भारतीय संस्कृति और धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। इन सभी एकादशियों में, मोक्षदा एकादशी, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी, अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसे मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी कहा जाता है। इस दिन का आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इसे गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। यही वह दिन है जब भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का दिव्य ज्ञान प्रदान किया था।
मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा
युधिष्ठिर बोले- देवदेवेश्वर ! मैं पूछता हूँ- मार्गशीर्षमासके शुक्लपक्षमें जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है ? कौन-सी विधि है तथा उसमें किस देवताका पूजन किया जाता है ? स्वामिन् ! यह सब यथार्थरूपसे बताइये ।
श्रीकृष्णने कहा- नृपश्रेष्ठ ! मार्गशीर्षमासके कृष्णपक्षमें’ उत्पत्ति’ (उत्पन्ना) नामकी एकादशी होती है, जिसका वर्णन मैंने तुम्हारे समक्ष कर दिया है। अब शुक्कुपक्षकी एकादशीका वर्णन करूँगा, जिसके श्रवणमात्रसे वाजपेय-यज्ञका फल मिलता है। उसका नाम है—’मोक्षा’ एकादशी, जो सब पापोंका अपहरण करनेवाली है।
राजन् ! उस दिन यत्नपूर्वक तुलसीकी मञ्जरी तथा धूप-दीपादिसे भगवान् दामोदरका पूजन करना चाहिये। पूर्वोक्त विधिसे ही दशमी और एकादशीके नियमका पालन करना उचित है। ‘मोक्षा’ एकादशी बड़े-बड़े पातकोंका नाश करनेवाली है। उस दिन रात्रिमें मेरी प्रसन्नताके लिये नृत्य, गीत और स्तुतिके द्वारा जागरण करना चाहिये। जिसके पितर पापवश नीच योनिमें पड़े हों, वे इसका पुण्य-दान करनेसे मोक्षको प्राप्त होते हैं।
इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। पूर्वकालकी बात है, वैष्णवोंसे विभूषित परम रमणीय चम्पक नगरमें वैखानस नामक राजा रहते थे। वे अपनी प्रजाका पुत्रकी भाँति पालन करते थे। इस प्रकार राज्य करते हुए राजाने एक दिन रातको स्वप्नमें अपने पितरोंको नीच योनिमें पड़ा हुआ देखा। उन सबको इस अवस्थामें देखकर राजाके मनमें बड़ा विस्मय हुआ और प्रातःकाल ब्राह्मणोंसे उन्होंने उस स्वप्नका सारा हाल कह सुनाया।
राजा बोले- ब्राह्मणो ! मैंने अपने पितरोंको नरकमें गिरा देखा है। वे बारम्बार रोते हुए मुझसे यों कह रहे थे कि ‘तुम हमारे तनुज हो, इसलिये इस नरक-समुद्रसे हमलोगोंका उद्धार करो।’ द्विजवरो ! इस रूपमें मुझे पितरोंके दर्शन हुए हैं। इससे मुझे चैन नहीं मिलता। क्या करूँ, कहाँ जाऊँ? मेरा हृदय रुँधा जा रहा है। द्विजोत्तमो ! वह व्रत, वह तप और वह योग, जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नरकसे छुटकारा पा जायें, बतानेकी कृपा करें। मुझ बलवान् एवं साहसी पुत्रके जीते-जी मेरे माता-पिता घोर नरकमें पड़े हुए हैं! अतः ऐसे पुत्रसे क्या लाभ है।
ब्राह्मण बोले- राजन् ! यहाँसे निकट ही पर्वत मुनिका महान् आश्रम है। वे भूत और भविष्यके भी ज्ञाता हैं। नृपश्रेष्ठ ! आप उन्हींके पास चले जाइये।
ब्राह्मणोंकी बात सुनकर महाराज वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनिके आश्रमपर गये और वहाँ उन मुनिश्रेष्ठको देखकर उन्होंने दण्डवत्-प्रणाम करके मुनिके चरणोंका स्पर्श किया। मुनिने भी राजासे राज्यके सातों * अङ्गोंकी कुशल पूछी।
राजा बोले – स्वामिन् ! आपकी कृपासे मेरे राज्यके सातों अङ्ग सकुशल हैं। किन्तु मैंने स्वप्नमें देखा है कि मेरे पितर नरकमें पड़े हैं; अतः बताइये किस पुण्यके प्रभावसे उनका वहाँसे छुटकारा होगा ?
