87. वेदों का विभाग और वेदव्यासों का योगदान

वेदों का विभाग और वेदव्यासों का योगदान

सृष्टिके आदिमें ईश्वरसे आविर्भूत वेद ऋक् – यजुः आदि चार पादोंसे युक्त और एक लक्ष मन्त्रवाला था । उसीसे समस्त कामनाओंको देनेवाले अग्निहोत्रादि दस प्रकारके यज्ञोंका प्रचार हुआ ॥ तदनन्तर अट्ठाईसवें द्वापरयुगमें मेरे पुत्र कृष्णद्वैपायनने इस चतुष्पादयुक्त एक ही वेदके चार भाग किये ॥ परम बुद्धिमान् वेदव्यासने उनका जिस प्रकार विभाग किया है , ठीक उसी प्रकार अन्यान्य वेदव्यासोंने तथा मैंने भी पहले किया था ॥ अतः  समस्त चतुर्युगोंमें इन्हीं शाखाभेदोंसे वेदका पाठ होता है- ऐसा जानो ॥

वेदव्यास के रूप में भगवान कृष्णद्वैपायन

भगवान् कृष्णद्वैपायनको तुम साक्षात् नारायण ही समझो , क्योंकि संसारमें नारायणके अतिरिक्त और कौन महाभारतका रचयिता हो सकता है ?  द्वापरयुगमें मेरे पुत्र महात्मा कृष्णद्वैपायनने जिस प्रकार वेदोंका विभाग किया था वह यथावत् सुनो ॥

वेदों का विभाग

जब ब्रह्माजीकी प्रेरणासे व्यासजीने वेदोंका विभाग करनेका उपक्रम किया , तो उन्होंने वेदका अन्ततक अध्ययन करनेमें समर्थ चार ऋषियोंको शिष्य बनाया ॥ उनमेंसे उन महामुनिने पैलको ऋग्वेद , वैशम्पायनको यजुर्वेद और जैमिनिको सामवेद पढ़ाया तथा उन मतिमान् व्यासजीका सुमन्तु नामक शिष्य अथर्ववेदका ज्ञाता हुआ ॥ इनके सिवा सूतजातीय महाबुद्धिमान् रोमहर्षणको महामुनि व्यासजीने अपने इतिहास और पुराणके विद्यार्थीरूपसे ग्रहण किया ॥

यजुर्वेद का विभाग

पूर्वकालमें यजुर्वेद एक ही था । उसके उन्होंने चार विभाग किये , अतः उसमें चातुर्होत्रकी प्रवृत्ति हुई और इस चातुर्होत्र – विधिसे ही उन्होंने यज्ञानुष्ठानकी व्यवस्था की ॥ व्यासजीने यजुःसे अध्वर्युके , ऋक्से होताके , सामसे उद्गाताके तथा अथर्ववेदसे ब्रह्माके कर्मकी स्थापना की ॥ तदनन्तर उन्होंने ऋक् तथा यजुः श्रुतियोंका उद्धार करके ऋग्वेद एवं यजुर्वेदकी और सामश्रुतियोंसे सामवेदकी रचना की ॥  अथर्ववेदके द्वारा भगवान् व्यासजीने सम्पूर्ण राज – कर्म और ब्रह्मत्वकी यथावत् व्यवस्था की ॥

वेदों का वन

इस प्रकार व्यासजीने वेदरूप एक वृक्षके चार विभाग कर दिये फिर विभक्त हुए उन चारोंसे वेदरूपी वृक्षोंका वन उत्पन्न हुआ ॥  पहले पैलने ऋग्वेदरूप वृक्षके दो विभाग किये और उन दोनों शाखाओंको अपने शिष्य इन्द्रप्रमिति और बाष्कलको पढ़ाया ॥ फिर बाष्कलने भी अपनी शाखाके चार भाग किये और उन्हें बोध्य आदि अपने शिष्योंको दिया ॥  बाष्कलकी शाखाकी उन चारों प्रतिशाखाओंको उनके शिष्य बोध्य , आग्निमाढक , याज्ञवल्क्य और पराशरने ग्रहण किया ॥ इन्द्रप्रमितिने अपनी प्रतिशाखाको अपने पुत्र महात्मा माण्डुकेयको पढ़ाया ॥

शाकल्य और पांच अनुशाखाएं

इस प्रकार शिष्य – प्रशिष्य – क्रमसे उस शाखाका उनके पुत्र और शिष्योंमें प्रचार हुआ । इस शिष्य – परम्परासे ही शाकल्य वेदमित्रने उस संहिताको पढ़ा और उसको पाँच अनुशाखाओंमें विभक्त कर अपने पाँच शिष्योंको पढ़ाया ॥ उसके जो पाँच शिष्य थे उनके नाम सुनो ।  वे मुद्गल , गोमुख , वात्स्य और शालीय तथा पाँचवें महामति शरीर थे ॥  उनके एक दूसरे शिष्य शाकपूर्णने तीन वेदसंहिताओंकी तथा चौथे एक निरुक्त – ग्रन्थकी रचना की ॥

[ उन संहिताओंका अध्ययन करनेवाले उनके शिष्य ] महामुनि क्रौंच , वैतालिक और बलाक थे तथा [ निरुक्तका अध्ययन करनेवाले ] एक चौथे शिष्य वेद – वेदांगके पारगामी निरुक्तकार हुए ॥ इस प्रकार वेदरूप वृक्षको प्रतिशाखाओंसे अनुशाखाओंकी उत्पत्ति हुई । बाष्कलने और भी तीन संहिताओंकी रचना की । उनके [ उन संहिताओंको पढ़नेवाले ] शिष्य कालायनि , गार्ग्य तथा कथाजव थे । इस प्रकार जिन्होंने संहिताओंकी रचना की वे बवृच कहलाये ॥

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