Site icon HINDU DHARMAS

121. ब्रह्मा आदि देवी देवता की आयु और कालका स्वरूप

ब्रह्मा

ब्रह्मा का जीवनकाल और समय गणना

समस्त भाव – पदार्थोकी शक्तियाँ अचिन्त्य – ज्ञानकी विषय होती हैं ; [ उनमें कोई युक्ति काम नहीं देती ] अतः अग्निकी शक्ति उष्णताके समान ब्रह्मकी भी सर्गादि – रचनारूप शक्तियाँ स्वाभाविक हैं । अब जिस प्रकार नारायण नामक लोक – पितामह भगवान् ब्रह्माजी सृष्टिकी रचनामें प्रवृत्त होते हैं सो सुनो । वे सदा उपचारसे ही उत्पन्न हुए ‘ कहलाते हैं । उनके अपने परिमाणसे उनकी आयु सौ वर्षकी कही जाती है । उस ( सौ वर्ष ) का नाम पर है , उसका आधा परार्द्ध कहलाता है ।

मैंने जो तुमसे विष्णुभगवान्का कालस्वरूप कहा था उसीके द्वारा उस ब्रह्माकी तथा और भी जो पृथिवी , पर्वत , समुद्र आदि चराचर जीव हैं उनकी आयुका परिमाण किया जाता है । पन्द्रह निमेषको काष्ठा कहते हैं , तीस काष्ठाकी एक कला तथा तीस कलाका एक मुहूर्त्त होता है । तीस मुहूर्त्तका मनुष्यका एक दिन – रात कहा जाता है और उतने ही दिन – रातका दो पक्षयुक्त एक मास होता है । छः महीनोंका एक अयन और दक्षिणायन तथा उत्तरायण दो अयन मिलकर एक वर्ष होता है । दक्षिणायन देवताओंकी रात्रि है और उत्तरायण दिन ।

चतुर्युग: चार युगों का चक्र

देवताओंके बारह हजार वर्षोंके सतयुग , त्रेता , द्वापर और कलियुग नामक चार युग होते हैं । उनका अलग – अलग परिमाण मैं तुम्हें सुनाता हूँ । पुरातत्त्वके जाननेवाले सतयुग आदिका परिमाण क्रमशः चार , तीन , दो और एक हजार दिव्य वर्ष बतलाते हैं ।

प्रत्येक युग पूर्व उतने ही सौ वर्षकी सन्ध्या बतायी जाती है और युगके पीछे उतने ही परिमाणवाले सन्ध्यांश होते हैं [ अर्थात् सतयुग आदिके पूर्व क्रमशः चार , तीन , दो और एक सौ दिव्य वर्षकी सन्ध्याएँ और इतने ही वर्षके सन्ध्यांश होते हैं ] । इन सन्ध्या और सन्ध्यांशोंके बीचका जितना काल होता है , उसे ही सतयुग आदि नामवाले युग जानना चाहिये | सतयुग , त्रेता , द्वापर और कलि ये मिलकर चतुर्युग कहलाते हैं ; ऐसे हजार चतुर्युगका ब्रह्माका एकचतुर्युग कहलाते दिन होता है ।

मन्वंतर: एक मनु की अवधि

ब्रह्माके एक दिनमें चौदह मनु होते हैं । उनका कालकृत परिमाण सुनो । सप्तर्षि , देवगण , इन्द्र , मनु और मनुके पुत्र राजालोग [ पूर्वकल्पानुसार ] एक ही कालमें रचे जाते हैं और एक ही कालमें उनका संहार किया जाता है ।  इकहत्तर चतुर्युगसे कुछ अधिक  कालका एक मन्वन्तर होता है । यही मनु और देवता आदिका काल है । इस प्रकार दिव्य वर्ष – गणनासे एक मन्वन्तरमें आठ लाख बावन हजार वर्ष बताये जाते हैं । तथा  मानवी वर्ष – गणनाके अनुसार मन्वन्तरका परिमाण पूरे तीस करोड़ सरसठ लाख बीस हजार वर्ष है , इससे अधिक नहीं । इस कालका चौदह गुना ब्रह्माका दिन होता है , इसके अनन्तर नैमित्तिक नामवाला ब्राह्म – प्रलय होता है ।

उस समय भूर्लोक , भुवर्लोक और स्वर्लोक तीनों जलने लगते हैं और महर्लोकमें रहनेवाले सिद्धगण अति सन्तप्त होकर जनलोकको चले जाते हैं । इस प्रकार त्रिलोकीके जलमय हो जानेपर जनलोकवासी योगियोंद्वारा ध्यान किये जाते हुए नारायणरूप कमलयोनि ब्रह्माजी त्रिलोकीके ग्राससे तृप्त होकर दिनके बराबर ही परिमाणवाली उस रात्रिमें शेषशय्यापर शयन करते और उसके बीत जानेपर पुनः संसारकी सृष्टि करते हैं । इसी प्रकार ( पक्ष , मास आदि ) गणनासे ब्रह्माका एक वर्ष और फिर सौ वर्ष होते हैं । ब्रह्माके सौ वर्ष ही उस महात्मा ( ब्रह्मा ) की परमायु हैं ।  उन ब्रह्माजीका एक परार्द्ध बीत चुका है । उसके अन्तमें पाद्म नामसे विख्यात महाकल्प हुआ था ।

इस समय वर्तमान उनके दूसरे परार्द्धका यह वाराह नामक पहला कल्प कहा गयाहे सत्तम । इकहत्तर चतुर्युगसे कुछ अधिक कालका एक मन्वन्तर होता है । यही मनु और देवता आदिका काल है । इस प्रकार दिव्य वर्ष – गणनासे एक मन्वन्तरमें आठ लाख बावन हजार वर्ष बताये जाते हैं । तथा  मानवी वर्ष – गणनाके अनुसार मन्वन्तरका परिमाण पूरे तीस करोड़ सरसठ लाख बीस हजार वर्ष है , इससे अधिक नहीं । इस कालका चौदह गुना ब्रह्माका दिन होता है , इसके अनन्तर नैमित्तिक नामवाला ब्राह्म – प्रलय होता है । उस समय भूर्लोक , भुवर्लोक और स्वर्लोक तीनों जलने लगते हैं और महर्लोकमें रहनेवाले सिद्धगण अति सन्तप्त होकर जनलोकको चले जाते हैं ।

इस प्रकार त्रिलोकीके जलमय हो जानेपर जनलोकवासी योगियोंद्वारा ध्यान किये जाते हुए नारायणरूप कमलयोनि ब्रह्माजी त्रिलोकीके ग्राससे तृप्त होकर दिनके बराबर ही परिमाणवाली उस रात्रिमें शेषशय्यापर शयन करते और उसके बीत जानेपर पुनः संसारकी सृष्टि करते हैं । इसी प्रकार ( पक्ष , मास आदि ) गणनासे ब्रह्माका एक वर्ष और फिर सौ वर्ष होते हैं । ब्रह्माके सौ वर्ष ही उस महात्मा ( ब्रह्मा ) की परमायु हैं । हे अनघ ! उन ब्रह्माजीका एक परार्द्ध बीत चुका है । उसके अन्तमें पाद्म नामसे विख्यात महाकल्प हुआ था । इस समय वर्तमान उनके दूसरे परार्द्धका यह वाराह नामक पहला कल्प कहा गया ।

Exit mobile version