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7. परोपकार की महिमा

परोपकार

1. परोपकार की महिमा

पिवंति वृक्षाः स्वयमेव नभिः, खादन्ति न स्वादुफलानि बृक्षाः ।

अदन्ति सस्यं न पयोधराश्च, परोपकाराय सतां विभूतयाः ॥१॥

अर्थ – पिवन्तीति-नदियें अपना जल स्वयं नहीं पी जातीं और वृक्ष अपने मीठे फल स्वयं नहीं खाते, और ऐसे ही मेघ भी खेती को नहीं खाते किन्तु दूसरे जीवों के लिये ही अपना सर्वस्य दे देते हैं । सच है परोपकार के लिये ही सज्जनों की सम्पति होती है ॥

2. धन के चार हिस्सेदार

चत्वारो वित्तदायादा धर्मचौराग्निभूभुजः ।

ज्येष्ठेऽपमानिते पुंसि त्रयः कुप्यंति सोदराः ॥२॥

अर्थ-चत्वार इति-इस संसार में धर्म, चोर, अग्नि और राजा यह चार ही धन के हिस्सेदार होते हैं इन चारों में से यदि धर्म का त्याग करे तो पीछे कहे मये चोरादि तीन उस पुरुष पर ऋद्ध हो जाते है अर्थात् वह धन हर लेते हैं ॥

3. धन की रक्षा का उपाय

उपार्जितानामर्थानां त्याग एव हि रक्षणम् ।

तडागोदरसस्थानां परिवाह इवांभसाम् ।३।

अर्थ – उपार्जितानामिति संग्रह किए हुए धन का त्याग ही उसकी रक्षा है जैसे तालाब की रक्षा उसका जल प्रवाह ही होता है अर्थात् यदि उस में से जल निकलता रहे तो उसको रक्षा होती है ॥

4. दानहीन धन की निरर्थकता

यस्यदानविस्यधनान्यायान्तिकिम् ।

आण्यकुसुमानीव निरर्थास्तस्य संपदः |४|

अर्थ-यस्येति- जिस मनुष्य का धन दान शून्य है तो उसके पास धन आने का क्या फल है जैसे बन में उत्पन्न पुष्प किसी के काम नहीं आता वैसे ही उस की सम्पत्ति भी निष्फल है ॥

5. त्याग, विद्या और शौर्य के महत्व

त्यागो गुणो गुणशतादधिको मतो मे,

विद्या विभूषयति त यदि किं ब्रवीमि ।

शौर्य हि नाम यदि तत्र नमोऽस्तु तस्मै,

तच्चत्रयं न च मदोस्ति विचित्रमेतत् |५|

अर्थ-त्याग इति सैंकड़ों गुणों से उदारता गुण बहुत विशेष है तिस पर भी साथ में विद्या हो तो क्या ही कहना है। इसके अतिरिक्त साथ में शूरवीरता भी हो तो वह पुरुष प्रणाम के योग्य है यदि इस पर भी त्याग विद्या और शूरता यह तीन हों तो बड़ा आश्चर्य है ॥

6. खारी जल की निरर्थकता

अगाधेनापि किं तेन तोयेन लवणांबुधः ।

जानुमात्र वरं वारि तृष्णाच्छेकरं नृणाम् | ६|

अर्थ-अगाधेनापि खारी होने के कारण समुद्र से अधिक जल से क्या फल है, इस से तो जानु (घुटनों) पर्यन्त बहता हुआ जल उत्तम है क्योंकि वह जल मनुष्य की प्यास तो दूर कर सकता है ॥

7. छोटा तालाब और उसकी महत्ता

नाव्त्रिः कासारो ऽयंनचगंभोरोन चापिरत्नखानिः ।

नापिपिपासितपथश्रम शमनमनारंकुरुते ॥७॥

अर्थ-नेति-यह छोटा सा तालाब यद्यपि गहरा नहीं है। और समुद्र के समान रत्नों को भी उत्पन्न करने वाला नहीं है। तो भी वह समुद्र से कई गुणा बढ़ कर है जो मार्ग खेद से दुखित यात्रो को प्यास को तो दूर कर सकता है ॥

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