इस दिन से माताजी की स्थापना की जाती है। जवारे (बाड़ी) बोई जाती है। कोई उपवास करते हैं, कोई एक समय भोजन करते हैं। कई घरों में नौ दिन तक अखण्ड ज्योति जलाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार दुर्गा देवी नौ रूपों में प्रकट होने से नवरात्रि नाम हुआ है। इनमें (१) महाकाली (२) महालक्ष्मी (३) महासरस्वती (४) योगमाया (५) रक्त दन्तिका (६) शाकम्भरी (७) दुर्गा (८) भ्रामरी (९) चन्द्रिका। यह नौ रूप देवी के हैं।
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व्रत की विधि
प्रातःकाल उठकर स्नान करके, मंदिर में जाकर या घर पर ही नवरात्रों में दुर्गाजी का ध्यान करके यह कथा पढ़नी चाहिए। कन्याओं के लिए – यह व्रत विशेष फलदायक है। श्री जगदम्बा की कृपा से सब विघ्न दूर होते हैं। कथा के अंत में बारम्बार “दुर्गा माता तेरी सदा जय हो” का उच्चारण करें।
नवरात्रि व्रत कथा
कथा : बृहस्पतिजी बोले- “हे ब्रह्माजी! आप अत्यन्त बुद्धिमान, सर्वशास्त्र और चारों वेदों को जानने वालों में श्रेष्ठ हो। हे प्रभु! कृपा कर मेरा वचन सुनो। चैत्र, आश्विन, माघ और आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? हे भगवन! इस व्रत का फल क्या है? किस प्रकार करना उचित है और पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहो।” बृहस्पतिजी का ऐसा प्रश्न सुनकर ब्रह्माजी कहने लगे कि- “हे बृहस्पते! प्राणियों का हित करने की इच्छा से तुमने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया।
जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेवी, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। यह नवरात्र व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र चाहने वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन, विद्या चाहने वाले को विद्या और सुख चाहने वाले को सुख मिल सकता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है और कारागार में पड़ा हुआ मनुष्य बन्धन से छूट जाता है।
मनुष्य की तमाम विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं और उसके घर में सम्पूर्ण सम्पत्तियाँ आकर उपस्थित हो जाती हैं। बन्धया और काक बन्धया के इस व्रत के करने से पुत्र हो जाता है। समस्त पापों को दूर करने वाले इस व्रत के करने से ऐसा कौन-सा मनोरथ है, जो सिद्ध नहीं हो सकता।
जो मनुष्य इस अलभ्य मनुष्य देह को पाकर भी नवरात्र का व्रत नहीं करता है, वह माता-पिता से हीन हो जाता है अर्थात् उसके माता-पिता मर जाते हैं और वह अनेक दुःखों को भोगता है। उसके शरीर में कुष्ठ हो जाता है और अंगहीन हो जाता है, उसके सन्तानोत्पत्ति नहीं होती है। इस प्रकार वह मूर्ख अनेक दुःख भोगता है। इस व्रत को न करने वाला निर्दयी मनुष्य धन और धान्य से रहित हो, भूख और प्यास के मारे पृथ्वी पर घूमता है और गूँगा हो जाता है।
जो सुहागिन स्त्री भूल से इस व्रत को नहीं करती है, वह पति से हीन होकर नाना प्रकार के दुःखों को भोगती है। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके, तो एक समय भोजन करे और उस दिन बान्धवों सहित नवरात्री व्रत की कथा श्रवण करे। हे बृहस्पते! जिसने पहले इस महाव्रत को किया है, उसका पवित्र इतिहास में तुम्हें सुनाता हूँ।
तुम सावधान होकर सुनो।” इस प्रकार ब्रह्माजी के वचन सुनकर बृहस्पतिजी बोले- “हे ब्राह्मण! मनुष्यों का कल्याण करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहो, मैं सावधान होकर सुन रहा हूँ। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करो।” ब्रह्माजी बोले-“पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ नाम का ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके सम्पूर्ण सद्गुणों से युक्त मानो ब्रह्मा की सबसे पहली रचना हो, ऐसी यथार्थ नाम वाली सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दर कन्या पैदा हुई। वह कन्या सुमति अपने घर के बालकपन में अपनी सहेलियों के साथ
क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी, जैसे शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम किया करता था। उस समय वह भी नियम से वहाँ उपस्थित होती थी। एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेलने लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और पुत्री से कहने लगा कि- “हे दुष्ट पुत्री ! आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ठी और दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूँगा।”
इस प्रकार कुपित पिता के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुःख हुआ और पिता से कहने लगी कि “हे पिताजी! मैं आपकी कन्या हूँ। मैं सब तरह से आपके आधीन हूँ, जैसी आपकी इच्छा हो, वैसा ही करो। रोगी, कुष्ठी अथवा और किसी के साथ जैसी तुम्हारी इच्छा हो, मेरा विवाह कर सकते हो। होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो इस पर पूर्ण विश्वास है।”
