101. नरकों का वर्णन तथा भगवन्नामके माहात्म्यका वर्णन

 

नरकों का वर्णन और पापों के परिणाम

नरकों की सूची

तदनन्तर पृथिवी और जलके नीचे नरक हैं जिनमें पापी लोग गिराये जाते हैं । रौरव , सूकर , रोध , ताल , विशसन , महाज्वाल , तप्तकुम्भ , लवण , विलोहित , रुधिराम्भ , वैतरणि , कृमीश , कृमिभोजन , असिपत्रवन , कृष्ण , लालाभक्ष , दारुण , पूयवह , पाप , वह्निज्वाल , अधः शिरा , सन्दंश , कालसूत्र , तमस् , आवीचि , श्वभोजन , अप्रतिष्ठ और अप्रचि – ये सब तथा इनके सिवा और भी अनेकों महाभयंकर नरक हैं , जो यमराजके शासनाधीन हैं और अति दारुण शस्त्र भय तथा अग्नि – भय देनेवाले हैं और जिनमें जो पुरुष पापरत होते हैं वे ही गिरते हैं ॥

पाप और उनके परिणामस्वरूप नरक

जो पुरुष कूटसाक्षी ( झूठा गवाह अर्थात् जानकर भी न बतलानेवाला या कुछ – का – कुछ कहनेवाला ) होता है अथवा जो पक्षपातसे यथार्थ नहीं बोलता और जो मिथ्याभाषण करता है वह रौरवनरकमें जाता है ॥ भ्रूण ( गर्भ ) नष्ट करनेवाले , ग्रामनाशक और गो – हत्यारे लोग रोध नामक नरकमें जाते हैं जो श्वासोच्छ्वासको रोकनेवाला है ॥ मद्य – पान करनेवाला , ब्रह्मघाती , सुवर्ण चुरानेवाला तथा जो पुरुष इनका संग करता है ये सब सूकरनरकमें जाते हैं ॥

क्षत्रिय अथवा वैश्यका वध करनेवाला तालनरकमें तथा गुरु – स्त्रीके साथ गमन करनेवाला , भगिनीगामी और राजदूतोंको मारनेवाला पुरुष तप्तकुण्डनरकमें पड़ता है ॥ सती स्त्रीको बेचनेवाला , कारागृहरक्षक , अश्वविक्रेता और भक्तपुरुषका त्याग करनेवाला- ये सब लोग तप्तलोहनरकमें गिरते हैं ॥ पुत्रवधू और पुत्रीके साथ विषय करनेवाला पुरुष महाज्वालनरकमें गिराया जाता है , तथा जो नराधम गुरुजनोंका अपमान करनेवाला और उनसे दुर्वचन बोलनेवाला होता है तथा जो वेदकी निन्दा करनेवाला , वेद बेचनेवाला या अगम्या स्त्रीसे सम्भोग करता है , हे द्विज ! वे सब लवणनरकमें जाते हैं ॥

चोर तथा मर्यादाका उल्लंघन करनेवाला पुरुष विलोहितनरकमें गिरता है ॥ देव , द्विज और पितृगणसे द्वेष करनेवाला तथा रत्नको दूषित करनेवाला कृमिभक्षनरकमें और अनिष्ट यज्ञ करनेवाला कृमीशनरकमें जाता है ॥ जो नराधम पितृगण , देवगण और अतिथियों को छोड़कर उनसे पहले भोजन कर लेता है वह अति उग्र लालाभक्षनरकमें पड़ता है ; और बाण बनानेवाला वेधकनरकमें जाता है ॥ जो मनुष्य कर्णी नामक बाण बनाते हैं और जो खड्गादि शस्त्र बनानेवाले हैं वे अति दारुण विशसननरकमें गिरते हैं ॥

