Manglacharan ॥ कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥
‘जो वसुदेवजीके पुत्र, दिव्यरूपधारी, कंस एवं चाणूरका नाश करनेवाले और देवकीजीके लिये परम आनन्दस्वरूप हैं, उन जगद्गुरु भगवान् श्रीकृष्णकी मैं वन्दना करता हूँ।’
कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षःस्थले कौस्तुभं
नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणुः करे कङ्कणम्।
सर्वाङ्गे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे च मुक्तावली
गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपालचूडामणिः ॥
जिनके मस्तकपर कस्तूरीका तिलक है, वक्षःस्थलमें कौस्तुभमणि है, नासिकाग्रमें अति सुन्दर मोतीकी बुलाक है, करतलमें वंशी है, हाथोंमें कङ्कण है, सम्पूर्ण शरीरमें हरिचंदनका लेप हुआ है और कण्ठमें मनोहर मोतियोंकी माला है, वज्राङ्गनाओंसे घिरे हुए ऐसे गोपालचूडामणिकी बलिहारी है।
फुल्लेन्दीवरकान्तिमिन्दुवदनं बर्हावतंसप्रियं
श्रीवत्साङ्कमुदारकौस्तुभधरं पीताम्बरं सुन्दरम् ।
गोपीनां नयनोत्पलार्चिततनुं गोगोपसङ्घावृतं
गोविन्दं कलवेणुवादनपरं दिव्याङ्गभूषं भजे ॥
जिनका मुखचंद्र विकसित कमलके सदृश है, जिनको मोर- मुकुट अति प्रिय है, जिन्होंने वक्षःस्थलपर श्रीवत्सचिह्न और सुन्दर कौस्तुभमणि धारण किये हैं, जो पीताम्बरधारी एवं सुन्दर हैं, गोपाङ्गनाओंके नयनकमलोंसे जिनका सुन्दर शरीर सम्पूजित है, गौ और गोपियोंके समूहसे आवृत हैं, उन मधुर मुरलिका बजाते हुए दिव्य भूषणभूषित गोविन्दको मैं भजता हूँ।
॥ श्रीगणेशजी ॥
वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम् ॥
गजके आकारके समान बदनवाले, भूतगणोंसे सेवित कपित्थ और जम्बूके फलको भक्षण करनेवाले, उमा (पार्वती) के पुत्र, समस्त शोक और विघ्नोंको नष्ट करनेवाले ! मंगल देनेवाले, सिद्धिदाता श्रीगणेशजी महाराजके पवित्र चरणकमलोंमें नमस्कार करता हूँ।
॥ गुरुजीको नमस्कार ॥
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
संसारके दुःखोंको दूर करने और मोक्षको मार्ग बतानेवाले गुरु ही ब्रह्मा हैं। वही (सर्वव्यापक) विष्णु हैं, वही महादेव हैं। सच्चा ज्ञान देनेवाला गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं। मैं गुरुको प्रणाम करता हूँ।
॥ श्रीविष्णुजी ॥
सशङ्खचक्रं सकिरीटकुण्डलं सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।
सहारवक्षःस्थलकौस्तुभश्रियं नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम् ॥
उन चतुर्भुज भगवान् विष्णुको मैं सिरसे प्रणाम करता हूँ, जो शङ्ख-चक्र धारण किये हैं, किरीट और कुण्डलोंसे विभूषित हैं, पीताम्बर ओढ़े हुए हैं, सुन्दर कमल-से जिनके नेत्र हैं और जिनके वक्षःस्थलमें वनमालासहित कौस्तुभमणिकी अनूठी शोभा है।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
जिनकी आकृति अतिशय शान्त है, जो शेषनागकी शय्यापर शयन किये हुए हैं, जिनकी नाभिमें कमल है, जो देवताओंके भी ईश्वर और सम्पूर्ण जगत्के आधार हैं, जो आकाशके सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नील मेघके समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुन्दर जिनके सम्पूर्ण अङ्ग हैं, जो योगियोंद्वारा ध्यान करके प्राप्त किये जाते हैं, जो सम्पूर्ण लोकोंके स्वामी हैं, जो जन्म-मरणरूप भयका नाश करनेवाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान् श्रीविष्णुको मैं (सिरसे) प्रणाम करता हूँ।
॥ श्रीशिवजी ॥
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ॥
कपूरके समान सुन्दर गौर वर्ण, दयाके अवतार, गलेमें सर्प माला धारण किए हुए हैं, सदा हृदय कमलमें रहनेवाले भगवान् शंकरको पार्वती सहित मैं हृदयसे नमस्कार करता हूँ।