मनुष्य न जाने कितने मनोरथों का चिन्तन करता है, पर होता वही है, जो भाग्य में विधाता ने लिखा है। जो जैसा करता है, उसको फल भी उस कर्म के अनुसार ही मिलता है, क्योंकि कर्म करना मनुष्य के आधीन है। पर फल देव के आधीन है। जैसे अग्नि में पड़े हुए तृणादि उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं, उसी तरह अपनी कन्या के ऐसे निर्भयता से कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राह्मण को और अधिक क्रोध आया। तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी के साथ विवाह कर दिया और अत्यन्त कुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि “जाओ-जाओ जल्दी जाओ। अपने कर्म का फल भोगो।
देखें केवल भाग्य भरोसे पर रहकर क्या करती है?” इस प्रकार से कहे हुए पिता के कटु वचनों को सुनकर सुमति अपने मान में विचार करने लगी कि “अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य हैं, जिससे मुझे ऐसा पति मिला।” इस तरह अपने दुःख का विचार करती हुई, सुमति अपने पति के साथ वन को चला गाई आदि भयानक वन में कुशयुक्त उस स्थान पर उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की।
उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देखकर भगवती पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर सुमति से कहने लगीं कि “हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुम पर प्रसन्न हूँ, तुम जो चाहो वरदान माँग सकती हो। मैं प्रसन्न होने पर मनवांछित फल देने वाली हूँ।”
इस प्रकार भगवती दुर्गा का वचन सुनकर ब्राह्मणी कहने लगी कि “आप कौन हैं, जो मुझ पर प्रसन्न हुई हो, यह सब मेरे लिए कहो और अपनी कृपा दृष्टि से मुझ दीनदासी को कृतार्थ करो।” ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुनकर देवी कहने लगी कि “मैं आदि शक्ति हूँ और मैं ही ब्रह्मा, विद्या और सरस्वती हूँ। मैं प्रसन्न होने पर प्राणियों का दुःख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूँ। हे ब्राह्मणी ! मैं तुझ पर तेरे पूर्वजन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूँ।
तेरा पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूँ सुन! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेल खाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तेरे को और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल पिया। इसलिए नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी ! उन दिनों में जो व्रत हुआ, उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें मनोवांछित वस्तु दे रही हूँ।
तुम्हारी जो इच्छा हो, सो माँगो।” इस प्रकार दुर्गाजी के कहे हुए वचन सुनकर ब्राह्मणी बोली कि “अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो हे दुर्गे! आपको प्रणाम करती हूँ। कृपा करके मेरे पति के कोढ़ को दूर करो।” देवी कहने लगीं कि “उन दिनों में जो तुमने व्रत किया था, उस व्रत के एक दिन का पुण्य अपने पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो। मेरे प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से रहित और सोने के समान शरीर वाला हो जायेगा।
” ब्रह्माजी बोले-“इस प्रकार देवी का वचन सुनकर वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से ठीक है, ऐसे बोली। तब तक उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ठहीन होकर अति कान्तियुक्त हो गया, जिसकी कान्ति के सामने चन्द्रमा की कान्ति भी क्षीण हो जाती है।” वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देखकर देवी को अति पराक्रम वाली समझकर स्तुति करने लगी कि “हे दुर्गे! आप दुर्गत को दूर करने वाली, तीनों जगत का सन्ताप हरने वाली, समस्त दुःखों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न होने पर मनवांछित वस्तु को देने वाली और दुष्ट मनुष्य का नाश करने वाली हो।
तुम ही सारे जगत की माता और पिता हो। हे अम्बे! मुझ अपराध रहित अबला की मेरे पिता ने कुष्ठरोगी के साथ विवाह कर मुझे घर से निकाल दिया। उसकी निकाली हुई पृथ्वी पर घूमने लगी। आपने ही मेरा इस आपत्ति रूपी समुद्र से उद्धार किया है। हे देवी! आपको प्रणाम करती हूँ। मुझ दीन की रक्षा करो।” ब्रह्माजी बोले कि- “हे बृहस्पते! इसी प्रकार उस सुमति ने मन से देवी की बहुत स्तुति की, उससे की हुई स्तुति सुनकर देवी को बहुत सन्तोष हुआ और ब्राह्मणी से कहने लगी कि हे ब्राह्मणी तुम्हारे उदालय नाम का एक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीघ्र ही होगा।”