असत् प्रतिग्रह ( दूषित उपायोंसे धन – संग्रह ) करनेवाला , अयाज्य याजक और नक्षत्रोपजीवी ( नक्षत्र – विद्याको न जानकर भी उसका ढोंग रचनेवाला ) पुरुष अधोमुखनरकमें पड़ता है ॥ साहस ( निष्ठुर कर्म ) करनेवाला पुरुष पूयवहनरकमें जाता है , तथा [ पुत्र – मित्रादिकी वंचना करके ] अकेले ही स्वादु भोजन करनेवाला और लाख , मांस , रस , तिल तथा लवण आदि बेचनेवाला ब्राह्मण भी उसी ( पूयवह ) नरकमें गिरता है ॥  बिलाव , कुक्कुट , छाग , अश्व , शूकर तथा पक्षियोंको [ जीविकाके लिये ] पालनेसे भी पुरुष उसी नरकमें जाता है ॥

नट या मल्लवृत्तिसे रहनेवाला , धीवरका कर्म करनेवाला , कुण्ड ( उपपतिसे उत्पन्न सन्तान ) का अन्न खानेवाला , विष देनेवाला , चुगलखोर , स्त्रीकी असद्वृत्तिके आश्रय रहनेवाला , धन आदिके लोभसे बिना पर्वके अमावास्या आदि पर्वदिनोंका कार्य करानेवाला द्विज , घरमें आग लगानेवाला , मित्रकी हत्या करनेवाला , शकुन आदि बतानेवाला , ग्रामका पुरोहित तथा सोध ( मदिरा ) बेचने वाला- ये सब रुधिरान्धनरकमें गिरते हैं ॥

यज्ञ अथवा ग्रामको नष्ट करनेवाला वैतरणीनरकमें जाता है , तथा जो लोग वीर्यपातादि करनेवाले , खेतोंकी बाड़ तोड़नेवाले , अपवित्र और छलवृत्तिके आश्रय रहनेवाले होते हैं वे कृष्णनरकमें गिरते हैं ॥ जो वृथा ही वनको काटता है वह असिपत्रवननरकमें जाता है । मेषोपजीवी ( गड़रिये ) और व्याधगण वह्निज्वालनरकमें गिरते हैं तथा  जो कच्चे घड़ों अथवा ईंट आदिको पकानेके लिये उनमें अग्नि डालते हैं , वे भी उस ( वह्निज्वालनरक ) – में ही जाते हैं ॥

व्रतोंको लोप करनेवाले तथा अपने आश्रमसे पतित दोनों ही प्रकारके पुरुष सन्दंश नामक नरकमें गिरते हैं ॥ जिन ब्रह्मचारियोंका दिनमें तथा सोते समय [ बुरी भावनासे ] वीर्यपात हो जाता है , अथवा जो अपने ही पुत्रोंसे पढ़ते हैं वे लोग श्वभोजननरकमें गिरते हैं ॥ इस प्रकार , ये तथा अन्य सैकड़ों – हजारों नरक हैं , जिनमें दुष्कर्मी लोग नाना प्रकारकी यातनाएँ भोगा करते हैं ॥

नरकों की यातनाएँ और पापों के लिए प्रायश्चित्त

इन उपर्युक्त पापोंके समान और भी सहस्त्रों पाप – कर्म हैं , उनके फल मनुष्य भिन्न – भिन्न नरकोंमें भोगा करते हैं ॥ जो लोग अपने वर्णाश्रम – धर्मके विरुद्ध मन , वचन अथवा कर्मसे कोई आचरण करते हैं वे नरकमें गिरते हैं ॥ अधोमुखनरक निवासियोंको स्वर्गलोकमें देवगण दिखायी दिया करते हैं और देवता लोग नीचेके लोकोंमें नारकी जीवोंको देखते हैं ॥ पापी लोग नरकभोगके अनन्तर क्रमसे स्थावर , कृमि , जलचर , पक्षी , पशु , मनुष्य , धार्मिक पुरुष , देवगण तथा मुमुक्षु होकर जन्म ग्रहण करते हैं ॥

