पुरु का वंश
पुरु का पुत्र जनमेजय था । जनमेजयका प्रचिन्वान् , प्रचिन्वान्का प्रवीर , प्रवीरका मनस्यु , मनस्युका अभयद , अभयदका सुधु , सुधुका बहुगत , बहुगतका संयाति संयातिका अहंयाति तथा -अहंयातिका पुत्र रौद्राश्व था ॥
रौद्राश्व के दस पुत्र
रौद्राश्व के ऋतेषु , कक्षेषु , स्थण्डिलेषु , कृतेषु , जलेषु , धर्मेषु , धृतेषु , स्थलेषु , सन्नतेषु और वनेषु नामक दस पुत्र थे ॥
ऋतेषु का वंश
ऋतेषुका पुत्र अन्तिनार हुआ तथा अन्तिनारके सुमति , अप्रतिरथ और ध्रुव नामक तीन पुत्रोंने जन्म लिया ॥
अप्रतिरथ का वंश
इनमें से अप्रतिरथका पुत्र कण्व और कण्वका मेधातिथि हुआ जिसकी सन्तान काण्वायन ब्राह्मण हुए ॥ अप्रतिरथका दूसरा पुत्र ऐलीन था ॥ इस ऐलीन के दुष्यन्त आदि चार पुत्र हुए ॥ दुष्यन्त के यहाँ चक्रवर्ती सम्राट् भरतका जन्म हुआ जिसके नामके विषयमें देवगणने इस श्लोकका गान किया था – ॥
“ माता तो केवल चमड़ेकी धौंकनीके समान है , पुत्रपर अधिकार तो पिताका ही है , पुत्र जिसके द्वारा जन्म ग्रहण करता है उसीका स्वरूप होता है । हे दुष्यन्त ! तू इस पुत्रका पालन – पोषण कर , शकुन्तलाका अपमान न कर । हे नरदेव ! अपने ही वीर्यसे उत्पन्न हुआ पुत्र अपने पिताको यमलोकसे [ उद्धार कर स्वर्गलोकको ] ले जाता है । ‘ इस पुत्रके आधान करनेवाले तुम्हीं हो’ शकुन्तलाने यह बात ठीक ही कही है ‘ ॥
भरत का वंश
भरत के तीन स्त्रियाँ थीं जिनसे उनके नौ पुत्र हुए ॥ भरतके यह कहनेपर कि ‘ ये मेरे अनुरूप नहीं हैं , उनकी माताओं ने इस भय से कि राजा हमको त्याग न दें , उन पुत्रोंको मार डाला ॥ इस प्रकार पुत्र जन्मके विफल हो जानेसे भरत ने पुत्र की कामना से मरुत्सोम नामक यज्ञ किया । उस यज्ञके अन्तमें मरुद्गणने उन्हें भरद्वाज नामक एक बालक पुत्ररूपसे दिया जो उतथ्यपत्नी ममताके गर्भ में स्थित दीर्घतमा मुनिके पाद – प्रहारसे स्खलित हुए बृहस्पतिजीके वीर्यसे उत्पन्न हुआ था ॥उसके नामकरण के विषय में भी यह श्लोक कहा “जाता है— ॥
पुत्रोत्पत्तिके अनन्तर बृहस्पति ने ममतासे कहा ‘ हे मूढ़े । यह पुत्र द्वाज ( हम दोनोंसे उत्पन्न हुआ ) है तू इसका भरण कर । ‘ तब ममताने भी कहा ‘ हे बृहस्पते ! यह पुत्र द्वाज ( हम दोनोंसे उत्पन्न हुआ ) है अतः तुम इसका भरण करो । ‘ इस प्रकार परस्पर विवाद करते हुए उसके माता – पिता चले गये . इसलिये उसका नाम ‘ भरद्वाज ‘ पड़ा ” ॥
वितथ का वंश
पुत्र – जन्म वितथ ( विफल ) होनेपर मरुद्गणने राजा भरतको भरद्वाज दिया था , इसलिये उसका नाम ‘ वितथ ‘ भी हुआ ॥ वितथका पुत्र मन्यु हुआ और मन्युके बृहत्क्षत्र , महावीर्य , नर और गर्ग आदि कई पुत्र हुए ॥
नर का वंश
नर का पुत्र संकृति और संकृतिके गुरुप्रीति एवं रन्तिदेव नामक दो पुत्र हुए ॥
गर्ग का वंश
गर्ग से शिनि का जन्म हुआ जिससे कि गार्ग्य और शैन्य नामसे विख्यात क्षत्रोपेत ब्राह्मण उत्पन्न हुए ॥
महावीर्य का वंश
महावीर्य का पुत्र दुरुक्षय हुआ ॥ उसके त्रय्यारुणि , पुष्करिण्य और कपि नामक तीन पुत्र हुए ॥ ये तीनों पुत्र पीछे ब्राह्मण हो गये थे ॥
बृहत्क्षत्र का वंश
बृहत्क्षत्र का पुत्र सुहात्र , सुहात्रका पुत्र हस्ती था जिसने यह हस्तिनापुर नामक नगर बसाया था ॥
हस्ती का वंश
हस्ती के तीन पुत्र अजमीढ , द्विजमीढ और पुरुमीढ थे । अजमीढके कण्व और कण्वके मेधातिथि नामक पुत्र हुआ जिससे कि काण्वायन ब्राह्मण उत्पन्न हुए ॥
अजमीढ का वंश
अजमीढ का दूसरा पुत्र बृहदिषु था ॥ बृहदिषुके बृहद्धनु , बृहद्धनुके बृहत्कर्मा , बृहत्कमकि जयद्रथ , जयद्रथके विश्वजित् तथा विश्वजित्के सेनजित्का जन्म हुआ । सेनजित्के रुचिराश्व , काश्य , दृढहनु और वत्सहनु नामक चार पुत्र हुए ॥
