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21. प्रद्युम्न-हरण तथा शम्बर-वध

प्रद्युम्न

प्रद्युम्न का हरण

 कालके समान विकराल शम्बरासुरने प्रद्युम्नको, जन्म लेनेके छठे ही दिन ‘यह मेरा मारनेवाला है’ ऐसा जानकर सूतिकागृहसे हर लिया ॥  उसको हरण करके शम्बरासुरने लवणसमुद्रमें डाल दिया, जो तरंगमालाजनित आवतसे पूर्ण और बड़े भयानक मकरोंका घर है ॥  वहाँ फेंके हुए उस बालकको एक मत्स्यने निगल लिया, किन्तु वह उसकी जठराग्निसे जलकर भी न मरा ॥  कालान्तरमें कुछ मछेरोंने उसे अन्य मछलियोंके साथ अपने जालमें फँसाया और असुरश्रेष्ठ शम्बरको निवेदन किया ॥ 

उसकी नाममात्रकी पत्नी मायावती सम्पूर्ण अन्तःपुरकी स्वामिनी थी और वह सुलक्षणा सम्पूर्ण सूदों (रसोइयों) का आधिपत्य करती थी ॥  उस मछलीका पेट चीरते ही उसमें एक अति सुन्दर बालक दिखायी दिया जो दग्ध हुए कामवृक्षका प्रथम अंकुर था ॥  ‘ तब यह कौन है और किस प्रकार इस मछलीके पेटमें डाला गया’ इस प्रकार अत्यन्त आश्चर्यचकित हुई उस सुन्दरीसे देवर्षि नारदने आकर कहा- ॥  ” हे सुन्दर भृकुटिवाली ! यह सम्पूर्ण जगत्के स्थिति और संहारकर्ता भगवान् विष्णुका पुत्र है; इसे शम्बरासुरने सूतिकागृहसे चुराकर समुद्रमें फेंक दिया था। वहाँ इसे यह मत्स्य निगल गया और अब इसीके द्वारा यह तेरे घर आ गया है। तू इस नररत्नका विश्वस्त होकर पालन कर ” ॥ 

प्रद्युम्न का पालन-पोषण

 नारदजीके ऐसा कहनेपर मायावतीने उस बालककी अतिशय सुन्दरतासे मोहित हो बाल्यावस्थासे ही उसका अति अनुरागपूर्वक पालन किया ॥  जिस समय वह नवयौवनके समागमसे सुशोभित हुआ तब वह गजगामिनी उसके प्रति कामनायुक्त अनुराग प्रकट करने लगी ॥ 

 जो अपना हृदय और नेत्र प्रद्युम्नमें अर्पित कर चुकी थी उस मायावतीने अनुरागसे अन्धी होकर उसे सब प्रकारकी माया सिखा दी ॥ इस प्रकार अपने ऊपर आसक्त हुई उस कमललोचनासे कृष्णनन्दन प्रद्युम्नने कहा—” आज तुम मातृभावको छोड़कर यह अन्य प्रकारका भाव क्यों प्रकट करती हो ?” ॥ तब मायावतीने कहा- “तुम मेरे पुत्र नहीं हो, तुम भगवान् विष्णुके तनय हो। तुम्हें कालशम्बरने हरकर समुद्रमें फेंक दिया था; तुम मुझे एक मत्स्यके उदरमें मिले हो। हे कान्त ! आपकी पुत्रवत्सला जननी आज भी रोती होगी ” ॥ 

शम्बरासुर का वध

 मायावतीके इस प्रकार कहनेपर महाबलवान् प्रद्युम्नजीने क्रोधसे विह्वल हो शम्बरासुरको युद्धके लिये ललकारा और उससे युद्ध करने लगे ॥  यादवश्रेष्ठ प्रद्युम्नजीने उस दैत्यकी सम्पूर्ण सेना मार डाली और उसकी सात मायाओंको जीतकर स्वयं आठवीं मायाका प्रयोग किया ॥  उस मायासे उन्होंने दैत्यराज कालशम्बरको मार डाला और मायावतीके साथ [विमानद्वारा ] उड़कर आकाशमार्गसे अपने पिताके नगरमें आ गये ॥ 

मायावतीके सहित अन्तःपुरमें उतरनेपर श्रीकृष्णचन्द्रकी रानियोंने उन्हें देखकर कृष्ण ही समझा ॥  किन्तु अनिन्दिता रुक्मिणीके नेत्रोंमें प्रेमवश आँसू भर आये और वे कहने लगीं-” अवश्य ही यह नवयौवनको प्राप्त हुआ किसी बड़भागिनीका पुत्र है ॥  यदि मेरा पुत्र प्रद्युम्न जीवित होगा तो उसकी भी यही आयु होगी। हे वत्स! तू ठीक-ठीक बता तूने किस भाग्यवती जननीको विभूषित किया है? ॥ 

द्वारका वापसी

अथवा, बेटा ! जैसा मुझे तेरे प्रति स्नेह हो रहा है और जैसा तेरा स्वरूप है, उससे मुझे ऐसा भी प्रतीत होता है कि तू श्रीहरिका ही पुत्र है” ॥  इसी समय श्रीकृष्णचन्द्रके साथ वहाँ नारदजी आ गये। उन्होंने अन्तः पुरनिवासिनी देवी रुक्मिणीको आनन्दित करते हुए कहा- ॥  “हे सुभ्रु ! यह तेरा ही पुत्र है। यह शम्बरासुरको मारकर आ रहा है, जिसने कि इसे बाल्यावस्थामें सूतिकागृहसे हर लिया था ॥  यह सती मायावती भी तेरे पुत्रकी ही स्त्री है; यह शम्बरासुरकी पत्नी नहीं है। इसका कारण सुन ॥  पूर्वकालमें कामदेवके भस्म हो जानेपर उसके पुनर्जन्मकी प्रतीक्षा करती हुई इसने अपने मायामयरूपसे शम्बरासुरको मोहित किया था ॥ 

यह मत्तविलोचना उस दैत्यको विहारादि उपभोगोंके समय अपने अति सुन्दर मायामय रूप दिखलाती रहती थी ॥  कामदेवने ही तेरे पुत्ररूपसे जन्म लिया है और यह सुन्दरी उसकी प्रिया रति ही है। हे शोभने ! यह तेरी पुत्रवधू है, इसमें तू किसी प्रकारकी विपरीत शंका न कर” ॥ 

यह सुनकर रुक्मिणी और कृष्णको अतिशय आनन्द हुआ तथा समस्त द्वारकापुरी भी ‘साधु-साधु’ कहने लगी ॥ उस समय चिरकालसे खोये हुए पुत्रके साथ रुक्मिणीका समागम हुआ देख द्वारकापुरीके सभी नागरिकोंको बड़ा आश्चर्य हुआ ॥ 

 

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