मुमुक्षुपर्यन्त इन सबमें दूसरोंकी अपेक्षा पहले प्राणी [ संख्यामें ] सहस्र गुण अधिक हैं ॥  जितन जी स्वर्गमें हैं उतने ही नरकमें है , जो पापी पुरुष [ अपने पापका ] प्रायश्चित्त नहीं करते वे ही नरकमें जाते हैं ॥ भिन्न – भिन्न पापोंके अनुरूप जो – जो प्रायश्चित्त हैं उन्हीं – उन्हींको महर्षियोंने वेदार्थका स्मरण करके बताया है ॥ 

मोक्ष और श्रीकृष्ण स्मरण का महत्त्व

स्वायम्भुवमनु आदि स्मृतिकारोंने महान् पापोंके लिये महान् और अल्पोंके लिये अल्प प्रायश्चित्तोंकी व्यवस्था की है ॥ किन्तु जितने भी तपस्यात्मक और कर्मात्मक प्रायश्चित्त हैं उन सबमें श्रीकृष्णस्मरण सर्वश्रेष्ठ है ॥ जिस पुरुषके चित्तमें पाप – कर्मके अनन्तर पश्चात्ताप होता है उसके लिये ही प्रायश्चित्तोंका विधान है । किंतु यह हरिस्मरण तो एकमात्र स्वयं ही परम प्रायश्चित्त है ॥ प्रातः काल , सायंकाल , रात्रिमें अथवा मध्याह्नमें किसी भी समय श्रीनारायणका स्मरण करनेसे पुरुषके समस्त पाप तत्काल क्षीण हो जाते हैं ॥

श्रीविष्णुभगवान्के स्मरणसे समस्त पापराशिके भस्म हो जाने से पुरुष मोक्षपद प्राप्त कर लेता है , स्वर्ग – लाभ तो उसके लिये विघ्नरूप माना जाता है ॥ जिसका चित्त जप , होम और अर्चनादि करते हुए निरन्तर भगवान् वासुदेवमें लगा रहता है उसके लिये इन्द्रपद आदि फल तो अन्तराय ( विघ्न ) हैं ॥ कहाँ तो पुनर्जन्मके चक्रमें डालनेवाली स्वर्ग – प्राप्ति और कहाँ मोक्षका सर्वोत्तम बीज ‘ वासुदेव ‘ नामका जप ॥  श्रीविष्णुभगवान्‌का अहर्निश स्मरण करनेसे सम्पूर्ण पाप क्षीण हो जानेके कारण मनुष्य फिर नरकमें नहीं जाता ॥ 

चित्तको प्रिय लगनेवाला ही स्वर्ग है और उसके विपरीत ( अप्रिय लगनेवाला ) ही नरक है । पाप और पुण्यहीके दूसरे नाम नरक और स्वर्ग हैं ॥  जब कि एक ही वस्तु सुख और दुःख तथा ईर्ष्या और कोपका कारण हो जाती है तो उसमें वस्तुता ( नियत स्वभावत्व ) ही कहाँ है ? क्योंकि एक ही वस्तु कभी प्रीतिकी कारण होती है तो वही दूसरे समय दुःखदायिनी हो जाती है और वही कभी क्रोधकी हेतु होती है तो कभी प्रसन्नता देनेवाली हो जाती है ॥

अतः कोई भी पदार्थ दुःखमय नहीं है और न कोई सुखमय है । ये सुख दुःख तो मनके ही विकार हैं ॥ [ परमार्थतः ] ज्ञान ही परब्रह्म है और [ अविद्याकी उपाधिसे ] वही बन्धनका कारण है । यह सम्पूर्ण विश्व ज्ञानमय ही है ; ज्ञानसे भिन्न और कोई वस्तु नहीं है । इस प्रकार मैंने तुमसे समस्त भूमण्डल , सम्पूर्ण पाताललोक और नरकोंका वर्णन कर दिया ॥ 

 

MEGHA PATIDAR
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