मन्वन्तरों का वर्णन
प्रथम मनु: स्वायम्भुव
भूतकालमें जितने मन्वन्तर हुए हैं तथा आगे भी जो – जो होंगे॥ प्रथम मनु स्वायम्भुव थे । उनके अनन्तर क्रमश : स्वारोचिष , उत्तम , तामस , रैवत और चाक्षुष हुए ॥ ये छः मनु पूर्वकालमें हो चुके हैं । इस समय सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु हैं , जिनका यह सातवाँ मन्वन्तर वर्तमान है ॥ कल्पके आदिमें जिस स्वायम्भुव मन्वन्तरके विषयमें मैंने कहा है , उसके देवता और सप्तर्षियोंका तो मैं पहले ही यथावत् वर्णन कर चुका हूँ ॥
द्वितीय मनु: स्वारोचिष
अब आगे मैं स्वारोचिष मनुके मन्वन्तराधिकारी देवता , ऋषि और मनुपुत्रोंका स्पष्टतया वर्णन करूँगा ॥ स्वारोचिषमन्वन्तरमें पारावत और तुषितगण देवता थे , महाबली विपश्चित् देवराज इन्द्र थे ॥ ऊर्ज , स्तम्भ , प्राण , वात , पृषभ , निरय और परीवान् – ये उस समय सप्तर्षि थे ॥ तथा चैत्र और किम्पुरुष आदि स्वारोचिषमनुके पुत्र थे । इस प्रकार तुमसे द्वितीय मन्वन्तरका वर्णन कर दिया । अब उत्तम मन्वन्तरका विवरण सुनो ॥
तृतीय मनु: उत्तम
तीसरे मन्वन्तरमें उत्तम नामक मनु और सुशान्ति नामक देवाधिपति इन्द्र थे ॥ उस समय सुधाम , सत्य , जप , प्रतर्दन और वशवर्ती- ये पाँच बारह – बारह देवताओंके गण थे ॥ तथा वसिष्ठजीके सात पुत्र सप्तर्षिगण और अज , परशु एवं दीप्त आदि उत्तममनुके पुत्र थे ॥
चतुर्थ मनु: तामस
तामस मन्वन्तरमें सुपार , हरि , सत्य और सुधि ये चार देवताओंके वर्ग थे और इनमेंसे प्रत्येक वर्गमें सत्ताईस – सत्ताईस देवगण थे ॥ सौ अश्वमेधयज्ञवाला राजा शिबि इन्द्र था , तथा उस समय जो सप्तर्षिगण थे उनके नाम मुझसे सुनो- ॥ ज्योतिर्धामा , पृथु , काव्य , चैत्र , अग्नि , वनक और पीवर – ये उस मन्वन्तरके सप्तर्षि थे ॥ तथा नर , ख्याति , केतुरूप और जानुजंघ आदि तामसमनुके महाबली पुत्र ही उस समय राज्याधिकारी थे ॥
पाँचवां मनु: रैवत
पाँचवें मन्वन्तरमें रैवत नामक मनु और विभु नामक इन्द्र हुए तथा उस समय जो देवगण हुए उनके नाम सुनो – ॥ इस मन्वन्तरमें चौदह – चौदह देवताओंके अमिताभ , भूतरय , वैकुण्ठ और सुमेधा नामक गण थे ॥ हे विप्र ! इस रैवत – मन्वन्तरमें हिरण्यरोमा , वेदश्री , ऊर्ध्वबाहु , वेदबाहु , सुधामा , पर्जन्य और महामुनि- ये सात सप्तर्षिगण थे ॥ उस समय रैवतमनुके महावीर्यशाली पुत्र बलबन्धु , सम्भाव्य और सत्यक आदि राजा थे ॥ स्वारोचिष , उत्तम , तामस और रैवत ये चार मनु ,राजा प्रियव्रतके वंशधर कहे जाते हैं ॥ राजर्षि प्रियव्रतने तपस्याद्वारा भगवान् विष्णु आराधना करके अपने वंशमें उत्पन्न हुए इन चार मन्वन्तराधिपोंको प्राप्त किया था ॥
छठा मनु: चाक्षुष
