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विष्णु पुराण में संकीर्तन का महत्त्व
विष्णु पुराण में देवता, दैत्य, गन्धर्व, नाग, राक्षस, यक्ष, विद्याधर, सिद्ध और अप्सरागण का भी वर्णन किया गया है ॥ आत्माराम और तपोनिष्ठ मुनिजन चातुर्वर्ण्य विभाग, महापुरुषोंके विशिष्ट चरित, पृथिवीके पवित्र क्षेत्र, पवित्र नदी और समुद्र, अत्यन्त पावन पर्वत, बुद्धिमान् पुरुषोंके चरित, वर्ण-धर्म आदि धर्म तथा वेद और शास्त्रोंका भी इसमें सम्यक्रूप से निरूपण हुआ है, जिनके स्मरणमात्र से मनुष्य समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है ॥
अश्वमेध-यज्ञमें अवभृथ (यज्ञान्त) स्नान करनेसे जो फल मिलता है वही फल मनुष्य इसको सुनकर प्राप्त कर लेता है ॥ प्रयाग, पुष्कर, कुरुक्षेत्र तथा समुद्रतटपर रहकर उपवास करनेसे जो फल मिलता है वही इस पुराणको सुननेसे प्राप्त हो जाता है॥ एक वर्षतक नियमानुसार अग्निहोत्र करनेसे मनुष्यको जो महान् पुण्यफल मिलता है वही इसे एक बार सुननेसे हो जाता है ॥ ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशीके दिन मथुरापुरीमें यमुना-स्नान करके कृष्णचन्द्रका दर्शन करनेसे जो फल मिलता है। वही भगवान् कृष्णमें चित्त लगाकर इस पुराणके एक अध्यायको सावधानतापूर्वक सुननेसे मिल जाता है ॥
ज्येष्ठ मासके शुक्लपक्षकी द्वादशीको मथुरापुरीमें उपवास करते हुए यमुना-स्नान करके समाहितचित्तसे श्रीअच्युतका भलीप्रकार पूजन करनेसे मनुष्यको अश्वमेध यज्ञका सम्पूर्ण फल मिलता है ॥
विष्णु पुराण सुनने का महत्त्व
कहते हैं अपने वंशजोंद्वारा [यमुनातटपर पिण्डदान करनेसे] उन्नति लाभ किये हुए अन्य पितरोंकी समृद्धि देखकर दूसरे लोगोंके पितृ- पितामहोंने [अपने वंशजोंको लक्ष्य करके] इस प्रकार कहा था| क्या हमारे कुलमें उत्पन्न हुआ कोई पुरुष ज्येष्ठ मासके शुक्ल पक्षमें [द्वादशी तिथिको] – मथुरामें उपवास करते हुए यमुनाजलमें स्नान करके श्रीगोविन्दका पूजन करेगा, जिससे हम भी अपने वंशजद्वारा उद्धार पाकर ऐसा परम ऐश्वर्य प्राप्त कर सकेंगे ? ‘
जो बड़े भाग्यवान् होते हैं उन्हींके वंशधर ज्येष्ठमासीय शुक्लपक्षमें भगवान्का अर्चन करके यमुनामें पितृगणको पिण्डदान करते हैं॥ उस समय यमुनाजलमें स्नान करके सावधानतापूर्वक भलीप्रकार भगवान्का पूजन करनेसे और पितृगणको पिण्ड देनेसे अपने पितामहोंको तारता हुआ पुरुष जिस पुण्यका भागी होता है वही पुण्य भक्तिपूर्वक इस पुराणका एक अध्याय सुनने से प्राप्त हो जाता है ।। यह पुराण संसारसे भयभीत हुए पुरुषोंका अति उत्तम रक्षक, अत्यन्त श्रवणयोग्य तथा पवित्रोंमें परम उत्तम है ॥ यह मनुष्योंके दुःस्वप्नोंको नष्ट करनेवाला, सम्पूर्ण दोषोंको दूर करनेवाला, मांगलिक वस्तुओंमें परम मांगलिक और सन्तान तथा सम्पत्तिका देनेवाला है ॥
आर्षपुराण
इस आर्षपुराणको सबसे पहले भगवान् ब्रह्माजीने ऋभुको सुनाया था। ऋभुने प्रियव्रतको सुनाया और प्रियव्रतने भागुरिसे कहा ॥ फिर इसे भागुरिने स्तम्भमित्रको, स्तम्भमित्रने दधीचिको, दधीचिने सारस्वतको और सारस्वतने भृगुको सुनाया ॥ तथा भृगुने पुरुकुत्ससे, पुरुकुत्सने नर्मदासे और नर्मदाने धृतराष्ट्र एवं पूरणनागसे कहा ।। इन दोनोंने यह पुराण नागराज वासुकिको सुनाया। वासुकिने वत्सको, वत्सने अश्वतरको, अश्वतरने कम्बलको और कम्बलने एलापुत्रको सुनाया ॥ इसी समय मुनिवर वेदशिरा पाताललोकमें पहुँचे, उन्होंने यह समस्त पुराण प्राप्त किया और फिर प्रमतिको सुनाया ॥ प्रमतिने उसे परम बुद्धिमान् जातुकर्ण को दिया तथा जातुकर्णने अन्यान्य पुण्यशील महात्माओं को सुनाया ।।
