सनातन धर्म

सनातन धर्म से सम्बंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए स्कन्द पुराण एक उपयोगी पुराण है। स्कन्द पुराण में भगवान शिव के पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय) द्वारा शिवतत्व का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसलिए इसका नाम स्कन्द पुराण है। इसमें बद्रिकाश्रम, अयोध्या, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, कन्याकुमारी, प्रभास, द्वारका, काशी, शाकम्भरी, कांची आदि तीर्थों की महिमा का वर्णन बताया गया है।

साथ ही गंगा, नर्मदा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों के विषय में भी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। स्कन्द पुराण में रामायण, भागवत आदि ग्रन्थों का माहात्म्य, व्रत-पर्व का माहात्म्य आदि व्रत-कथाएँ भी समझाई गई है। इस पुराण की धर्म और संस्कृति को अक्षुण बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है। वेद व्यास जी द्वारा रचित हिंदुओं के 18 पवित्र पुराणों में से एक स्कन्द पुराण है। इस पुराण में 6 खण्ड और 81,000 श्लोक मिलते हैं। इस पुराण का रचनाकाल सातवीं शताब्दी का माना जाता है।

सनातन धर्म की जयः-

सनातन धर्म की महिमा से सौ जन्मों का फल भी प्राप्त किया जा सकता है। सनातन धर्म मुर्ख को भी जानी बना सकता है और इसके अनुसार ईश्वर के प्रति केवल 1 प्रतिशत आस्था भी किसी का जीवन बदल सकती है। ‘सनातन’ का शाब्दिक अर्थ है शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’, यानी जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है।

वेदांत वाक्येशू सदा रमंतोः-

सदैव उपनिषद वाक्यों में रमते हुए, भिक्षा अन्नमात्र में ही संतोष रखते हुए शोकरहित तथा दयावान कौपीन धारण करने वाले ही भाग्यवान है।

स्वानंदभावेपरितुषिमं तः-

आत्म आनंद में ही संतुष्ट रहने वाले, अपनी सभी इंद्रियों की वृत्तियां शांत कर लेने वाले, अंत, मध्य और बाहर की स्मृति से शून्य रहने वाला मनुष्य ही भाग्यवान है।

षडक्षर मंत्रः-

एक मनुष्य वृद्धा से समस्त दान देता है और पुण्यकर्म करता है वहीं दूसरा मनुष्य षडक्षर मंत्र का जप करता है। लेकिन इन दोनों ही कार्यों का फल एक समान प्राप्त होता है। इसलिए कहा गया है कि कलयुग में केवल नामजप ही आधार है।

दान की प्रतिज्ञाः-

एक बार दान देने की प्रतिज्ञा करके यदि दाता किसी ब्राम्हण या याचक को दान नहीं देता, वह पापी अपने वंश, बंधु- बांधवों समेत नर्क गामी होता है। यह बात राजा बलि ने वामन भगवान को तीन पग भूमि दान करते समय वर्णित की थी। इसके साथ ही पुराणों में भी दान की महिमा अपार बताई है।

उमाव्रतः-

स्कंद पुराण में नारद जी ने स्त्री जाति के उद्धार के लिए विभिन्न प्रसंगों के साथ व्रतों का वर्णन किया है, जिनमें से एक व्रत उमाव्रत की कथा कुछ इस प्रकार है। माता पार्वती के अनुसार जो स्त्री वृद्धा और भक्ति से इस व्रत को करती है, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस व्रत में गौरी शंकर जी की प्रतिमा का पूजन गुड़, मधु, सुवर्ण, पुष्प, फल, वस्त्र आदि से की जाती है लेकिन यदि कोई भक्त इस प्रकार के पुजन में समर्थ न हो तो भोले-भाले प्रभु शंकर जी केवल जल और पुष्प से भी प्रसन्न हो जाते हैं और जहां महादेव होते हैं वहां माता उमा स्वयं निवास करती है।

इस व्रत को करने वाली खी सौभाग्यवती, सुरुपा, मुक्तहस्ता, अग्रगण्या, धनधान्य से संपन्न, दांपत्य सुख, पुत्र सुख को प्राप्त करती है।

FAQ

स्कन्द पुराण क्या है, और इसका नाम ‘स्कन्द’ क्यों रखा गया है?

स्कन्द पुराण हिंदू धर्म के 18 महापुराणों में से एक महत्वपूर्ण पुराण है। इसे ‘स्कन्द’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें भगवान शिव के पुत्र, स्कन्द (कार्तिकेय) द्वारा शिवतत्व का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस पुराण में भगवान शिव और उनके पुत्र कार्तिकेय के उपदेश और कथाएं मुख्य रूप से वर्णित हैं।

स्कन्द पुराण का क्या महत्त्व है?

स्कन्द पुराण का सनातन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें बद्रिकाश्रम, अयोध्या, द्वारका, काशी, जगन्नाथपुरी, और अन्य तीर्थों की महिमा का वर्णन किया गया है। इसके साथ ही इसमें गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी पवित्र नदियों की महिमा और धर्म, व्रत, पर्व का महत्व भी समझाया गया है। यह धर्म और संस्कृति को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

स्कन्द पुराण का रचनाकाल कब का माना जाता है?

स्कन्द पुराण का रचनाकाल लगभग सातवीं शताब्दी का माना जाता है। यह महापुराण वेद व्यास जी द्वारा रचित है और इसमें 6 खंड और 81,000 श्लोक समाहित हैं।

स्कन्द पुराण में किस प्रकार के व्रत और पर्वों का वर्णन मिलता है?

स्कन्द पुराण में विभिन्न व्रतों और पर्वों का विस्तार से वर्णन मिलता है। इनमें उमाव्रत का विशेष महत्व है, जिसमें माता पार्वती के अनुसार जो स्त्री इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति से करती है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके अलावा, इसमें दान की महिमा, षडक्षर मंत्र का जप, और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का महत्व भी बताया गया है।

सनातन धर्म का शाब्दिक अर्थ क्या है और इसका महत्व क्या है?

‘सनातन’ का शाब्दिक अर्थ है ‘शाश्वत’ या ‘सदा बना रहने वाला’, अर्थात जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म, जिसे हिंदू धर्म या वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है, का उद्देश्य मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन देना है। यह धर्म ईश्वर के प्रति आस्था, सत्य, अहिंसा और सदाचार पर आधारित है।

उमाव्रत क्या है और इसे करने से क्या फल प्राप्त होते हैं?

उमाव्रत एक महत्वपूर्ण व्रत है जो स्कन्द पुराण में वर्णित है। यह व्रत स्त्रियों द्वारा उनके पति और परिवार की समृद्धि और कल्याण के लिए किया जाता है। इस व्रत के दौरान माता पार्वती (उमा) और भगवान शिव की पूजा की जाती है। जो स्त्री इसे श्रद्धा से करती है, उसे सौभाग्य, सुंदरता, और दांपत्य सुख प्राप्त होता है।

MEGHA PATIDAR
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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

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