छठे मन्वन्तरमें चाक्षुष नामक मनु और मनोजव नामक इन्द्र थे । उस समय जो देवगण थे उनके नाम सुनो – उस समय आप्य , प्रसूत , भव्य , पृथुक और लेख – ये पाँच प्रकारके महानुभाव देवगण वर्तमान थे और इनमें से प्रत्येक गणमें आठ – आठ देवता थे ॥ उस मन्वन्तरमें सुमेधा , विरजा , हविष्मान् , उत्तम , मधु , अतिनामा और सहिष्णु- ये सात सप्तर्षि थे ॥ तथा चाक्षुषके अति बलवान् पुत्र ऊरु , पूरु और शतद्युम्न आदि राज्याधिकारी थे ॥
सातवां मनु: वैवस्वत (वर्तमान)
इस समय इस सातवें मन्वन्तरमें सूर्यके पुत्र महातेजस्वी और बुद्धिमान् श्राद्धदेवजी मनु हैं ॥ इस मन्वन्तरमें आदित्य , वसु और रुद्र आदि देवगण हैं तथा पुरन्दर नामक इन्द्र है ॥ इस समय वसिष्ठ , काश्यप , अत्रि , जमदग्नि , गौतम , विश्वामित्र और भरद्वाज- ये सात सप्तर्षि हैं ॥ तथा वैवस्वत मनुके इक्ष्वाकु , नृग , धृष्ट , शर्याति , नरिष्यन्त , नाभाग , अरिष्ट , करूष और पृषध्र ये अत्यन्त लोकप्रसिद्ध और धर्मात्मा नौ पुत्र हैं ॥
मन्वन्तर और भगवान् विष्णु
समस्त मन्वन्तरों में देवरूपसे स्थित भगवान् विष्णुकी अनुपम और सत्त्वप्रधाना शक्ति ही संसारकी स्थितिमें उसकी अधिष्ठात्री होती है ॥ सबसे पहले स्वायम्भुव मन्वन्तरमें मानसदेव यज्ञपुरुष उस विष्णुशक्तिके अंशसे ही आकूतिके गर्भसे उत्पन्न हुए थे ॥ फिर स्वारोचिष – मन्वन्तरके उपस्थित होनेपर वे मानसदेव श्रीअजित ही तुषित नामक देवगणोंके साथ तुषितासे उत्पन्न हुए ॥ फिर उत्तम – मन्वन्तरमें वे तुषितदेव ही देवश्रेष्ठ सत्यगणके सहित सत्यरूपसे सत्याके उदरसे प्रकट हुए ॥
तामस मन्वन्तरके प्राप्त होनेपर वे हरि – नाम देवगणके सहित हरिरूपसे हर्याके गर्भसे उत्पन्न हुए ॥ तत्पश्चात् वे देवश्रेष्ठ हरि , रैवत मन्वन्तरमें तत्कालीन देवगणके सहित सम्भूतिके उदरसे प्रकट होकर मानस नामसे विख्यात हुए ॥ तथा चाक्षुष – मन्वन्तरमें वे पुरुषोत्तम भगवान् वैकुण्ठ नामक देवगणोंके सहित विकुण्ठासे उत्पन्न होकर वैकुण्ठ कहलाये ॥ और इस वैवस्वत मन्वन्तरके प्राप्त होनेपर भगवान् विष्णु कश्यपजीद्वारा अदितिके गर्भसे वामनरूप होकर प्रकट हुए ॥ उन महात्मा वामनजीने अपनी तीन डगोंसे सम्पूर्ण लोकोंको जीतकर यह निष्कण्टक त्रिलोकी इन्द्रको दे दी थी ॥
परमार्थ का वर्णन
इस प्रकार सातों मन्वन्तराम भगवान्की ये सात मूर्तियाँ प्रकट हुईं , जिनसे ( भविष्यमें ) सम्पूर्ण प्रजाकी वृद्धि हुई ॥ यह सम्पूर्ण विश्व उन परमात्माकी ही शक्तिसे व्याप्त है ; अतः वे ‘ विष्णु ‘ कहलाते हैं , क्योंकि ‘ विश् ‘ धातुका अर्थ प्रवेश करना समस्त देवता , मनु , सप्तर्षि तथा मनुपुत्र और देवताओंके अधिपति इन्द्रगण – ये सब भगवान् विष्णुकी ही विभूतियाँ हैं ॥