नील का वंश
रुचिराश्व के पृथुसेन , पृथुसेनके पार और पारके नीलका जन्म हुआ । इस नीलके सौ पुत्र थे , जिनमें काम्पिल्यनरेश समर प्रधान था ॥ समर के पार , सुपार और सदश्व नामक तीन पुत्र थे ॥ सुपार के पृथु , पृथुके सुकृति , सुकृतिके विभ्राज और विभ्राजके अणुह नामक पुत्र हुआ , जिसने शुककन्या कीर्तिसे विवाह किया था ॥ अणुहसे ब्रह्मदत्तका जन्म हुआ । ब्रह्मदत्तसे विष्वक्सेन , विष्वक्सेनसे उदक्सेन तथा उदक्सेनसे भल्लाभ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ ॥
द्विजमीढका पुत्र यवीनर था ॥ उसका धृतिमान् , धृतिमान्का सत्यधृति , सत्यधृतिका दृढनेमि , दृढनेमिका सुपार्श्व , सुपार्श्वका सुमति , सुमतिका सन्नतिमान् तथा सन्नतिमान्का पुत्र कृत हुआ जिसे हिरण्यनाभने योगविद्याकी शिक्षा दी थी तथा जिसने प्राच्य सामग श्रुतियोंकी चौबीस संहिताएँ रची थीं ॥ कृतका पुत्र उग्रायुध था अनेकों नीपवंशीय क्षत्रियोंका नाश किया ॥ उग्रायुधके क्षेम्य , क्षेम्यके सुधीर , सुधीरके रिपुंजय और रिपुंजयसे बहुरथने जन्म लिया । ये सब पुरुवंशीय राजागण हुए ॥
अजमीढकी नलिनीनाम्नी एक भार्या थी । उसके नील नामक एक पुत्र हुआ ॥ नीलके शान्ति , शान्तिके सुशान्ति , सुशान्तिके पुरंजय , पुरंजयके ऋक्ष और ऋक्षके हर्यश्व नामक पुत्र हुआ ॥ हर्यश्वके मुद्गल , संजय , बृहदिषु , यवीनर और काम्पिल्य नामक पाँच पुत्र हुए । पिताने कहा था कि मेरे ये पुत्र मेरे आश्रित पाँचों देशोंकी रक्षा करनेमें समर्थ हैं , इसलिये वे पांचाल कहलाये ॥
मुद्गल का वंश
मुद्गल से मौद्गल्य नामक क्षत्रोपेत ब्राह्मणोंकी उत्पत्ति हुई ॥ मुद्गलसे बृहदश्व और बृहदश्वसे दिवोदास नामक पुत्र एवं अहल्या नामकी एक कन्याका जन्म हुआ ॥ अहल्यासे महर्षि गौतमके द्वारा शतानन्दका जन्म हुआ ॥ शतानन्दसे धनुर्वेदका पारदर्शी सत्यधृति उत्पन्न हुआ ॥ एक बार अप्सराओंमें श्रेष्ठ उर्वशीको देखनेसे सत्यधृतिका वीर्य स्खलित होकर शरस्तम्ब ( सरकण्डे ) – पर पड़ा ॥ उससे दो भागोंमें बँट जानेके कारण पुत्र और पुत्रीरूप दो सन्तानें उत्पन्न हुईं ॥ उन्हें मृगया के लिये गये हुए राजा शान्तनु कृपावश ले आये ॥ तदनन्तर पुत्रका नाम कृप हुआ और कन्या अश्वत्थामाकी माता द्रोणाचार्यकी पत्नी कृपी हुई ॥
दिवोदास का पुत्र मित्रायु हुआ ॥ मित्रायुका पुत्र च्यवन नामक राजा हुआ , च्यवनका सुदास , सुदासका सौदास , सौदासका सहदेव , सहदेवका सोमक और सोमकके सौ पुत्र हुए जिनमें जन्तु सबसे बड़ा और पृषत सबसे छोटा था । पृषतका पुत्र द्रुपद , द्रुपदका धृष्टद्युम्न और धृष्टद्युम्नका पुत्र धृष्टकेतु था ॥
ऋक्ष का वंश
अजमीढका ऋक्ष नामक एक पुत्र और था ॥ उसका पुत्र संवरण हुआ तथा संवरणका पुत्र कुरु था जिसने कि धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की स्थापना की ॥
कुरु का वंश
कुरु के पुत्र सुधनु , जनु और परीक्षित् आदि हुए ॥ सुधनुका पुत्र सुहोत्र था , सुहोत्रका च्यवन , च्यवनका कृतक और कृतक का पुत्र उपरिचर वसु हुआ ॥ वसुके बृहद्रथ , प्रत्यग्र , कुशाम्बु , कुचेल और मात्स्य आदि सात पुत्र थे ॥
बृहद्रथ का वंश
इनमें से बृहद्रथके कुशाग्र , कुशाग्रके वृषभ , वृषभके पुष्पवान् , पुष्पवान्के सत्यहित , सत्यहितके सुधन्वा और सुधन्वाक जतुका जन्म हुआ ॥ बृहद्रथके दो खण्डोंमें विभक्त एक पुत्र और हुआ था जो कि जराके द्वारा जोड़ दिये जानेपर जरासन्ध कहलाया ॥ उससे सहदेवका जन्म हुआ तथा सहदेवसे सोमप और सोमपसे श्रुतिश्रवाकी उत्पत्ति हुई ॥ इस प्रकार मैंने तुमसे यह मागध भूपालोंका वर्णन कर दिया है ॥