माघ मास हिंदू पंचांग का ग्यारहवां महीना है और इसे धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस महीने में किए गए व्रत, दान, और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। माघ महीने में स्नान, व्रत, और विभिन्न त्यौहार मनाए जाते हैं, जो न केवल शारीरिक और मानसिक शुद्धि में सहायक होते हैं, बल्कि आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं।
माही चौथ (संकट चौथ) व्रत कथा
यह व्रत माघ मास की पूर्णिमा के बाद आने वाली चौथ को किया जाता है। इसमे तिलकुट्टा बनाया जाता है। शाम को गणेशजी व चौथ माता की पूजा करना चाहिए। कहानी कहना या सुनना चाहिए और बाद में चंद्रमा को अच्य देकर भोजन किया जाता है।
पुत्रवती माताएँ पुत्र एवं पति की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती है। कथा : एक साहूकार था, जिसके कोई भी पुत्र नहीं था। एक दिन साहूकार की पत्नी अपनी पड़ोसन के यहाँ अग्नि लेने गई। उस समय पड़ोसन चौथमाता का पूजन कर रही थी। साहूकार की पत्नी ने उसको पूछा- “यह पूजा किस देवता की है?” तब पड़ोसन ने बताया कि- “यह चौथ मात की पूजा है। इसके करने से अन्न होता है, धन होता है, निपुत्र को पुत्र होताहै, बिछड़े हुओ का फिर से मिलन होता है।” तब साहूकार की पत्नी बोली- “मैं भी पुत्र प्राप्ति के लिए चौथ माता का व्रत करूंगी और सवा मन का तिलकुट्टा बनाकर चढ़ाऊँगी।”
नौ महीने बाद उसको पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन चौथ के दिन वह तिलकुट्टा चढ़ाना भूल गई।
इस प्रकार साहूकार की पत्नी को सात पुत्र हुए। सातों लड़कों का विवाह किया, लेकिन सातों लड़के मृत्यु को प्राप्त हुए। एक दिन सातवें लड़के की बहू ने अपने ससुरजी से कहा- “अपने पास धन की कोई कमी नहीं है की एक टका सोने का देकर रोज नई-जूनी बात सुनूँगी।” तब वो हनुमान जी के मंदिर में जाती और एक टका सोने का देकर नई-जूनी बात सुनती।
एक रात को बारह बजे हनुमानजी के मंदिर में एक साधु आया और उसने मौड़ तथा चुंदड़ी लाकर वहाँ रखी तथा गंगाजल के छींटे देकर उस साहूकार के सातों बेटों को जीवित कर दिया। तब सभी लड़के कहने लगे कि “माँ ने मई चौथ के दिन सवा मन तिलकुट्टा चढ़ाने को कहा था, पर बढ़ाना भूल गई। जिससे चौथ माता ने क्रोध किया और सातों बेटे मर गए।” सासू ने छोटी बहू से पूछा- “तू तो रोजाना एक टका सोने का देकर नई- वृनी बात सुनती है, बता क्या सुना।”
तब छोटी बहू बोली-“मई चौथ के दिन सवा मन तिलकुट्टा चढ़ाना है।” सवा मन का तिलकुट्टा बनाकर चौथमाता को चढ़ाया गया। हे चौथ माता सात बहुओं को सुहाग दिया, ऐसा सभी को देना।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा
गणेश चतुर्थी का व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। इस दिन विद्या-बुद्धि-वारिधि के स्वामी गणेश तथा चन्द्रमा की पूजा की जाती है।
विधि :
नैवेद्य सामग्री तिल, ईख, अमरूद, गुड़ तथा घी से चन्द्रमा व गणेशजी का भोग लगाया जाता है। दिन भर व्रत रखकर सायंकाल चन्द्रमा को दूध का अर्घ्य देते हैं। गौरी गणेश की स्थापना कर उनका पूजन किया जाता है तथा वर्ष भर उन्हें घर में रखते हैं।