॥ श्रीमहालक्ष्मीजीको नमस्कार ॥
महालक्ष्मि नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि ।
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥
श्रीपीठपर स्थित और देवताओंसे पूजित होनेवाली हे महामाये ! तुम्हें नमस्कार है। हाथमें शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाली हे महालक्ष्मि ! तुम्हें प्रणाम है ॥
॥ गंगाजीको नमस्कार ॥
नमामि गङ्गे ! तव पादपङ्कजं सुरासुरैर्वन्दितदिव्यरूपम् |
भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यं भावानुसारेण सदा नराणाम् ॥
हे गंगाजी ! मैं देवताओं और दैत्योंद्वारा पूजे जानेवाले तेरे अलौकिक चरणकमलोंको नमस्कार करता हूँ। तू मनुष्योंको हमेशा उनकी भावनाके अनुसार संसारके भोग और मोक्ष देती है।
॥ सप्तपुरीको बारम्बार नमस्कार ॥
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची ह्यवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ॥
अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवन्तिका (उज्जयिनी) तथा द्वारका-इन सात मोक्ष देनेवाली पुरियोंको मैं प्रणाम करता हूँ।
॥ चारों धामको बारम्बार नमस्कार ।।
श्रीजगन्नाथजी, श्रीरामेश्वरजी, श्रीबद्रीनारायणजी, श्रीद्वारकाधीशको मैं प्रणाम करता हूँ।
॥ श्रीरामजी ॥
नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम् ।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम् ॥
नीले कमलके समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्रीसीताजी जिनके वाम भागमें विराजमान हैं और जिनके हाथोंमें अमोघ बाण और सुन्दर धनुष है, उन रघुवंशके स्वामी श्रीरामचन्द्रजीको मैं नमन करता हूँ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥
मनसे श्रीरामचन्द्रजीके चरणोंका चिन्तन, वचनसे श्रीरामचन्द्रजीके चरणोंका गुणगान, सिरसे श्रीरामचन्द्रजीके चरणोंमें नमन और अन्ततः उन्हीं चरणोंकी शरण लेता हूँ।
लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥
जो सम्पूर्ण लोकोंमें सुन्दर, रणक्रीडामें धीर, कमलनयन, रघुवंशनायक, करुणामूर्ति और करुणाके भण्डार हैं, उन श्रीरामचन्द्रजीकी मैं शरण लेता हूँ ॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।
(श्रीमहादेवजी पार्वतीजीसे कहते हैं) हे सुमुखि ! रामनाम विष्णुसहस्त्रनामके तुल्य है। मैं सर्वदा ‘राम, राम, राम’ इस प्रकार मनोरम राम-नाममें ही रमण करता हूँ।
॥ श्रीहनुमान वन्दना ॥
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥
अतुल बलके धाम, सोनेके पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीरवाले, दैत्यरूपी वनके लिये अग्निरूप, ज्ञानियोंमें अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणोंके निधान, वानरोंके स्वामी, श्रीरघुनाथजीके प्रिय भक्त पवनपुत्र श्रीहनुमान्जीको मैं प्रणाम करता हूँ।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥
जिनकी मनके समान गति और वायुके समान वेग है, जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानोंमें परम श्रेष्ठ हैं उन पवननन्दन, वानरोंमें अग्रगण्य श्रीरामजीके दूत हनुमान्जीकी मैं शरण लेता हूँ।
॥ सूर्य-नमस्कार॥
आदिदेव! नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर ! नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥
हे आदिदेव भास्कर ! आपको प्रणाम है आप मुझपर प्रसन्न हों हे दिवाकर ! आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर! आपको प्रणाम है।
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