र ने भी पृथिवीपर गिराये ॥ गिरते हुए फलोंका शब्द सुनकर वह दुर्द्धर्ष और दुरात्मा गर्दभासुर क्रोधपूर्वक दौड़ आया और उस महाबलवान् असुरने अपने पिछले दो पैरोंसे बलरामजीकी छातीमें लात मारी। बलरामजीने उसके उन पैरोंको पकड़ लिया और आकाशमें घुमाने लगे। जब वह निर्जीव हो गया तो उसे अत्यन्त वेगसे उस तालवृक्षपर ही दे मारा ॥

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उस गधेने गिरते-गिरते उस तालवृक्षसे बहुत-से फल इस प्रकार गिरा दिये जैसे प्रचण्ड वायु बादलोंको गिरा दे ॥ उसके सजातीय अन्य गर्दभासुरोंके आनेपर भी कृष्ण और रामने उन्हें अनायास ही तालवृक्षोंपर पटक दिया ॥ इस प्रकार एक क्षणमें ही पके हुए तालफलों और गर्दभासुरोंके  देहोंसे विभूषिता होकर पृथिवी अत्यन्त सुशोभित होने लगी ॥ तबसे उस तालवनमें गौएँ निर्विघ्न होकर सुखपूर्वक नवीन तृण चरने लगीं जो उन्हें पहले कभी चरनेको नसीब नहीं हुआ था ॥

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