ऐसे कहकर वह देवी उस ब्राह्मणी से फिर कहने लगी कि “हे ब्राह्मणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो, वही मनवांछित वस्तु माँग सकती है।” ऐसा भगवती दुर्गा का वचन सुनकर सुमति बोली कि “हे भगवती दुर्गे! अगर आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं, तो कृपा कर मुझे नवरात्रि विधि बताइये। हे दयावती! जिस विधि से नवरात्र व्रत करने से आप प्रसन्न होती हैं, उस विधि और उसके फल को मेरे लिए विस्तार से वर्णन करें।
नवरात्रि व्रत की विधि विस्तार से
इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुनकर दुर्गा कहने लगीं कि “हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हारे लिए सम्पूर्ण पापों को दूर करने वाली नवरात्र विधि को बतलाती हूँ, जिसको सुनने से तमाम पापों से छुटकर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। अश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें, यदि दिन भर का व्रत न कर सकें, तो एक समय का भोजन करें। पढ़े-लिखे ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें।
महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियाँ बनाकर उनकी नित्य-विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें। बिजौरा के फूल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से कीर्ति, दाख से कार्य की सिद्धि होती है। आँवले से सुख और केले से भूषण की प्राप्ति होती है। इस प्रकार फलों से अर्घ्य देकर यथा- विधि हवन करें। खांड, घी, गेहूँ, शहद, जौ, तिल, बिम्ब, नारियल, दाख और कदम्ब, इनसे हवन करें। गेहूँ होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। खोर व चम्पा के पुष्पों से धन और पत्तों से तेज और सुख की प्राप्ति होती हैं। आंवले से कीर्ति और केले से पुत्र प्राप्त होता है।
कमल से राज सम्मान और दाखों से सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। खाँड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है, उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। इसमें तनिक भी संशय नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है, उसका करोड़ों गुना मिलता है।
इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेघ यज्ञ का का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में ही विधि के अनुसार करें।” ब्रह्माजी बोले कि- “हे बृहस्पते ! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अन्तर्ध्यान हो गईं। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूर्वक करता है, वह इस लोक में सुख पाकर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है।
हे ब्रहस्पते! यह दुर्लभ व्रत का महात्म्य मैंने तुम्हारे लिए बतलाया है।” ऐसा ब्रह्माजी के वचन सुनकर ब्रहस्पतिजी आनन्द के कारण रोमांचित हो गए और ब्रह्माजी से कहने लगे- “हे ब्रह्माजी! आपने मुझ पर अति कृपा की, जो अमृत के समान इस नवरात्रि व्रत का महात्म्य सुनाया। हे प्रभो! आपके बिना और कौन इस महात्म्य को सुना सकता है?” ऐसे बृहस्पतिजी के वचन सुनकर ब्रह्माजी बोले कि- “हे बृहस्पते! तुमने सब प्राणियों का हित करने वाले इस अलौकिक व्रत को पूछा है, इसलिए तुम धन्य हो। यह भगवती शक्ति सम्पूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है।
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FAQs
नवरात्रि व्रत क्यों किया जाता है?
नवरात्रि व्रत माता दुर्गा के नौ रूपों की उपासना के लिए किया जाता है। यह व्रत मनोकामनाओं की पूर्ति, सुख-समृद्धि, और स्वास्थ्य के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।
नवरात्रि व्रत में कौन-कौन से नियम पालन करने चाहिए?
व्रती को प्रातःकाल स्नान कर पूजा करनी चाहिए, अखण्ड ज्योति जलानी चाहिए, और यदि संभव हो तो उपवास रखें। एक समय भोजन भी किया जा सकता है।
व्रत करने से क्या लाभ होते हैं?
इस व्रत से पुत्र की प्राप्ति, धन, विद्या, स्वास्थ्य और समस्त विपत्तियों से मुक्ति मिलती है। यह रोगों को दूर करता है और सुख-समृद्धि प्रदान करता है।
नवरात्रि व्रत न करने से क्या हानियाँ हो सकती हैं?
व्रत न करने से व्यक्ति को कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे धन की हानि, बीमारियां, और परिवार की समस्याएँ।
व्रत में क्या प्रसाद और सामग्री अर्पित करनी चाहिए?
नवरात्रि व्रत में फल, पुष्प, घी, शहद, नारियल, जौ, तिल, केले, आँवले जैसे पदार्थों से हवन और पूजा की जाती है।
नवरात्रि व्रत में घट स्थापना का क्या महत्व है?
घट स्थापना नवरात्रि व्रत की आरंभिक पूजा विधि है, जिसमें कलश की स्थापना की जाती है और उसे देवी का प्रतीक मानकर पूजा की जाती है।
क्या पुरुष भी नवरात्रि व्रत कर सकते हैं?
हां, नवरात्रि व्रत पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान रूप से लाभकारी है।