61. यदुके वंशका वर्णन और सहस्रार्जुन का चरित्र

 

यदुके वंशका वर्णन

भगवान् विष्णुका अवतार

ययातिके प्रथम पुत्र यदुके वंशका वर्णन करता हूँ , जिसमें कि  मनुष्य , सिद्ध , गन्धर्व , यक्ष , राक्षस , गुह्यक , किंपुरुष ,  अप्सरा , सर्प , पक्षी , दैत्य , दानव , आदित्य , रुद्र , वसु , अश्विनीकुमार , मरुद्गण , देवर्षि , मुमुक्षु तथा धर्म , अर्थ , काम और मोक्षके अभिलाषी पुरुषोंद्वारा सर्वदा स्तुति किये जानेवाले , अखिललोक – विश्राम आद्यन्तहीन भगवान् विष्णुने अपने अपरिमित महत्त्वशाली अंशसे अवतार लिया था । इस विषयमें यह श्लोक प्रसिद्ध है — ॥ ‘ जिसमें श्रीकृष्ण नामक निराकार परब्रह्मने अवतार लिया था , उस यदुवंशका श्रवण करनेसे मनुष्य सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त हो जाता है ‘ ॥

यदुके चार पुत्र

  • सहस्रजित्
  • क्रोष्टु
  • नल
  • नहुष

 

सहस्रजितके वंशज

  • सहस्रजितके पुत्र: शतजित्

शतजित्के पुत्र:

  • हैहय,
  • हेहय,
  • वेणुहय

हैहयके वंशज

  • हैहयके पुत्र: धर्म
  • धर्मके पुत्र: धर्मनेत्र
  • धर्मनेत्रके पुत्र: कुन्ति
  • कुन्तिके पुत्र: सहजित्
  • सहजित्के पुत्र: महिष्मान् , जिसने माहिष्मतीपुरीको बसाया ॥

 

महिष्मान्के वंशज

    • महिष्मान्के पुत्र: भद्रश्रेण्य
    • भद्रश्रेण्यके पुत्र: दुर्दम
    • दुर्दमके पुत्र: धनक
    • धनकके पुत्र: कृतवीर्य, कृताग्नि, कृतधर्म, कृतौजा नामक चार पुत्र हुए|

कृतवीर्यके पुत्र

कृतवीर्यके सहस्त्र भुजाओंवाले सप्तद्वीपाधिपति अर्जुनका जन्म हुआ ॥

अर्जुनका वर्णन

सहस्रार्जुनने अत्रिकुलमें उत्पन्न भगवदंशरूप श्रीदत्तात्रेयजीकी उपासना कर ‘ सहस्र भुजाएँ , अधर्माचरणका निवारण , स्वधर्मका सेवन , युद्धके द्वारा सम्पूर्ण पृथिवीमण्डलका विजय , धर्मानुसार प्रजा – पालन , शत्रुओंसे अपराजय तथा त्रिलोकप्रसिद्ध पुरुषसे मृत्यु – ऐसे कई वर माँगे और प्राप्त किये थे ॥  अर्जुनने इस सम्पूर्ण सप्तद्वीपवती पृथिवीका पालन तथा दस हजार यज्ञोंका अनुष्ठान किया था ॥  उसके विषयमें यह श्लोक आजतक कहा जाता है—  ‘ यज्ञ , दान , तप , विनय और विद्यामें कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुनकी समता कोई भी राजा नहीं कर सकता ‘ ॥  उसके राज्यमें कोई भी पदार्थ नष्ट नहीं होता था ॥  इस प्रकार उसने बल , पराक्रम , आरोग्य और सम्पत्तिको सर्वथा सुरक्षित रखते हुए पचासी हजार वर्ष राज्य किया ॥ 

सहस्रार्जुनका अंत

एक दिन जब वह अतिशय मद्य पानसे व्याकुल हुआ नर्मदा नदीमें जल – क्रीडा कर रहा था , उसकी राजधानी माहिष्मतीपुरीपर दिग्विजयके लिये आये हुए सम्पूर्ण देव , दानव , गन्धर्व और राजाओंके विजयमदसे उन्मत्त रावणने आक्रमण किया , उस समय उसने अनायास ही रावणको पशुके समान बाँधकर अपने नगरके एक निर्जन स्थानमें रख दिया ॥  इस सहस्रार्जुनका पचासी हजार वर्ष व्यतीत होनेपर भगवान् नारायणके अंशावतार परशुरामजीने वध किया था ॥

सहस्रार्जुनके सौ पुत्र

  इसके सौ पुत्रोंमेंसे शूर , शूरसेन , वृषसेन , मधु और जयध्वज- ये पाँच प्रधान थे ॥

जयध्वजके वंशज

जयध्वजका पुत्र तालजंघ हुआ और तालजंघके वीतिहोत्र तालजंघ नामक सौ पुत्र हुए इनमें सबसे बड़ा तथा दूसरा भरत था ॥ 

भरतके वंशज

भरतके वृष , वृषके मधु और मधुके वृष्णि आदि सौ पुत्र हुए ॥ 

वंशका नामकरण

वृष्णिके कारण यह वंश वृष्णि कहलाया ॥

मधुके कारण इसकी मधु – संज्ञा हुई ॥ 

और यदुके नामानुसार इस वंशके लोग यादव कहलाये ॥ 

MEGHA PATIDAR
MEGHA PATIDAR

Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

Articles: 300