[पूर्व जन्म में सारस्वत के मुख से सुना हुआ यह पुराण] पुलस्त्यजी के वरदान से मुझे भी स्मरण रह गया। सो मैंने ज्यों-का-त्यों तुम्हें सुना दिया। अब तुम भी कलियुगके अन्तमें इसे शिनीकको सुनाओगे ॥
जो पुरुष इस अति गुह्य और कलि-कल्मष- नाशक पुराण को भक्तिपूर्वक सुनता है वह सब पापों से मुक्त हो जाता है ॥ जो मनुष्य इसका प्रतिदिन श्रवण करता है उसने तो मानो सभी तीर्थोंमें स्नान कर लिया और सभी देवताओंकी स्तुति कर ली ॥ इसके दस अध्यायोंका श्रवण करनेसे निःसन्देह कपिला गौके दानका अति दुर्लभ पुण्य-फल प्राप्त होता है ॥
जो पुरुष सम्पूर्ण जगत्के आधार, ज्ञान तथा समस्त आत्माके अवलम्ब, सर्वस्वरूप, सर्वमय और ज्ञेयरूप आदि-अन्तरहित देवताओंके हितकारक श्रीविष्णु भगवान्का चित्तमें ध्यान कर इस सम्पूर्ण पुराणको सुनता है उसे निःसन्देह अश्वमेध यज्ञका समग्र फल प्राप्त होता है ॥
जिसके आदि, मध्य और अन्तमें अखिल जगत्की सृष्टि, स्थिति तथा संहारमें समर्थ ब्रह्मज्ञानमय चराचरगुरु भगवान् अच्युतका ही कीर्तन हुआ है उस परम श्रेष्ठ और अमल पुराणको सुनने, पढ़ने और धारण करनेसे जो फल प्राप्त होता है वह सम्पूर्ण त्रिलोकीमें और कहीं प्राप्त नहीं हो सकता, क्योंकि एकान्त मुक्तिरूप सिद्धिको देनेवाले भगवान् विष्णु ही इसके प्राप्तव्य फल हैं ॥
जिनमें चित्त लगानेवाला कभी नरकमें नहीं जा सकता, जिनके स्मरणमें स्वर्ग भी विघ्नरूप है, जिनमें चित्त लग जानेपर ब्रह्मलोक भी अति तुच्छ प्रतीत होता है तथा जो अव्यय प्रभु निर्मलचित्त पुरुषोंके हृदयमें स्थित होकर उन्हें मोक्ष देते हैं उन्हीं अच्युतका कीर्तन करनेसे यदि पाप विलीन हो जाते हैं तो इसमें आश्चर्य ही कर्मनिष्ठ यज्ञोंद्वारा जिनका यज्ञेश्वररूपसे यजन करते हैं, ज्ञानीजन जिनका क्या है ? ॥
यज्ञवेत्ता कर्मनिष्ठ लोग यज्ञोंद्वारा जिनका यज्ञेश्वररूपसे यजन करते हैं, ज्ञानीजन जिनका परावरमय ब्रह्मस्वरूपसे ध्यान करते हैं, जिनका स्मरण करनेसे पुरुष न जन्मता है, न मरता है, न बढ़ता है और न क्षीण ही होता है तथा जो न सत् (कारण) हैं और न असत् (कार्य) ही हैं उन श्रीहरिके अतिरिक्त और क्या सुना जाय ? ॥ जो अनादिनिधन भगवान् विभु पितृरूप धारणकर स्वधासंज्ञक कव्यको और देवता होकर अग्निमें विधिपूर्वक हवन किये हुए हुए स्वाहा नामक हव्यको ग्रहण करते हैं तथा जिन समस्त शक्तियोंके आश्रयभूत भगवान् के विषयमें बड़े-बड़े प्रमाणकुशल पुरुषोंके प्रमाण भी इयत्ता करनेमें समर्थ नहीं होते वे श्रीहरि श्रवण पथमें जाते ही समस्त पापको नष्ट कर देते हैं ॥
जिन परिणामहीन प्रभुका आदि, अन्त, वृद्धि और क्षय कुछ भी नहीं होता, जो नित्य निर्विकार पदार्थ हैं उन स्तवनीय प्रभु पुरुषोत्तमको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ जो उन्हींके समान गुणोंको भोगनेवाला है, एक होकर भी अनेक रूप है तथा शुद्ध होकर भी विभिन्न रूपोंके कारण अशुद्ध- (विकारवान्) -सा प्रतीत होता है और जो ज्ञानस्वरूप एवं समस्त भूत तथा विभूतियोंका कर्ता है उस नित्य अव्यय पुरुषको नमस्कार है ॥
जो ज्ञान (सत्त्व), प्रवृत्ति (रज) और नियमन (तम) की एकतारूप है, पुरुषको भोग प्रदान करनेमें कुशल है, त्रिगुणात्मक अव्याकृत है, संसारकी उत्पत्तिका कारण है, उस स्वतः सिद्ध तथा जराशून्य प्रभुको सर्वदा नमस्कार करता हूँ॥ जो आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथिवीरूप है, शब्दादि भोग्य विषयोंकी प्राप्ति करानेमें समर्थ है और पुरुषका उसकी समस्त इन्द्रियोंद्वारा उपकार करता है उस सूक्ष्म और विराट्रूप व्यक्त परमात्माको नमस्कार करता हूँ ॥ तथा इस प्रकार जिन नित्य सनातन परमात्माके प्रकृति-पुरुषमय ऐसे अनेक रूप हैं वे भगवान् हरि समस्त पुरुषोंको जन्म और जरा आदिसे रहित (मुक्तिरूप) सिद्धि प्रदान करें ॥