नैवेद्य को रात्रि भर ढककर रख जाता है। इसे “पहार” कहते हैं। प्रातः पहार को पुत्र खोलता है तथा भाई-बन्धुओं में बाँट दिया जाता है।
कथा :
एक बार भगवान शंकर ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय तथा गणेश से पूछा- “तुममे से कौन ऐसा वीर है, जो देवताओं की रक्षा कर सके।” तब कार्तिकेय ने अपने को देवताओ का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य अधिकारी बताया। इसके बाद भगवान शंकर ने गणेश से पूछा। तब गणेशजी ने कहा- “मैं तो बिना सेनापति बने ही देवताओं के संकट हर सकता हूँ।” शिवजी ने दोनों बालकों की परीक्षा लेने हेतु कहा- “दोनों में से जो पृथ्वी की परिक्रमा सबसे पहले करके मेरे पास आ जायेगा, वही वीर तथा सर्वश्रेष्ठ घोषित किया जाएगा।”
कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल पड़े। गणेशजी ने सोचा अपने वाहन चूहे पर बैठकर पृथ्वी परिक्रमा पूरी करने में बहुत समय लग जायेगा। इसलिए कोई और युक्ति सोचनी चाहिए।
गणेशजी ने अपने-माता-पिता की सात बार परिक्रमा की और कार्तिकेय के आने की प्रतीक्षा करने लगे। कार्तिकेय ने लौटने पर अपने पिता से कहा- “गणेश तो पृथ्वी की परिक्रमा करने गया ही नहीं।” इस पर गणेशजी बोले- “मैंने अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा की है। माता-पिता में ही समस्त तीर्थ निहित हैं, इसलिए मैंने आपकी सात बार परिक्रमा की है।”
गणेशजी की युक्ति सुनकर सब देवता और कार्तिकेय ने उनकी बात सिर झुकाकर स्वीकार कर ली। तब शंकरजी ने गणेश को आशीर्वाद दिया कि समस्त देवताओं में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी। गणेशजी ने पिता की आज्ञानुसार देवताओं का संकट दूर किया।
यह शुभ समाचार जानकर भगवान शंकर ने कहा कि “चतुर्थी तिथि के दिन चन्द्रमा तुम्हारे मस्तक पर ताज बनकर पूरे विश्व को शीतलता प्रदान करा करेगा। जो स्त्री-पुरुष इस तिथि पर तुम्हारा पूजन तथा चन्द्रमा को अर्घ्य देगा, उसका दैहिक तथा भौतिक ताप दूर होगा और ऐश्वर्य, पुत्र, सौभाग्य को प्राप्त करेगा।”
बसंत पंचमी
यह माघ शुक्ल पक्ष पंचमी को होती है। इस दिन सरस्वती का जन्म हुआ था। इस दिन भगवान को सफेद या बसंती कपड़े पहिनावें, रंग-गुलाल आदि से भगवान का पूजन करें।
रथसप्तमी (सूर्य सप्तमी)
इस दिन भगवान सूर्य नारायण की पूजा की जाती है। सूर्य की ओर मुख करके स्तुति करने से शारीरिक चर्मरोग नष्ट हो जाते हैं। इस दिन सात प्रकार के धान का दान करना चाहिए।
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FAQS-
माघ मास में स्नान का क्या महत्व है?
माघ मास में गंगा, यमुना, और सरस्वती के संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे शारीरिक और मानसिक शुद्धि का माध्यम भी माना जाता है।
माघ पूर्णिमा क्यों महत्वपूर्ण है?
माघ पूर्णिमा पर ध्यान, दान और गंगा स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए आदर्श है।
वसंत पंचमी माघ मास में क्यों मनाई जाती है?
वसंत पंचमी देवी सरस्वती को समर्पित है और यह दिन ज्ञान, विद्या और कला के प्रति समर्पण का प्रतीक है। इस दिन सरस्वती पूजा और पीले वस्त्र धारण करने की परंपरा है।