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1. मंगलाचरण

मंगलाचरण

मंगलाचरण

मंगलाचरण एक संस्कृत शब्द है जो किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में की जाने वाली प्रार्थना या स्तुति को संदर्भित करता है। यह प्रार्थना विशेष रूप से देवी-देवताओं की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती है, जिससे कार्य सफलतापूर्वक और बिना किसी बाधा के संपन्न हो सके। मंगलाचरण श्लोक आमतौर पर वेदों, पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में पाए जाते हैं और इन्हें धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा-पाठ, और त्योहारों के अवसर पर उच्चारित किया जाता है।

(गणपत्युपनिषद्)

नमो गणपतये सायंप्रातः युञ्जानोऽपापो भवति ।

धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति ||1||

गणेशं शिवेशं देवीं रमेशं दिनेशं तथा ।

पञ्चदेवान् सनातनान् नमाम्यहं पुनः पुनः ||2||

कृष्णं नमामि श्रीचन्द्रं दैत्यारिं देवपालकम् ।

सत्यं ज्ञानमनन्तं तं मायाऽतीतं ब्रह्माद्वयम् ।।3।।

श्रीमत्कृष्णानन्दगुरुपादपद्मं तमोहरम् ।

विद्याप्रदान् गुरून् सर्वान्नमाम्यहं पुनः पुनः ||4||

गणेश शिवेश रमेश को, देवी सहित दिनेश ।

नमस्कार पञ्चदेव को, हरो सकल कलेश ||1||

गणपति उपनिषद् के (नमो गणपतये) इस मन्त्र का सायंकाल, प्रातः काल श्रद्धापूर्वक पाठ करने से पाप निवृत्तिपूर्वक धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की प्राप्ति मनुष्य को होती है। गण नाम चराचर प्राणी समूह का, पति नाम पालक (पति शब्द से उत्पत्ति संहार का भी ग्रहण करना) सर्व का कर्ता, भर्ता, हर्ता ऐसे गणपति परमात्मा के प्रति नमस्कार है अथवा टौणा, मोणा, श्रृङ्गी, भृङ्गी आदि गणों का पति सर्व से प्रथम पूजनीय है, जब त्रिपुर दैत्य का नाश किसी प्रकार से न हुआ तब महादेवजी गणपतिजी का पूजन कर त्रिपुर का शीघ्र ही नाश करते भये। इस कारण से (नमो गणपतये) यह मन्त्र पुरुष को चार पुरुषार्थ देने वाला है। अब इन चार पुरुषार्थों का निरूपण करते हैं।

धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष, यह चार पुरुषार्थ हैं

धर्म– वेद ने जिसको विधान करा है और दुःख से रहित सुख रूप जिसका फल हो उसका नाम धर्म है।

अर्थ – द्रव्यादि सम्बन्धी सुख का नाम अर्थ है।

काम – पुत्र स्त्री सम्बन्धी सुख का नाम काम है।

मोक्ष – जिस परम सुख को प्राप्त होकर संसार दुःख का अत्यन्ताभाव हो जाय उसका नाम मोक्ष है। इनमें से धर्म, अर्थ, काम यह तीन पुरुषार्थ संसार सम्बन्धी सुख हैं और मैं ब्रह्म हूँ इस संशय विपर्यय से रहित अद्वैत ज्ञान से अनर्थ की निवृत्ति और परमानन्द की प्राप्ति रूप मोक्ष यह चौथा परम पुरुषार्थ है।

अब एक ही मन्त्र के जाप से चार पुरुषार्थ कैसे प्राप्त होते हैं वो निरूपण करते हैं। सकाम जाप से धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति होती है और निष्काम जाप से अन्तःकरण की शुद्धि द्वारा अद्वैत ज्ञान से परमानन्द मोक्ष की प्राप्ति होती है। वेद, शास्त्र, पुराण आदि सब अद्वैत ज्ञान से ही परम पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति कहते हैं।

इसलिये जिस प्रकार अध्यारोप अपवाद से ब्रह्म की प्राप्ति वेद, शास्त्र, पुराण निरूपण करते हैं वैसे ही इस ग्रन्थ में भी निरूपण किया जायगा और जो वेदान्त ग्रन्थों में अधिकारी, विषय, सम्बन्ध, प्रयोजन रूप अनुबन्ध कहा है सोई इस ग्रन्थ का भी जान लेना। मोक्ष पुरुषार्थ के ज्ञान के अर्थ तीन पुरुषार्थों का आरोप है ।

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