रुक्मिणी की अभिलाषा
विदर्भदेशान्तर्गत कुण्डिनपुर नामक नगरमें भीष्मक नामक एक राजा थे। उनके रुक्मी नामक पुत्र और रुक्मिणी नामकी एक सुमुखी कन्या थी ॥ श्रीकृष्णने रुक्मिणीकी और चारुहासिनी रुक्मिणीने श्रीकृष्णचन्द्रकी अभिलाषा की, किंतु भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रके प्रार्थना करनेपर भी उनसे द्वेष करनेके कारण रुक्मीने उन्हें रुक्मिणी न दी ॥
शिशुपाल के साथ रुक्मिणी का विवाह तय होना
महापराक्रमी भीष्मकने जरासन्धकी प्रेरणासे रुक्मीसे सहमत होकर शिशुपालको रुक्मिणी देनेका निश्चय किया ॥ तब शिशुपालके हितैषी जरासन्ध आदि सम्पूर्ण राजागण विवाहमें सम्मिलित होनेके लिये भीष्मकके नगरमें गये ॥ इधर बलभद्र आदि यदुवंशियोंके सहित श्रीकृष्णचन्द्र भी चेदिराजका विवाहोत्सव देखनेके लिये कुण्डिनपुर आये ॥
श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणी का हरण
तदनन्तर विवाहका एक दिन रहनेपर अपने विपक्षियोंका भार बलभद्र आदि बन्धुओंको सौंपकर श्रीहरिने उस कन्याका हरण कर लिया ॥ तब श्रीमान् पौण्ड्रक, दन्तवक्त्र, विदूरथ, शिशुपाल, जरासन्ध और शाल्व आदि राजाओंने क्रोधित होकर श्रीहरिको मारनेका महान् उद्योग किया, किन्तु वे सब बलराम आदि यदुश्रेष्ठोंसे मुठभेड़ होनेपर पराजित हो गये ॥
रुक्मी की प्रतिज्ञा और पराजय
तब रुक्मीने यह प्रतिज्ञाकर कि ‘मैं युद्धमें कृष्णको मारे बिना कुण्डिनपुरमें प्रवेश न करूँगा’ कृष्णको मारनेके लिये उनका पीछा किया ॥ किन्तु श्रीकृष्णने लीलासे ही हाथी, घोड़े, रथ और पदातियोंसे युक्त उसकी सेनाको नष्ट करके उसे जीत लिया और पृथिवीमें गिरा दिया ॥
श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह
इस प्रकार रुक्मीको युद्धमें परास्तकर श्रीमधुसूदनने राक्षसविवाहसे मिली हुई रुक्मिणीका सम्यक् (वेदोक्त) रीतिसे पाणिग्रहण किया ॥ उससे उनके कामदेवके अंशसे उत्पन्न हुए वीर्यवान् प्रद्युम्नजीका जन्म हुआ, जिन्हें शम्बरासुर हर ले गया था और फिर जिन्होंने [काल-क्रमसे] शम्बरासुरका वध किया था ॥