राजाकी यह बात सुनकर मुनिश्रेष्ठ पर्वत एक मुहूर्त्ततक ध्यानस्थ रहे। इसके बाद वे राजासे बोले- ‘महाराज ! मार्गशीर्षमासके शुक्कपक्षमें जो ‘मोक्षा’ नामकी एकादशी होती है, तुम सब लोग उसका व्रत करो और उसका पुण्य पितरोंको दे डालो। उस पुण्यके प्रभावसे उनका नरकसे उद्धार हो जायगा।’
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- युधिष्ठिर ! मुनिकी यह बात सुनकर राजा पुनः अपने घर लौट आये। जब उत्तम मार्गशीर्षमास आया, तब राजा वैखानसने मुनिके कथनानुसार ‘मोक्षा’ एकादशीका व्रत करके उसका पुण्य समस्त पितरोंसहित पिताको दे दिया। पुण्य देते ही क्षणभरमें आकाशसे फूलोंकी वर्षा होने लगी। वैखानसके पिता पितरोंसहित नरकसे छुटकारा पा गये और आकाशमें आकर राजाके प्रति यह पवित्र वचन बोले- ‘बेटा! तुम्हारा कल्याण हो।’ यह कहकर वे स्वर्गमें चले गये। राजन् ! जो इस प्रकार कल्याणमयी ‘मोक्षा’ एकादशीका व्रत करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और मरनेके बाद वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। यह मोक्ष देनेवाली ‘मोक्षा’ एकादशी मनुष्योंके लिये चिन्तामणिके समान समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेवाली है। इस माहात्म्यके पढ़ने और सुननेसे वाजपेय- यज्ञका फल मिलता है।
गीता जयंती का महत्व
मोक्षदा एकादशी का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसे गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। धर्म, कर्म, और भक्ति का जो ज्ञान गीता में निहित है, वह मानवता के लिए अनमोल है। यह वही दिन है जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था, जिसमें जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए मार्गदर्शन मिलता है।
गीता जयंती के दिन, भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का अध्ययन और पाठ किया जाता है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि हमारे कर्म का आधार केवल हमारा धर्म और कर्तव्य होना चाहिए। यह मानवता को यह भी समझाने का प्रयास है कि सफलता और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग सत्य, संयम और आत्म-ज्ञान में है।
मोक्षदा एकादशी की पूजा विधि
मोक्षदा एकादशी पर व्रत और पूजा विशेष विधि से की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के दामोदर स्वरूप की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान तुलसी की मंजरी, धूप, दीप, और नैवेद्य का उपयोग किया जाता है। यहाँ व्रत और पूजा विधि को विस्तार से बताया गया है:
1. व्रत की तैयारी
- व्रत का संकल्प दशमी की रात्रि में करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. भगवान का पूजन
- भगवान श्रीकृष्ण के दामोदर स्वरूप की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- तुलसी के पत्ते, पुष्प, धूप, दीप और फल का अर्पण करें।
- श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करें और भगवान विष्णु की आरती करें।
3. जागरण
- रात्रि में भजन-कीर्तन, ध्यान, और स्तुति के साथ जागरण करें।
4. पुण्य का दान
- व्रत का पुण्य अपने पितरों को समर्पित करें, विशेषतः यदि उनके मोक्ष की कामना हो।
मोक्षदा एकादशी का महत्व
- मोक्ष प्राप्ति: यह एकादशी पापों का नाश करती है और मोक्ष प्रदान करती है।
- पितरों का उद्धार: व्रत का पुण्य पितरों को अर्पित करने से उन्हें नरक से मुक्ति मिलती है।
- धार्मिक लाभ: इस दिन व्रत और जागरण करने से वाजपेय यज्ञ के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
- आध्यात्मिक शुद्धि: इस दिन के उपवास और पूजा से मन, वचन और कर्म की शुद्धि होती है।
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FAQs
मोक्षदा एकादशी का व्रत क्यों करना चाहिए?
यह व्रत पापों को नष्ट कर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रदान करता है। साथ ही, इसके पुण्य से पितरों को नरक से मुक्ति मिलती है।
गीता जयंती क्यों मनाई जाती है?
गीता जयंती भगवद्गीता के उपदेशों को स्मरण करने का दिन है। गीता का ज्ञान हमें धर्म, कर्म, और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
व्रत के दौरान क्या खा सकते हैं?
व्रत के दौरान फल, दूध और सात्विक आहार का सेवन किया जा सकता है। अन्न और तामसिक भोजन वर्जित हैं।
व्रत का पुण्य दान किसे किया जा सकता है?
व्रत का पुण्य विशेष रूप से पितरों को समर्पित किया जा सकता है, जिससे वे नरक से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें।
निष्कर्ष
मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती, दोनों ही अत्यंत पवित्र और शुभ तिथियाँ हैं। यह दिन न केवल धर्म और भक्ति के महत्व को उजागर करता है, बल्कि मोक्ष और आत्मज्ञान प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। इस दिन व्रत, पूजा, और जागरण के माध्यम से भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करें और गीता के उपदेशों को अपने जीवन में अपनाएँ।
अपने पितरों के उद्धार के लिए और आत्मा की शुद्धि के लिए इस एकादशी का व्रत अवश्य करें। यह दिन आपकी आत्मिक उन्नति के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।