117. भगवान शिव का रुद्र रूप एवम शिव उत्पति

भगवान रुद्र का जन्म

मैंने तुमसे ब्रह्माजीके तामस – सर्गका वर्णन किया , अब मैं रुद्र सर्गका वर्णन करता हूँ , सो सुनो। कल्पके आदिमें अपने समान पुत्र उत्पन्न होनेके लिये चिन्तन करते हुए ब्रह्माजीकी गोदमें नीललोहित वर्णके एक कुमारका प्रादुर्भाव हुआ । जन्मके अनन्तर ही वह जोर जोरसे रोने और इधर – उधर दौड़ने लगा । उसे रोता देख ब्रह्माजीने उससे पूछा— “ तू क्यों रोता है ? ” उसने कहा – “ मेरा नाम रखो । ” तब ब्रह्माजी बोले ‘ हे देव ! तेरा नाम रुद्र है , अब तू मत रो , धैर्य धारण कर । ‘ ऐसा कहनेपर भी वह सात बार और रोया ।

रुद्र के अन्य नाम और स्थान

तब भगवान् ब्रह्माजीने उसके सात नाम और रखे ; तथा उन आठोंके स्थान , स्त्री और पुत्र भी निश्चित किये । प्रजापतिने उसे भव , शर्व , ईशान , पशुपति , भीम , उग्र और महादेव कहकर सम्बोधन किया । यही उसके नाम रखे और इनके स्थान भी निश्चित किये । सूर्य , जल , पृथिवी , वायु , अग्नि , आकाश , [ यज्ञमें ] दीक्षित ब्राह्मण और चन्द्रमा- ये क्रमशः उनकी मूर्तियाँ हैं । रुद्र आदि नामोंके साथ उन सूर्य आदि मूर्तियोंकी क्रमशः सुवर्चला , ऊषा , विकेशी , अपरा , शिवा , स्वाहा , दिशा , दीक्षा और रोहिणी नामकी पत्नियाँ हैं ।अब उनके पुत्रोंके नाम सुनो ; उन्हींके पुत्र – पौत्रादिकोंसे यह सम्पूर्ण जगत् परिपूर्ण है । शनैश्चर , शुक्र , लोहितांग , मनोजव , स्कन्द , सर्ग , सन्तान और बुध – ये क्रमशः उनके पुत्र हैं ॥ 

रुद्र का विवाह और सती का त्याग

ऐसे भगवान् रुद्रने प्रजापति दक्षकी अनिन्दिता पुत्री सतीको अपनी भार्यारूपसे ग्रहण किया । उस सतीने दक्षपर कुपित होनेके कारण अपना शरीर त्याग दिया था । फिर वह मेनाके गर्भसे हिमाचलकी पुत्री ( उमा ) हुई । भगवान् शंकरने उस अनन्यपरायणा उमासे विवाह किया।

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