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104. भारतादि नौ खण्डोंका विभाग

भारत

भारतवर्ष का विवरण

परिचय

जो समुद्रके उत्तर तथा हिमालयके दक्षिणमें स्थित है वह देश भारतवर्ष कहलाता है । उसमें भरतकी सन्तान बसी हुई है ॥ इसका विस्तार नौ हजार योजन है । यह स्वर्ग और अपवर्ग प्राप्त करनेवालोंकी कर्मभूमि है ॥

सात कुलपर्वत

इसमें महेन्द्र , मलय , सह्य , शुक्तिमान् , ऋक्ष , विन्ध्य और पारियात्र – ये सात कुलपर्वत हैं ॥ 

कर्मभूमि के रूप में भारतवर्ष

इसी देशमें मनुष्य शुभकर्मोद्वारा स्वर्ग अथवा मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं और यहींसे [ पाप – कर्मोंमें प्रवृत्त होनेपर ] वे नरक अथवा तिर्यग्योनिमें पड़ते हैं ॥ यहींसे [ कर्मानुसार ] स्वर्ग , मोक्ष , अन्तरिक्ष अथवा पाताल आदि लोकोंको प्राप्त किया जा सकता है , पृथिवीमें यहाँके सिवा और कहीं भी मनुष्यके लिये कर्मकी विधि नहीं है ॥

भारतवर्ष के नौ भाग

इस भारतवर्षके नौ भाग हैं ; उनके नाम ये हैं इन्द्रद्वीप , कसेरु , ताम्रपर्ण , गभस्तिमान् , नागद्वीप , सौम्य , गन्धर्व और वारुण तथा यह समुद्रसे घिरा हुआ द्वीप उनमें नवाँ है ॥ यह द्वीप उत्तरसे दक्षिणतक सहस्र योजन है ।

जनजातियों और वर्ण व्यवस्था का विवरण

इसके पूर्वीय भागमें किरातलोग और पश्चिमीयमें यवन बसे हुए हैं ॥ तथा यज्ञ , युद्ध और व्यापार आदि अपने – अपने कर्मोंकी व्यवस्था के अनुसार आचरण करते हुए ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्रगण वर्णविभागानुसार मध्यमें रहते हैं ॥ 

प्रमुख नदियाँ और उनके स्रोत

इसकी शतद्रू और चन्द्रभागा आदि नदियाँ हिमालयकी तलैटीसे वेद और स्मृति आदि पारियात्र पर्वतसे , नर्मदा और सुरसा आदि विन्ध्याचलसे तथा तापी , पयोष्णी और निर्विन्ध्या आदि ऋक्षगिरिसे निकली हैं ॥ गोदावरी , भीमरथी और कृष्णवेणी आदि पापहारिणी नदियाँ सह्यपर्वतसे उत्पन्न हुई कही जाती हैं ॥ कृतमाला और ताम्रपर्णी आदि मलयाचलसे , त्रिसामा और आर्यकुल्या आदि महेन्द्रगिरिसे तथा ऋषिकुल्या और कुमारी आदि नदियाँ शुक्तिमान् पर्वतस निकली हैं । इनकी और भी सहस्रों शाखा नदियाँ और उपनदियाँ हैं ॥

भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेश

इन नदियोंके तटपर कुरु , पांचाल और मध्यदेशादिके रहनेवाले , पूर्वदेश और कामरूपके निवासी , पुण्ड , कलिंग , मगध और दाक्षिणात्यलोग , अपरान्तदेशवासी , सौराष्ट्रगण तथा शूर , आभीर और अर्बुदगण , कारूष , मालव और पारियात्रनिवासी , सौवीर , सैन्धव , हूण , साल्व और कोशल – देशवासी तथा माद्र , आराम , अम्बष्ठ और पारसीगण रहते हैं । वे लोग सदा आपसमें मिलकर रहते हैं और इन्हींका जल पान करते हैं । इनकी सन्निधिके कारण वे बड़े हृष्ट – पुष्ट रहते हैं ॥ 

चार युगों का विवरण

इस भारतवर्षमें ही सत्ययुग , त्रेता , द्वापर और कलि नामक चार युग हैं , अन्यत्र कहीं नहीं ॥

तपस्या, यज्ञ और दान का महत्त्व

इस देशमें परलोकके लिये मुनिजन तपस्या करते हैं , याज्ञिकलोग यज्ञानुष्ठान करते हैं और दानीजन आदरपूर्वक दान देते हैं ॥

जम्बूद्वीप का विवरण

जम्बूद्वीपमें यज्ञमय यज्ञपुरुष भगवान् विष्णुका सदा यज्ञोंद्वारा यजन किया जाता है , इसके अतिरिक्त अन्य द्वीपोंमें उनकी और और प्रकारसे उपासना होती है ॥  इस जम्बूद्वीपमें भी भारतवर्ष सर्वश्रेष्ठ क्योंकि यह कर्मभूमि है इसके अतिरिक्त अन्यान्य देश भोग – भूमियाँ हैं ॥ जीवको सहस्रों जन्मोंके अनन्तर महान् पुण्योंका उदय होनेपर ही कभी इस देशमें मनुष्य – जन्म प्राप्त होता है ॥ देवगण भी निरन्तर यही गान करते हैं कि ‘ जिन्होंने स्वर्ग और अपवर्गके मार्गभूत भारतवर्षमें जन्म लिया है वे पुरुष हम देवताओंकी अपेक्षा भी अधिक धन्य ( बड़भागी ) हैं ॥ जो लोग इस कर्मभूमिमें जन्म लेकर अपने फलाकांक्षासे रहित कर्मोको परमात्म – स्वरूप श्रीविष्णुभगवान्‌को अर्पण करनेसे निर्मल ( पापपुण्यसे रहित ) होकर उन अनन्तमें ही लीन हो जाते हैं [ वे धन्य हैं ! ] ॥

‘ पता नहीं , अपने स्वर्गप्रदकर्मोका क्षय होनेपर हम कहाँ जन्म ग्रहण करेंगे ! धन्य तो वे ही मनुष्य हैं जो भारतभूमिमें उत्पन्न होकर इन्द्रियोंकी शक्तिसे हीन नहीं हुए हैं ‘ ॥

 इस प्रकार लाख योजनके विस्तारवाले नववर्ष – विशिष्ट इस जम्बूद्वीपका मैंने तुमसे संक्षेपसे वर्णन किया ॥ इस जम्बूद्वीपको बाहर चारों ओरसे लाख योजनके विस्तारवाले वलयाकार खारे पानीके समुद्रने घेरा हुआ है ॥

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